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    Jhajjar News: चार साल बाद बेरी में लगा पशुमेला, करोड़ों की कीमत के घोड़े बनेंगे आकर्षण का केंद्र

    By Rahul Kumar TanwarEdited By: Deepak Saxena
    Updated: Sat, 21 Oct 2023 04:23 PM (IST)

    झज्जर के बेरी में चार साल के बाद मां भीमेश्वरी देवी मंदिर के पास नवरात्र में पशु मेला (Beri Animal Fair) लगा हुआ है। इस मेले में अव्वल किस्म के घोड़ों की प्रदर्शनी लगाई जा रही है। ये मेला मुगलों के समय से लगता आ रहा है। वहीं इस मेले में करोड़ों की कीमत के घोड़े आकर्षण का केंद्र बनेंगे। ये मेला नवरात्र के आखिरी तीन दिनों में लगता है।

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    चार साल बाद बेरी में लगा पशुमेला, करोड़ों की कीमत के घोड़े बनेंगे आकर्षण का केंद्र।

    जागरण संवाददाता, झज्जर। चार साल के लंबे इंतजार के बाद इस बार मां भीमेश्वरी देवी मंदिर के पास नवरात्र में पशु मेले का आयोजन किया गया है। मेले में मारवाड़ी, संधि, नुकरा आदि विभिन्न प्रकार की किस्म के घोड़े आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। पशुपालक इन्हें विशेष रूप से सजाकर मेले में प्रदर्शनी और बेचने के लिए लाए थे।

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    पशुपालक प्रवीण ने बताया कि मेले में अव्वल किस्म की नस्ल के घोड़े अभी केवल प्रदर्शनी के लिए लाए गए हैं। अभी मेले में कम दाम वाली किस्में ही आई हैं, अभी ऊंची किस्मों के घोड़े आना बाकी हैं। मेले में कुछ घोड़े ऐसे भी आते है, जिन्हें बोली लगाकर भी खरीदा जाता हैं। पशुपालक मेले में अपने घोड़े-गधे आदि को रंग-बिरंगी वेशभूषा पहनाकर लाते हैं जिससे वह लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने और मेले में वाहावाही लूटे।

    मुगलों के समय से बेरी में लग रहा मेला

    बेरी में लगने वाले पशु मेले को ऐतिहासिक मेला माना जाता हैं, क्योंकि यह मुगलों के समय से चलता आ रहा हैं। मेले में बंजारा, कुम्हार, खटीक आदि जाति के लोग अपने घोड़े-गधों को विशेष रूप से सजाकर बेचने के लिए लाते हैं। यह मेला साल में दो बार नवरात्र के समय में ही लगाया जाता था। इसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला माना जाता हैं क्योंकि यह पशु मेला मुगलों के समय से लगता आ रहा हैं। भारत में इस पशुमेले को केवल दो ही जगह पर लगाया जाता हैं, एक बेरी और दूसरा राजस्थान के पुष्कर में।

    बेरी में बरसों पुरानी बंजारा, खटीक, कुम्हार आदि जाति की धर्मशाला भी बनी हुई हैं, जहां खरीददारी करने के लिए दूर-दराज से आए पशुपालक ठहरते हैं। साथ ही मेले से अपने मनपसंद पशु को खरीदकर ले जाते हैं। बरसों पहले आने-जाने के लिए जब किसी वाहन की सुविधा नहीं होती थी। तब खरीददार मेले में बड़ी संख्या में बैलगाड़ी पर सवार होकर आते थे और मेला लगने से 15 दिन पूर्व ही वह बेरी पहुंच जाते थे। यहां रुककर वह अपनी जाति के समूचे लोगों के साथ मीटिंग करते थे। यहीं पर उनके शादी-विवाह, खरीददारी, व्यापार आदि से संबंधित निर्णय लिए जाते थे।

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    मेले में बिकते है, लाखों रुपये कीमत के घोड़े

    पशुमेले में जम्मू कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, यूपी, उतरांचल, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों से व्यापारी गधे, घोड़ों आदि की खरीददारी के लिए आते है। यहां विभिन्न प्रजातियों के लाखों रुपये की कीमत के कई घोड़े बेचे औप खरीदे जाते हैं। मेले में प्रदर्शनी के लिए लाए गए शेरा, बिल्ला, रूबी, महारानी, काजल, तूफान, शान, खुशी इत्यादि लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने रहे। आकर्षक सजावट, मस्त चाल और सुंदर डील-डोल के चलते ना चाहते हुए भी लोग एक दफा घोड़े को देखकर रुक जाते है।

    नवरात्र के आखिरी तीन दिन में लगता हैं पशु मेला

    बता दें कि बेरी में लगने वाला ऐतिहासिक पशु मेला नवरात्र के सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन लगाया जाता है। इस दिन मेले में घोड़े व गधों को खरीदने व बेचने के लिए पशुपालक दूर-दूर से आते हैं। मेले में लाखों रूपयों की कीमत से लेकर एक करोड़ की कीमत वाली अव्वल दर्ज की किस्म के घोड़े आते हैं। हालांकि, महंगे घोड़े की खरीद-फरोख्त तो नहीं होती। लेकिन, यह शोभा खूब बढ़ाते हैं।

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