3586 क्विटल गेहूं लेकर पहुंचे 63 किसान, 857 क्विटल खरीदा
- नमी अधिक होने के कारण खरीद प्रक्रिया चल रही धीमी ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, झज्जर :
जिला की दस मंडियों में एक अप्रैल से गेहूं की खरीद शुरू हो चुकी है। लेकिन, अभी तक मंडियों में पहुंच रहे गेहूं में नमी की मात्रा अधिक मिल रही है। जिस कारण खरीद प्रक्रिया भी धीमी चल रही है। मंगलवार को जिला मुख्यालय स्थित अनाज मंडी में कुल 63 किसान 3586 क्विटल गेहूं लेकर पहुंचे। धीरे-धीरे मंडी में पहुंचने वाले किसानों की संख्या में इजाफा भी हो रहा है। पहले के शुरूआत के मुकाबले अब किसानों की संख्या बढ़ने लगी है। आगामी दिनों में गेहूं की आवक तेज होने की संभावना है। फिलहाल, काफी कम किसान ही गेहूं लेकर अनाज मंडी में पहुंच रहे है।
गेहूं की खरीद शुरू हुए पांच दिन बीत चुके हैं। जहां शुरूआती दिनों में 10-20 किसान ही झज्जर अनाज मंडी में पहुंचते थे, वहीं अब इनकी संख्या 50 से अधिक पहुंच चुकी है। जिससे साफ है कि किसानों की संख्या में इजाफा हो रहा है। फिलहाल कम किसान आने का एक कारण यह भी है कि अभी गेहूं की लावणी व कढ़ाई का कार्य पूरा नहीं हो पाया है। ऐसे में काफी गेहूं खेतों में खड़ा है। जिसके कारण गेहूं की आवक धीमी चल रही है। साथ ही सरकार द्वारा गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रुपये निर्धारित किया गया है। जबकि बाहर प्राइवेट मंडियों में गेहूं 2100 रुपये प्रति क्विटल तक भी बिक रहा है। जिसके चलते किसान यह भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि आगामी दिनों में गेहूं की कीमतें बढ़ सकती है। इसलिए देरी से गेहूं बेचा जाए, ताकि उन्हें अच्छी कीमत मिल पाए और फायदा हो। बाक्स :
अनाज मंडियों में फसल लेकर पहुंचने वाले किसानों किसानों को पहले गेट पास लेना होता हैं। इसके बाद ही अनाज मंडी में प्रवेश मिल रहा है। झज्जर अनाज मंडी की बात करें तो मंगलवार को कुल 63 किसान पहुंचे। वहीं मंडी में कुल 3586 क्विटल गेहूं की आवक हुई। जबकि 857 क्विटल ही गेहूं की खरीद की गई है। खरीद कम होने का कारण गेहूं में नमी की मात्रा अधिक होना है। नियमानुसार गेहूं में 12 तक ही नमी होनी चाहिए। जबकि गेहूं में नमी की मात्रा इससे अधिक मिल रही है। जिसके कारण सरकार द्वारा गेहूं की खरीद नहीं की जा रही है। जो नमी वाला गेहूं मंडी में पहुंच रहा है, उसे पहले सुखाया जा रहा है और बाद में खरीदा जा रहा है। बाक्स :
सरसों खरीद की बात करें तो सरकारी खरीद का आंकड़ा शून्य है। क्योंकि सरकार द्वारा सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये प्रति क्विटल निर्धारित किया हुआ है। जबकि प्राइवेट मंडियों में सरसों की कीमत साढ़े छह हजार से ऊपर तक पहुंच चुकी है। ऐसे में किसान अपनी सरसों को प्राइवेट मंडियों में बेचकर प्रति क्विटल के डेढ़ हजार तक मुनाफा कमाने की ही सोच रखता है। इसलिए किसान सरसों को प्राइवेट मंडी में बेच रहे हैं।

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