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    भागवत कथा के प्रभाव से ही राजा परीक्षित को हुआ था मोक्ष प्राप्त : आचार्य शास्त्री

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 26 Jun 2017 01:02 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, झज्जर : पाटौदा के देवी मंदिर में चल रही सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा रविवार को धूमधा

    भागवत कथा के प्रभाव से ही राजा परीक्षित को हुआ था मोक्ष प्राप्त : आचार्य शास्त्री

    जागरण संवाददाता, झज्जर : पाटौदा के देवी मंदिर में चल रही सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा रविवार को धूमधाम से संपन्न हो गई। दादरी तोए स्थित गोकुल धाम गौसेवा महातीर्थ की ओर से कराए गए धार्मिक आयोजन में कथा व्यास आचार्य सत्यदेवानंद शास्त्री ने बताया कि श्रंगी ऋषि के श्राप को पूरा करने के लिए तक्षक नामक सांप भेष बदलकर राजा परिक्षित के पास पहुंचकर उन्हें डंस लेते हैं और जहर के प्रभाव से राजा का शरीर जल जाता है और मृत्यु हो जाती है। लेकिन श्री मद् भागवत कथा सुनने के प्रभाव से राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त होता है। पिता की मृत्यु को देखकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय क्रोधित होकर सर्प नष्ट हेतु आहुतियां यज्ञ में डलवाना शुरू कर देते हैं जिनके प्रभाव से संसार के सभी सर्प यज्ञ कुंडों में भस्म होना शुरू हो जाते हैं तब देवता सहित सभी ऋषि मुनि राजा जनमेजय को समझाते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। आचार्य ने कहा कि कथा के श्रवण प्रवचन करने से जन्मजन्मांतरों के पापों का नाश होता है और विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

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    कथा व्यास ने प्रवचन करते हुए कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए, तभी उसका कल्याण संभव है। माता-पिता के संस्कार ही संतान में जाते हैं।संस्कार ही मनुष्य को महानता की ओर ले जाते हैं। श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अहंकार मनुष्य में ईष्र्या पैदा कर अंधकार की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि श्लोक कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेसु कदा चनि:। मनुष्य को सदा सतकर्म करना चाहिए। उसे फल की ¨चता ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए। कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र की लीला का भावपूर्ण वर्णन किया गया। जिसमें भजन'अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है'पर भाव विभोर हो श्रोताओं की आंखों से अश्रुधार बही।

    प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि मित्रता जीवन का आधार है। सुदामा और कृष्ण की मित्रता आज भी प्रासंगिक है। आज सच्चे मित्र कम ही मिलते हैं। सुदामा गरीब ब्राह्मण थे। अपने बच्चों का पेट भर सके उतने भी सुदामा के पास पैसे नहीं थे। सुदामा की पत्नी ने कहा, Þहम भले ही भूखे रहें, लेकिन बच्चों का पेट तो भरना चाहिए न? पत्नी ने सुदामा से कहा, Þआप कई बार कृष्ण की बात करते हो। आपकी उनके साथ बहुत मित्रता है ऐसा कहते हो। वहां क्यों नहीं जाते ? जाइए न! वहां कुछ भी मांगना नहीं पड़ेगा और हुआ भी वैसा ही। सुदामा अपने मित्र के यहां पर गए और बगैर मांगे ही उन्हें वह सभी कुछ मिल गया। जिसकी ईच्छा को मन में धारण करते हुए वह गए थे। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए आचार्य सत्यदेवानंद शास्त्री ने कहा कि कृष्ण और सुदामा का प्रेम यानी सच्चा मित्र प्रेम। सच्चे प्रेम में ऊंच या नीच नहीं देखी जाती और न ही अमीरी-गरीबी देखी जाती है। इसीलिए आज इतने युगों के बाद भी दुनिया कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को सच्चे मित्र प्रेम के प्रतीक के रूप में याद करती है।