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    हरियाणा में केवल हवा नहीं, जमीन और पानी भी जांच के दायरे में; पहली बार शोर- मिट्टी का हुआ वैज्ञानिक आकलन

    Updated: Sat, 25 Oct 2025 12:08 PM (IST)

    हरियाणा में दीपावली पर पर्यावरण जागरूकता की अनूठी पहल की गई है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वायु, मिट्टी, पानी और ध्वनि प्रदूषण की निगरानी कर रहा है। इसका उद्देश्य आतिशबाजी के पर्यावरणीय प्रभाव को समझना है। पटाखों में मौजूद भारी धातुओं से होने वाले प्रदूषण का अध्ययन किया जा रहा है।

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    हरियाणा में केवल हवा नहीं, जमीन और पानी भी जांच के दायरे में। फाइल फोटो

    अमित पोपली, झज्जर। हरियाणा में इस बार दीपावली केवल रोशनी और उत्सव का नहीं, बल्कि पर्यावरणीय जागरूकता का भी प्रतीक बनी है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) ने पहली बार ऐसी ऐतिहासिक पहल शुरू की है। इसके तहत दीपावली से पहले, दौरान और बाद में न केवल वायु बल्कि मिट्टी, पानी और शोर के स्तर की भी वैज्ञानिक निगरानी की जा रही है।

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    इसका उद्देश्य यह समझना है कि आतिशबाजी का हमारे परिवेश पर वास्तविक प्रभाव कितना गहरा होता है और त्योहार के बाद प्रकृति कितनी जल्दी सामान्य स्थिति में लौटती है।

    एचएसपीसीबी के वायु प्रकोष्ठ प्रमुख निर्मल कश्यप ने बताया कि अब तक दीपावली के बाद वायु गुणवत्ता (एक्यूआई) पर ही ध्यान केंद्रित किया जाता था। लेकिन इस बार बोर्ड ने दृष्टिकोण को और व्यापक बनाते हुए भूजल, मिट्टी और ध्वनि प्रदूषण को भी अध्ययन में शामिल किया है।

    उन्होंने कहा, पटाखों में मौजूद भारी धातुएं जैसे बेरियम, स्ट्रोंशियम, लेड और कापर मिट्टी में मिलकर दीर्घकालिक रासायनिक प्रदूषण पैदा करती हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम यह जानें कि ये पदार्थ हमारे पानी और मिट्टी को किस स्तर तक प्रभावित करते हैं।

    समझना आवश्यक है कि सिर्फ वायु प्रदूषण पर निगरानी पर्याप्त नहीं है। आतिशबाजी से निकलने वाले रासायन किस तरह जमीन में समा जाते हैं, भूजल को प्रभावित करते हैं और आने वाली पीढ़ियों पर इसका क्या असर होगा।

    तीन चरणों में डेटा कलेक्शन दीपावली से पहले, दौरान और बाद में, इस दौरान न केवल एनसीआर क्षेत्र जैसे गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक, पानीपत, अंबाला, बहादुरगढ़ और हिसार जैसे शहर शामिल हैं, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी नमूने लिए जा रहे हैं ताकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की तुलनात्मक तस्वीर सामने आ सके।

    • पहला चरण : दीपावली से पहले का डेटा, ताकि एक बेसलाइन तय की जा सके।
    • दूसरा चरण : दीपावली की रात और उसके तुरंत बाद, जब आतिशबाजी अपने चरम पर होती है।
    • तीसरा चरण : दीपावली के 48 घंटे बाद, यह देखने के लिए कि प्रदूषण कितनी देर तक प्रभावी रहता है।

    पहली बार बनेगा दीपावली प्रदूषण का वैज्ञानिक डेटा बेस

    17 अक्टूबर से शुरू हुई इस निगरानी प्रक्रिया का अंतिम चरण 25 अक्टूबर को पूरा होगा। इसके बाद सभी नमूनों को बोर्ड की केंद्रीय प्रयोगशालाओं में भेजा जाएगा, जहां इनकी रासायनिक जांच की जाएगी। मिट्टी और पानी के सैंपलों में भारी धातुओं की मात्रा, रासायनिक आक्सीजन मांग, जैविक आक्सीजन मांग और पीएच स्तर जैसे मापदंडों का परीक्षण किया जा रहा है।

    पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, अगर दीपावली के बाद मिट्टी या पानी में रासायनिक प्रदूषण की मात्रा बढ़ी पाई गई तो यह भविष्य की नीति निर्धारण के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बनेगा।

    भूजल और मिट्टी की जांच

    गहराई तक अध्ययन विशेषज्ञों का कहना है कि आतिशबाजी से उत्सर्जित धातुएं जब हवा के जरिए जमीन पर गिरती हैं तो धीरे-धीरे भूजल में मिल जाती हैं। इससे न केवल पीने के पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि फसलों की उत्पादकता पर भी असर पड़ता है।

    इसी कारण इस बार जिन इलाकों में आतिशबाजी अधिक होती है, वहां विशेष सैंपलिंग की गई है। इनसे यह पता लगाया जाएगा कि रासायनिक तत्व कितनी गहराई तक मिट्टी और पानी में समा गए हैं। पर्यावरणीय शोध का नया अध्याय पर्यावरण कार्यकर्ता धमेंद्र बसवाल ने कहा, यह पहल ऐतिहासिक है।

    अब तक हम अनुमान लगाते थे कि पटाखों से कितना नुकसान होता है, लेकिन अब हमारे पास ठोस वैज्ञानिक प्रमाण होंगे। यह नीति निर्माताओं और अदालतों के लिए आधार तैयार करेगा। कुल मिलाकर, एचएसपीसीबी की योजना है कि इस डेटा को सार्वजनिक किया जाए ताकि विद्यार्थी, शोधकर्ता और नागरिक भी इसे उपयोग में ला सकें।

    यदि यह परियोजना सफल रहती है तो इसे हर वर्ष नियमित अभ्यास के रूप में अपनाया जाएगा, जिससे हरियाणा में वर्षवार प्रदूषण स्तरों की तुलना की जा सकेगी।

    कितना हुआ ग्रीन क्रैकर्स की नीति का पालन

    बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी दीपावली पर केवल ग्रीन क्रैकर्स की अनुमति दी जाती है, जिनसे प्रदूषण का स्तर 30 प्रतिशत तक कम होता है। इसके बावजूद कई जगह पारंपरिक पटाखों का इस्तेमाल देखा गया।

    ऐसे में इस बार बोर्ड न केवल डेटा जुटा रहा है बल्कि यह भी देख रहा है कि ग्रीन क्रैकर्स की नीति का कितना पालन हुआ। इसके लिए टीमों ने जिला प्रशासन और पुलिस के साथ मिलकर निरीक्षण किया। प्रत्येक टीम में पर्यावरण वैज्ञानिक, तकनीशियन और प्रयोगशाला विशेषज्ञ शामिल हैं।

    समाज के लिए संदेश - उत्सव भी, जिम्मेदारी भी

    एचएसपीसीबी के प्रमुख निर्मल कश्यप बताते है दीपावली आनंद और परंपरा का प्रतीक है, लेकिन यह भी सच है कि आज के समय में पर्यावरणीय संतुलन हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

    पटाखे पूरी तरह बंद नहीं हो रहे, पर यह सुनिश्चित करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि उत्सव के साथ प्रकृति भी सुरक्षित रहे।

    बोर्ड की यह पहल न केवल ग्रीन पालिसी 2030 की दिशा में ठोस कदम है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि परंपरा और पर्यावरण का संतुलन ही स्थायी विकास का आधार है।