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    पशुओं में मक्खियों से फैलती है यह घातक बीमारी, पशुपालक इन देसी तरीकों से घर पर करें उपचार

    By Umesh KdhyaniEdited By:
    Updated: Sat, 21 Aug 2021 12:58 PM (IST)

    पशुओं में अब एक और घातक बीमारी का साया मंडरा रहा है। यह मक्खियों के काटने से होती है। यह रोग भैंस गाय अश्व ऊंट एवं शूकर के साथ-साथ जंगली जानवरों में भी मिलता है। कुछ रोगी पशुओं में यह घातक रूप ले लेता है।

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    कमजोरी के कारण इस रोग से ग्रसित पशु अन्य बीमारियों का शिकार जल्दी हो जाता है।

    जागरण संवाददाता, हिसार। पशुपालकों के लिए सावधान होने का समय है। पशुओं में अब एक घातक रोग फैलने का डर है। यह एक संक्रामक विकार है। यानि यह बीमारी एक से दूसरे पशु में फैलती है। इससे दूध उत्पादन इत्यादि में कमी आती है। कई मामलों में पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है।

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    यह एक व्यापक रोग है जो विश्व के अनेक भागों में पाया जाता है। कमजोरी के कारण इस रोग से ग्रसित पशु अन्य बीमारियों का शिकार जल्दी हो जाता है। जैसे मुंहखुर, गलघोटू इत्यादि। इसलिए ही यह रोग इतना घातक है। इस रोग को सर्रा कहते हैं। सर्रा का संक्रमण मुख्यतः टैबेनस (डांस) वंश की मक्खियों के काटने से होता है। इस रोग के लिए उत्तरदायी परजीवी (ट्रिपैनोसोमा) रक्त चूसने के समय संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु में फैलते हैं। ये मक्खियां बरसात के मौसम में व बरसात के बाद के समय में अधिक सक्रिय होती हैं।

    इन पशुओं में पाया जाता है सर्रा रोग

    जब पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हाेती है, तब संक्रमित पशु में बीमारी के लक्षण दिखाई दते हैं। यह  रोग  भैंस,  गाय, अश्व, ऊंट एवं  शूकर  के साथ-साथ जंगली  जानवरों में भी मिलता है। भेड़-बकरियों में भी यह रोग उल्लेखित है। यह रोग ऊष्णकटिबंधीय जलवायु वाले प्रदेशों में मिलता है, क्योंकि यह जलवायु टैबेनस वंश की मक्खियों के पनपने के लिए अनुकूल है।

    रोग के लक्षण

    • पशुओं की विभिन्न जातियों में सर्रा की प्रकृति और प्रकोप अलग-अलग होते हैं। गाय और भैंस में सर्रा मुख्यतः यह लक्षणहीन रोग है। लेकिन, कुछ रोगी पशुओं में यह घातक रूप ले लेता है।
    • सर्रा से प्रभावित सभी पशु रक्ताल्पता के शिकार होते हैं और उनमें मांसपेशियों की दुर्बलता देखी जा सकती है।
    • रोगी पशुओं में ऐडिमा गर्दन, कोख और पैरों के निचले हिस्सों में देखा जा सकता है। रोगी पशुओं में रुक-रुक कर बुखार आता है।
    • अधिक घातक स्थिति में प्रभावित पशु अपने बंधे हुए स्थान पर चक्कर काटने लगता है और दीवारों पर या खूंटे पर सिर मारने लगता है।
    • परजीवी गर्भवती मादा पशुओं में नाल के माध्यम से भ्रूण को संक्रमित कर सकता है, जिस कारण से गर्भपात हो जाता है या भ्रूण असामयिक (वक्त से पहले) पैदा हो जाता है।
    • अश्व  वंश  के  पशुओं  में  प्रगतिशील  दुर्बलता, रक्ताल्पता  और  ऐडिमा  के  साथ-साथ  गर्दन  व बगलों में खाल पर पित्त निकल आते हैं।

    कैसे की जाती है चिकित्सा

    • सर्रा की चिकित्सा के लिए तत्काल पशु चिकित्सक से परामर्श करें।
    • पशु के तीव्र स्वास्थ्य लाभ के लिए रक्तवर्धक एंव लिवर टानिक देने चाहिए।
    • पुनर्नवा या गंधपर्णा की पौध एवं जडें, गिलोय और आंवला भी सर्रा के लिए उपयोगी औषधि हैं।
    • पशु में रक्ताल्पता को दूर करने के लिए फेरस सल्फेट (10 ग्राम) व कापर सल्फेट (5 ग्राम) को 500 ग्राम  गुड़  में  मिलाकर  प्रतिदिन  खिलाएं  अथवा अश्वगन्धा की पत्तियों या जड़ के 20 ग्राम चूर्ण को 250 ग्राम गुड़ के साथ दिन में एक बार एक सप्ताह तक खिलाएं।

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