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    Haryana News: ...जब सदन में दूध देने वाले पेड़ों के मुद्दे पर छिड़ गई थी बहस, बात 1969 के दशक की

    Updated: Thu, 28 Mar 2024 02:34 PM (IST)

    बात साल 1969 की है जब हरियाणा के कृषि राज्य मंत्री अन्ना साहब शिंदे ने सदन में दूध मुद्दे पर अपना पक्ष रखा जिसके बाद सदन में विरोधियों ने उनसे सवाल कि ...और पढ़ें

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    Jhajjar News: जब सदन में दूध देने वाले पेड़ों के मुद्दे पर छिड़ गई थी बहस।

    अमित पोपली, झज्जर। कृषि राज्य मंत्री अन्ना साहब शिंदे (Anna Saheb Shinde) ने मई 1969 में कहा था, 'सरकार को पता है, दूध से मिठाइयां बनाने पर काफी असर पड़ेगा, क्योंकि दूध से बनने वाली मिठाइयां तो विलासिता की चीज हैं।' बस यह तो एक बानगी है। इस बात को समझने की, कैसे उस दौर में मिठाइयां विलासिता की श्रेणी में आती थी। दूध के इस संकट से निपटने को देश में कई प्रयास भी हुए।

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    इन्हीं में से एक संसद में बड़ा मुद्दा बना। पन्नों को पलट कर देखें तो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा 1950-51 में त्रिनिदाद से दूध देने वाले पेड़ लाए गए थे। जिस विषय पर 25 अगस्त 1953 के दिन गुड़गांव (गुरुग्राम) से सांसद पंडित ठाकुर दास भार्गव ने पूछा, क्या ऑनरेबल मिनिस्टर साहब ने या अन्य दूसरे साहबान ने इस दूध को पीकर देखा कि वह किस किस्म का है।

    जिस पर कृषि मंत्री डा.पी.एस देशमुख ने सदन में जवाब दिया, मामला खत्म हो गया। ज्यादा समय बीत चुका है। न ही दूध ही मिला और न ही दरख्त। दरअसल, त्रिनिदाद में हमारे व्यापार आयुक्त द्वारा 1950-51 के दौरान दूध देने वाले पेड़ों को भारत में भेजा गया था। जिसके बीज ही अंकुरित नहीं हुए।

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    समस्या कुछ यूं रही कि कुछ बीज तो भारत में आने से पहले अंकुरित हो गए और शेष प्रयास करने के बाद भी अंकुरित नहीं हुए। सदन में विषय पर इस हद तक चर्चा हुई कि बीज के लिंग तक को लेकर भी सवाल उठाया गया। जिस पर मंत्री को कहना पड़ा बीज सामान्य लिंग से है। कुल मिलाकर वह तो अच्छा हुआ कि देश में ऑपरेशन फ्लड सफल रहा और हालात बदलने लगे।

    जिसकी झलक मिलती है तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री के सी लेंका के बयान में। 1990 के दशक की शुरुआत में उन्होंने लोकसभा में कहा था, 'अब दूसरी चीजों के लिए दूध के इस्तेमाल पर रोक केवल मिल्क पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाने के मामले में ही लागू है।' तब से अब, तीन दशक से ज्यादा समय बीत चुका।

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