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Sidhu Moosewala SYL Song: हरियाणा को नहीं भाया सिद्धू मूसेवाला का SYL गाना, जानें कारण

Sidhu Moosewala SYL Song एसवाईएल गाना ट्रेंड कर रहा है। 16 घंटे में गाने को उनके यूट्यूब चैनल पर 140 लाख लोग देख चुके हैं। पंजाब में गाना बेहद पसंद किया गया है मगर गाने के बोल हरियाणा वासियों को पसंद नहीं आए

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 24 Jun 2022 11:26 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jun 2022 11:26 AM (IST)
Sidhu Moosewala SYL Song: हरियाणा को नहीं भाया सिद्धू मूसेवाला का SYL गाना, जानें कारण
सिद्धू मूसेवाला के नए गाने को लेकर हरियाणा में फिर से एसवाईएल मुद्दा उछल गया है

मनोज कौशिक, हिसार। सिद्धू मूसेवाला का सतलुज युमना लिंक (एसवाईएल) Sidhu Moosewala SYL Song गाना ट्रेंड कर रहा है। महज 16 घंटे में गाने को उनके यूट्यूब चैनल पर 140 लाख लोग देख चुके हैं। मूसेवाला की हत्‍या के बाद ये पहला गाना रिलीज हुआ है। पंजाब में गाना बेहद पसंद किया जा रहा है मगर गाने के बोल हरियाणा वासियों को पसंद नहीं आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर युवा वर्ग इस गाने को लेकर अपनी रोष भरी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। सिद्धू मूसेवाला के गाने की शुरुआत ही हरियाणा में आम आदमी पार्टी के नेता एवं राज्‍यसभा सदस्‍य सुशील गुप्‍ता की बाइट से हुई है।

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जिसमें सुशील गुप्‍ता कह रहे हैं कि पंजाब में हमारी सरकार आ गई है, 2024 में हरियाणा में भी आएगी और 2025 में हरियाणा के खेते के हर डोले पर पानी पहुंचेगा। इसी बात को उठाते हुए सिद्धू मूसेवाला ने तंज करते हुए कहा कि हरियाणा एसवाईएल का पानी मांग रहा है मगर हम एक बूंद भी नहीं देने वाले हैं।

सिद्धू मूसेवाला के गाने में ग्राफिक्‍स का इस्‍तेमाल करते हुए एसवाईएल के पानी के स्‍ट्रक्‍चर को दिखाया गया है। सिद्धू मूसेवाला ने पानी नहीं बल्कि चंडीगढ़ और हरियाणा को पंजाब में दिए जाने को लेकर भी तंज कसा है। गाने के विवादित बोल पंजाब में पसंद किए जा रहे हैं मगर हरियाणा में इन्‍हें लेकर चर्चा चली हुई है।

क्‍योंकि एसवाईएल का मुद्दा हरियाणा में सुर्खियों में रहता है और इसके पानी की मांग लगातार की जाती रही है। वहीं चंडीगढ़ भी हरियाणा पंजाब की साझी राजधानी है। इस पर भी विवाद बना हुआ है। ऐसे में इस तरह की बातों को गाने में दोहराने को लेकर हरियाणा के युवाओं में रोष नजर आ रहा है।

गाने में सिद्धू मूसेवाला ने किसान आंदोलन में लाल किले पर निशान साहिब के झंडे को फहराने काे भी सही बताया है और पंजाबी गायक बब्‍बू मान पर भी दोगला होने का तंज कसा है। क्‍योंकि 26 जनवरी के दिन यह घटना होने पर बब्‍बू मान ने कहा था कि इतना दुख तो मुझे मां-बाप के मरने पर नहीं हुआ था जितना आज हुआ है। सिद्धू के गाने में इस बाइट को दिखाया भी गया है। सिद्धू मूसेवाला ने गाने में बलविंदर जटाणा की भी तारीफ की है जिसने एसवाईएल प्रोजेक्‍ट पर काम कर रहे दो अफसरों की गोली मारकर हत्‍या कर दी थी।

वहीं एसवाईएल गाने में पहले जम्‍मू और अब मेघायल के राज्‍यपाल सत्‍यपाल मलिक के उस बयान को भी लिया गया है, जिसमें उन्‍होंने पीएम मोदी को कृषि कानून वापस लेने को लेकर हिदायत दी थी। सत्‍यपाल मलिक ने कहा था कि ये कौम तो 600 साल भी बात भूलती नहीं है। इंदिरा गांधी भी कहती थीं कि ये मुझे मार देंगे और इन्‍होंने उनको मार दिया। वहीं इन्‍होंने जरनल डायर को लंदन में जाकर मारा। इसलिए पीएम मोदी से मैं कह रहा हूं कि इनके सब्र का इम्तिहान मत लो।

क्‍या है एसवाईएल विवाद

1955 में पंजाब और हरियाणा एक ही थे। और रावी और ब्‍यास नदी का पानी पंजाब, राजस्‍थान और जम्‍मू कश्‍मीर में बांटा गया था। रावी ब्‍यास नदी में कुल 15.85 एमएएफ यानि मिलिएन एकड़ फीट पानी स्‍तर नोट किया गया था। इसमें से राजस्‍थान को 8, पंजाब को 7.20 और जम्‍मू कश्‍मीर को 0.65 पानी दिया गया था।

मगर 1966 में हरियाणा अलग राज्‍य बन गया और पानी की मांग की थी। 1976 में केंद्र सरकार ने पंजाब को मिले पानी 7.20 में से 3.5 एमएएफ पानी देने की बात कही। 1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पटियाला में सतलुज को यमुना में लिंक करके हरियाणा को पानी देने का प्रोजेक्‍ट बनाया।

इसमें समझौत हुआ कि कुल 214 किलोमीटर लंबी नहर में 122 किलोमीटर एरिया पंजाब में होगा और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनाई जाएगी। उस दौरान पंजाब, हरियाणा और पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी। पंजाब के सीएम दरबारा सिंह थे। हरियाणा के सीएम चौधरी भजनलाल थे। राजस्‍थान के सीएम शिवचरण माथुर थे। इस दौरान एसवाईएल में पानी 2 एमएएफ और बढ़ गया था, इसमें फिर से नए सिरे से पानी के बंटवारा करने का प्‍लान बनाया गया। इसमें दिल्ली को भी शामिल किया गया। केंद्र में भी कांग्रेस की ही सरकार थी।

मगर पंजाब में विपक्ष में बैठे अकाली दल ने इस योजना का विरोध किया। 1985 में लोंगेवाला समझौता हुआ। इसमें एक ट्रिब्‍यूनल बनाया गया। मगर बात नहीं बनी। इसमें राजनीतिकरण हुआ और एसवाईएल नहर पर काम करने वाले चीफ इंजीनियर की भी हत्‍या तक हो गई थी। 1990 में हरियाणा ने केंद्र सरकार से फिर गुहार लगाई। 1996 में हरियाणा सुप्रीम कोर्ट में गया। 2004 में कोर्ट का सेंट्रल एजेंसी बनाई जाए।

2016 में फिर एक स्‍टेटमेंट आई जिसमें कहा गया कि सेंट्रल एजेंसी बनाने की बात केवल एक राय थी। ऐसे में यह विवाद नहीं सुलझा। नहर बनाने की जगह पर लोगों ने आवास बना लिए। 2017 में कोर्ट ने हरियाणा पंजाब को शांति से मामला निपटाने की हिदायत दी। अभी भी एसवाईएल पर सुनवाई चल ही रही है। मगर विवाद नहीं सुलझा है। हरियाणा में भी जब भी चुनाव होते हैं तो नेता एसवाईएल नहर का पानी लाने की बात करते हैं मगर कुद नहीं होता है।


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