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    सेम ने किया जमीन को बंजर

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    Updated: Mon, 29 Jul 2013 05:55 PM (IST)

    मुख्य संवाददाता, झज्जर : कुदरत का कहर कहे या फिर लापरवाही लेकिन सच यह है कि झज्जर में सैकड़ों एकड़ जमीन सेम की समस्या के चलते बंजर हो चुकी है और बहुत सारी जमीन ऐसी है जो इस दिशा में तेजी से आगे कदम बढ़ा रही है।

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    जिले में कुल उपजाऊ इलाका तकरीबन एक लाख साठ हजार हेक्टेयर है। इसमें से एक लाख चालीस हजार में ही कोई न कोई फसल बोई जाती है। जिन इलाकों में धान की फसल लगातार बोई जा रही है वहां के जमीन के भीतर के जल में क्लोराइड, कार्बोनेट बहुत ज्यादा देखे गए हैं। यहां का जलस्तर पांच फुट तक मिला है। आलम यह है कि आने वाले दो-तीन साल में सेम ग्रस्त तीस हजार हेक्टेयर जमीन में कोई भी फसल पैदा होने की स्थिति में नहीं रहेगी। उधर, धौड़ गांव का इलाका सेम की समस्या के कारण इतना ज्यादा खराब हो चुका है कि वहां पर कोई भी फसल बोई ही नहीं जा सकी है। पिछली दफा कृषि विभाग ने हिम्मत करके धान की पौध लगवाई थी लेकिन जमीन में पानी इतना ज्यादा है कि फसल ही सड़ गल कर नष्ट हो गई। इस इलाके का आकार कटोरे की तरह से है। थोड़ा सा पानी भी जमीन में काफी दिनों तक खड़ा रहता है। यही वजह है कि अगर हलकी सी भी बरसात हो जाए तो वहां पर पानी सूखता ही नहीं है। इस गांव के लेकर कई प्रयोग किए गए पर सारे बेकार साबित हुए। जिस इलाके में सेम की समस्या है वहां पर लगातार सिंचाई से जमीन इतनी ज्यादा तृप्त हो गई है कि फरवरी माह में जब बेमौसम की बरसात हुई तो पंद्रह सौ एकड़ गेहूं की फसल सड़ गई क्योंकि जमीन पानी सोखने की स्थिति में नहीं थी। इसकी वजह जवाहर लाल नेहरू कैनाल भी है। नहर के आसपास के इलाके में भी जो खेत हैं वहां पर पानी का स्तर काफी ऊंचा हो गया है। नहर के आसपास के क्षेत्र में स्थित खेत पानी सोखने की स्थिति में नहीं होते। जेएलएन ओवरफ्लो होती है तो आसपास के खेत पानी नहीं सोख पाते और गांवों में पानी आ जाता है।

    क्या करें किसान

    झज्जर का इलाका कटोरे के आकार का है। यहां पर पानी भरने के बाद उसके सूखने में काफी समय लग जाता है। जो जगहें नीची हैं वहां पर सेम की समस्या काफी ज्यादा है। किसान अगर ढेंचा को खेत में पैदा करें तो सेम की समस्या से काफी हद तक निजात मिल सकती है। सफेदे के पेड़ भी पानी काफी सोखते हैं। सेम ग्रस्त इलाकों के किसान अपने खेत के चारों तरफ सफेदे के पेड़ लगाते हैं। इससे जो अतिरिक्त पानी है वह सूख जाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि सफेदा व ढेंचा पानी सोखने के लिए काफी लाभकारी है। फसलों का विविधिकरण भी जमीन को उपजाऊ बनाने में कारगर साबित होता है।

    हालत चिंताजनक : डिप्टी डायरेक्टर

    कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर मदन मोहन कहते हैं कि हालात चिंताजनक हैं। उनका कहना है कि धौड़ गांव की जमीन बेकार हो चुकी है। वहां कोई भी फसल पैदा करना मुश्किल काम होता जा रहा है। सेम ग्रस्त इलाके भी महकमे के लिए चिंता की वजह बन रहे हैं। धान की पैदावार के फेर में किसान अपनी जमीन को खराब कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर किसान फसलें बदल-बदल कर पैदा करें तो जमीन फिर से दुरूस्त हो सकती है।

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