विभाजन की विभीषिका : पिता और दादा को कट्टरपंथियों ने काट दिया, बहन के सीने पर लिख दिया पाकिस्तान जिंदाबाद
विभाजन की विभीषिका कुमारी राज कपूर बताती हैं कि जब वह अपनी मां व अन्य परिजनों के साथ हिसार आईं तो उनका सहारा उनके फूफड़ बाबू प्रकाश चंद्र बने जिनका हिसार के बड़े अधिवक्ताओं में नाम था। उन्होंने रामपुरा मोहल्ला में उनके परिवार को कुछ घर अलाट करा दिए।
हिसार, वैभव शर्मा। विभाजन के समय मैं पाकिस्तान के लायलपुर में अपने नाना बालमुकंद खन्ना व नानी रामबाई के घर में मां विद्या रानी और छोटे भाई सतपाल के साथ रहती थी। क्योंकि पिता बसंत लाल कपूर शिक्षक थे और उनकी चनयोट में ड्यूटी थी मगर चनयोट छोटा सा कस्बा था इसलिए वहां पढ़ाई की अधिक सुविधा नहीं थी। इसीलिए हम अपने नाना के यहां रहते थे।
विभाजन के समय मैंने 9वीं पास कर 10वीं कक्षा में दाखिला ले लिया था। तभी लायलपुर के कलेक्टर ने हिंदू परिवारों को आदेश दिया कि सभी पास के ही आर्या स्कूल में आ जाएं क्योंकि स्थित बिगड़ सकती थी। ऐसे में हम सभी परिवार के लोग कैंप में आ गए। तब किसी को कोई चिंता नहीं थी क्योंकि हमें लग रहा था कि एक दो दिन में अपने घर लौट जाएंगे।
इसीलिए घर पर ताला लगाकर कैंप में आ गए। मगर कैंप में एक महीने से भी अधिक का समय हो गया पर हालात नहीं सुधरे। फिर दो अक्टूबर 1947 आधी रात को अचानक कट्टरपंथियों ने हमला कर दिया, उनके हाथ जो पड़ा उसे मार दिया, कई बच्चियां उनके कदमों के नीचे आने से घायल हो गईं। जैसे-तैसे सभी लोग कैंप से निकलकर आर्या स्कूल के कमरों में छिप गए मगर कमरे भी कम थे तो एक दूसरे के ऊपर लोग चढ़कर छिपकर बैठे थे।
दो घण्टे की लगातार मार काट के बाद लगभग सुबह 4 बजे हिंदू मिलिट्री आ गई और उनके डर से कट्टरपंथी भाग गए। यह मंजर उस उम्र में मेरे के लिए काफी डराने वाला था। वहीं उनके पिता और दादा दादी और बुआ की बेटी जो चेन्योट में थे ने अपना घर छोड़ने से मना कर दिया। कट्टरपंथियों को पता चला तो उन्होंने घर पर हमला बोल दिया और निर्दयतापूर्वक इनके पिता व दादा को काट डाला । यह खबर पूरे लायलपुर में आग की तरह फैल गई। बढ़ती मार काट के बीच हिन्दुस्तान की तरफ से एक स्पेशल ट्रेनें चलाई गई।
ऐसे में भारी मन से अपने आधे परिवार को पाकिस्तान में छोड़ कर वह, उनकी मां और कुछ अन्य रिश्तेदारों को इस ट्रेन में बैठकर लुधियाना आना पड़ा। कुछ समय बाद जब बच बचाकर उनकी दादी हिन्दुस्तान लौंटीं तो उन्होंने बताया कि उनका परिवार घर में छिपा हुआ था कि तभी उन्होंने खिड़की से देखा कि कोई है तो नहीं ऐसे में एक कट्टरपंथी को पता चल गया और उसने बताया कि इस घर में कोई है। वह घर में घुस आए उनके पिता और दादा को छुरी से काटकर मार दिया।
दादी के कान में से सोने के कुंडल ऐसे तोड़े कि उनके कान से खून की बौछार निकल पड़ी और बुआ की बेटी को अपने साथ उठाकर ले गए। बाद में जब पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच वार्ता हुई तो दोनों स्थानों से बेटियों और महिलाओं को एक दूसरे को वापस किया गया, तो उसमें उनकी बुआ की बेटी भी आ गई। जब उन्होंने बुआ की बेटी दर्शना से बात की तो पता चला कि कट्टरपंथियों ने बुआ की बेटी और उसके साथ आई 900 लड़कियों के वक्ष स्थल पर बर्तन पर नाम लिखने वाली मशीन से पाकिस्तान जिंदाबाद लिख दिया था। इसके बाद उस समय मदद कर रहे पंजाब में जनसंघ के कई वालेंटियर ने इन लड़कियों को विवाह कर अपनाया। ऐसे में जनसंघ के एक वालंटियर ने उनकी बुआ की बेटी को भी अपनाकर विवाह कर लिया और वह कानपुर में बस गईं।
जैसा की 90 वर्षीय कुमारी राज कपूर ने बताया
हिसार में इस्लामपुरा का नाम बदलकर रामपुरा रखा
कुमारी राज कपूर बताती हैं कि जब वह अपनी मां व अन्य परिजनों के साथ हिसार आईं तो उनका सहारा उनके फूफड़ बाबू प्रकाश चंद्र बने जिनका हिसार के बड़े अधिवक्ताओं में नाम था। उन्होंने रामपुरा मोहल्ला में उनके परिवार को कुछ घर अलाट करा दिए। इस मोहल्ला को इस्लामपुरा के नाम से जाना जाता था। यहां पर छोटे-छोटे कार्य करने वाले एक विशेष समुदाय के लोग रहते थे। इस दौरान जब वह आए तो यह मोहल्ला खाली था। सबसे कौने के घर पर इस्लामपुरा लिखा हुआ था उन्हें इतना आक्रोश आया कि उन्होंने मोहल्ले का नाम इस्लाम हटाकर रामपुरा लिख दिया। तब से इस मोहल्ले को रामपुरा के नाम से जाना जाता है।
नौकरी का सफर ऐसे हुआ शुरू
इसके बाद धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर आई और पठाना मोहल्ला में यशोदा स्कूल में पढ़ाई शुरू कर दी। इसके बाद सुशीला भवन के पास गवर्नमेंट हाई स्कूल में 10वीं में दाखिला लिया। यहां पर उन्होंने जिले में प्रथम स्थान पाया। इसके बाद फूफड़ बाबू प्रकाश चंद्र ने प्रभाकर की किताबें ला कर दे दी और वह पढ़नी शुरू कर दी। उन्हीं दिनों लुधियाना के पास जगरावां तहसील में बेसिक ट्रेनिंग स्कूल खुला। महात्मा गांधी के पैटर्न पर स्कूल संचालित होता था और 9 माह का यहां कोर्स था। जिसमें छात्र-छात्राओं को रहने खाने की उचित व्यवस्था थी। यहां प्राइमरी स्कूल तक के बच्चों को पढ़ाने वाले सभी विषयों के साथ-साथ गार्डनिंग करना, गांधी चरखा चलाना, तखरी से सूत कातना जैसे कार्य भी सिखाए जाते थे। इसके बाद प्रभाकर की परीक्षा दी तो उसमें भी प्रथम स्थान ले आए। इसके बाद फिर हिसार में आर्या स्कूल में पढ़ाने लगीं और अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।
एफसी कालेज को दे दिया पूरा जीवन
इसके बाद में हिसार नगर परिषद ने अपने स्कूल खोले तो वहां पर शिक्षिका बन गईं। इसके बाद भी पढ़ने का शौक जारी रहा और संस्कृत और अंग्रेजी में आगामी उच्च शिक्षा ली। फिर कुमारी राज कपूर एफसी कालेज में लग गईं। इसी दौरान उन्हें पता चला कि डीएन कालेज में एमए के लिए सायं की कक्षाएं लगाईं जाएंगी तो वह पहली छात्रा थी जिन्होंने सायं की कक्षा में दाखिला लिया। इसके बाद यहां पर पढ़ाई पूरी हो गई और वह एफसी कालेज को आगामी समय देने में जुट गईं। उन्हें डर था कि अगर वह कहीं शहर से बाहर नौकरी करने चली गईं या उनकी शादी हो गई तो उनकी मां व दूसरे स्वजनों का ध्यान कौन रखेगा यह बात सोचकर उन्होंने ताउम्र कभी शादी नहीं की। छोटे भाई सतपाल को पढ़ाया सी. ए. स्कूल में अध्यापक बना पैरों पर खड़ा किया । वह आज 90 वर्ष की हैं तो अपने परिवार को विभाजन का दर्द सुनाते हुए भावुक हो जाती हैं।
हैरत की बात : आज तक पेंशन भी नहीं मिली
इतनी यातनाएं सहने के बावजूद वह एफसी कालेज तक पहुंच तो गईं, उनकी पढ़ाई कई बेटियां आज अपना नाम रोशन कर रही हैं मगर जब उनकी रिटायमेंट हुआ तो उन्हें पेंशन तक नहीं मिली। आज तक वह अपनी पेंशन का इंतजार कर रही हैं। बाद में एफसी कालेज में पेंशन शिक्षिकाओं को मिलने लगी तो यह 1998 के बाद हुए सेवानिवृत्त शिक्षिकाओं के लिए थी। किसी सरकार ने उनके हक के लिए आवाज नहीं उठाई।