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    महाराणा प्रताप की वीरता के किस्से स्कूल-कालेजों में पढ़ाएं जाएं : परमार

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    Updated: Wed, 01 Jun 2022 06:43 PM (IST)

    Maharana Pratap महाराणा प्रताप वीरता का दूसरा नाम हैं। महाराणा प्रताप की वीरता के किस्से स्कूल-कालेजों में पढ़ाएं जाएं । आज की पीढ़ी को पढ़ाए जाने चाहिए। यह बात राजपूत प्रतिनिधि सभा के मंडल अध्यक्ष जगदीश ¨सह परमार ने जारी एक बयान में कही।

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    महाराणा प्रताप की वीरता के किस्से स्कूल-कालेजों में पढ़ाएं जाएं

    जागरण संवाददाता, हिसार : महाराणा प्रताप वीरता का दूसरा नाम हैं। उनकी वीरता के किस्से आज की पीढ़ी को पढ़ाए जाने चाहिए। यह बात राजपूत प्रतिनिधि सभा के मंडल अध्यक्ष जगदीश ¨सह परमार ने जारी एक बयान में कही। उन्होंने सरकार से मांग की है पाठ्यक्रम के जरिये महाराणा प्रताप की वीरता के किस्से स्कूल-कालेजों में पढ़ाएं जाएं। केंद्र व राज्य सरकार इसे जल्द से जल्द लागू करे। समाज के अन्य मौजिज लोगों जय¨सह परमार, विक्रम ¨सह राठौड़, डा. अनूप ¨सह, रजनीश चौहान, करण ¨सह, जय¨सह राठौड़, विजय ¨सह, महेंद्र ¨सह, ओमप्रकाश चौहान, प्रेम ¨सह, फतेह ¨सह, मास्टर परवेंद्र, राजेश बड़वा, संजय ¨सह, तेज ¨सह, मोहन ¨सह, सतवीर ¨सह, डा. आरएन ¨सह आदमपुर, डा. आरएस ठाकुर, नरेंद्र ¨सह चौहान, बहादुर ¨सह और अजमेर ¨सह ने भी महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथा को पाठ्यक्रम में जोड़ने की मांग की है। जगदीश ¨सह परमार ने महाराणा प्रताप के बारे में कहा कि वह सिसोदिया उदयपुर मेवाड़ वंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और ²ढ़-प्रण के लिए अमर हैं। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराणा उदय ¨सह व माता का नाम रानी जयवंत बाई था। उनकी पत्नी का नाम अजबदे पंवार था व उनके पुत्र का नाम अमर ¨सह था। महाराणा प्रताप का राज्य अभिषेक गोगुंदा में हुआ था। बचपन से ही महाराणा प्रताप साहसी, वीर, स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता प्रिय थे। 1572 में मेवाड़ के ¨सहासन पर बैठते ही उन्हें अभूतपूर्व संकटों का सामना करना पड़ गया था, लेकिन धैर्य और साहस के साथ उन्होंने हर विपत्ति का सामना किया। महाराणा प्रताप का कद साढ़े सात फुट था और उनका वजन 110 किग्रा था। उनके सुरक्षा कवच का वजन 72 किग्रा और भाले का वजन 80 किग्रा था। कवच, भाला, ढाल और तलवार आदि के वजन को मिलाया जाए तो यह 200 किग्रा से ज्यादा वजन उठाकर लड़ते थे। आज भी महाराणा प्रताप का कवच, तलवार आदि वस्तुएं उदयपुर के राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए हैं। कुछ राजाओं ने अपनी सुख-सुविधा के लिए अकबर के साथ हाथ-मिला लिया था, जिस में एक सरदार मान ¨सह था जो मुगल सेना में अकबर के साथ जुड़ गया था और महाराणा प्रताप के साथ गद्दारी की। महाराणा प्रताप ¨सह अपने वंश को कायम रखने के लिए संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने हार नहीं मानी। वह जंगल-जंगल भटके, घास की रोटियां तक खाईं। उनके साहस का ही असर था 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद उनको बंदी नहीं बनाया जा सका।

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