सत्यवादी का अर्थ मुख और मन दोनों से सच्चा : मुनि वीर सागर
संवाद सहयोगी, हिसार : दुनिया में सत्य से बढ़कर अन्य कोई मुक्तिदाता नहीं है। सत्य साधना से जागृ
संवाद सहयोगी, हिसार : दुनिया में सत्य से बढ़कर अन्य कोई मुक्तिदाता नहीं है। सत्य साधना से जागृत होता है और साधनों से मृत होता है। सत्य की सिर्फ चर्चा ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि जीवन में उसका पालन भी होना चाहिए। झूठ सबसे पहले मन में पैदा होता है फिर मुख से प्रगट होता है। केवल मौन धारण कर लेने से कोई सत्यवादी नहीं हो जाता। सत्यवादी का अर्थ है-मुख से भी सच्चा और मन से भी सच्चा, क्योंकि आदमी चाहे मुख से झूठ बोले या न बोले पर मन में तो सदैव झूठ में ही जीता है, झूठ की योजना बनाता रहता है। यह बात श्रीश्री 108 मुनि वीर सागर महाराज ने नागोरी गेट स्थित जैन लाइब्रेरी में श्री दिगम्बर जैन पंचायत द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाए जा रहे 9 दिवसीय श्री सिद्ध चक्र महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ के दौरान व्यक्त किए।
मुनि ने कहा कि सत्य कभी कड़वा नहीं होता। सत्य तो सदैव मीठा ही होता है और यदि वह कड़वा है तो वह सत्य हो ही नहीं सकता। यह तो तुम्हारे मन में ही कड़वाहट भरी हुई होती है जो सत्य को मीठा लगने ही नहीं देती। जैसे बुखार के मरीज को मीठा दूध भी पिलाओ तो कड़वा लगेगा। दूध तो कड़वा नहीं है पर बुखार के कारण उसकी जीभ का स्वाद ही कड़वा हो गया है। सत्य तो मधुर ही नहीं मधुरतम होता है। सत्य से मधुर तो दुनिया में मधुर कुछ है ही नहीं। बस अपने मन को मधुर बनाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर जैन समाज के गणमान्य व्यक्तियों ने मुनि को श्रीफल भेंट किए।
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