Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गीता महोत्सव में चमका हरियाणा का बौंदवाल परिवार, नई संसद से अंतरराष्ट्रीय मंचों तक लकड़ी की नक्काशी का अद्भुत सफर

    Updated: Mon, 01 Dec 2025 04:31 PM (IST)

    हरियाणा का बौंदवाल परिवार गीता जयंती महोत्सव में अपनी नक्काशी कला से सबका ध्यान आकर्षित कर रहा है। उनकी कलाकृतियाँ, जो लकड़ी पर उकेरी गई हैं, नई संसद भवन में भी सजी हैं। परिवार शीशम, रोजवुड जैसी कीमती लकड़ियों पर धार्मिक पैनल और सजावटी वस्तुएं बनाता है। पहले हाथीदांत पर नक्काशी करने वाले इस परिवार ने प्रतिबंध के बाद लकड़ी को अपनाया। 

    Hero Image

    गीता महोत्सव में चमका हरियाणा का बौंदवाल परिवार। फोटो जागऱण

    राकेश कुमार, झज्जर। कला-संस्कृति के अनोखे संगम की सृजनधारा के बीच हरियाणा का प्रसिद्ध बौंदवाल परिवार अपनी वर्षों पुरानी नक्काशी कला के साथ गीता जयंती महोत्सव में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

    स्वामी दयानंद सरस्वती स्टेडियम परिसर में लगे इस परिवार के स्टाल पर आने वाले आगंतुक लकड़ी पर उकेरी गई बारीक कलाकृतियों से मंत्रमुग्ध हो रहे हैं। यह वही परिवार है जिसकी कला का नमूना भारत की नई संसद भवन तक में सजा हुआ है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कीमती लकड़ियों पर अद्भुत नक्काशी

    बौंदवाल परिवार की स्टाल इस बार शिल्पकला की अनोखी झलक पेश कर रही है। शीशम, रोजवुड, कंदब, अबोनी और आबनूस जैसी कीमती और दुर्लभ लकड़ियों पर बनी कलाकृतियां मुख्य आकर्षण हैं। धार्मिक पैनल, हवन कुंड, मूर्तियां, दीवार सज्जा, कंगन, माला से लेकर हस्तनिर्मित सजावटी वस्तुएं यहां उपलब्ध हैं, जिनकी कीमत 200 से 50 हजार रुपये तक है।

    नीरज बौंदवाल बताते हैं कि अबोनी और आबनूस पर नक्काशी सबसे कठिन मानी जाती है, क्योंकि ये लकड़ियां बेहद कठोर होती हैं। एक कलाकृति में महीनों की मेहनत और हमारे सालों के अनुभव की बारीकियां छिपी होती हैं।

    हाथीदांत से लकड़ी तक कला की यात्रा

    बौंदवाल परिवार की कला यात्रा भी उतनी ही रोचक है। परिवार के बुजुर्ग महावीर प्रसाद बौंदवाल 1991 से पहले हाथीदांत पर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध थे। लेकिन हाथीदांत पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद परिवार ने कला को जीवित रखने के लिए नया माध्यम चुना—लकड़ी। उन्होंने शिल्पगुरु महाबीर प्रसाद से मिले गुरों को पीढ़ियों तक पहुंचाया, और वही परंपरा आज भी जीवंत है।

    नई संसद भवन में सजा ‘ट्री आफ लाइफ’ पैनल : परिवार की कला को राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाला सबसे अहम क्षण था, नई संसद भवन में लगा हुआ सवा फुट का ‘ट्री ऑफ लाइफ’ वुडन पैनल। इस पैनल के साथ लगी डिजिटल स्क्रीन पर नीरज बौंदवाल का नाम प्रदर्शित होता है। यह उपलब्धि न केवल परिवार के लिए, बल्कि पूरे हरियाणा के लिए गौरव का विषय है।

    जी-20 कला दीर्घा में भी मिली सराहना

    नीरज के पिता चंद्रकांत बौंदवाल ने भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी कला का लोहा मनवाया है। भारत मंडपम में आयोजित जी-20 कला प्रदर्शनी में उनके कार्य को अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने विशेष रूप से सराहा। उद्घाटन समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी कला की प्रशंसा की थी।

    राज्य के शिल्पगुरु - राजेंद्र प्रसाद बौंदवाल

    परिवार की कला परंपरा को मजबूती देने में राजेंद्र प्रसाद बौंदवाल का योगदान अमिट है। हरियाणा सरकार द्वारा सम्मानित शिल्पगुरु रह चुके राजेंद्र प्रसाद ने इस कला को साधना की तरह जिया और नई पीढ़ी को इसकी बारीकियां सिखाईं।

    परिवार आज भी उन्हें इस परंपरा की रीढ़ मानता है। ऐसे में परिवार के इस स्टाल पर रोजाना भारी भीड़ उमड़ रही है। घरेलू सजावट के सामान, सांस्कृतिक प्रतीक चिन्ह, धार्मिक पैनल और सूक्ष्म नक्काशी वाली वस्तुएं आगंतुकों को खासा आकर्षित कर रही हैं।

    नीरज बताते हैं - गीता महोत्सव हमारे लिए सिर्फ बिक्री का माध्यम नहीं, बल्कि अपनी कला को दर्शाने और नई पीढ़ी को प्रेरित करने का मंच है। पर्यटक भी इस कला में गहरी रुचि दिखा रहे हैं।