जिंदगी को नई दिशा देती कहनियां, 1949 से पहले शुरू की छोटी पंसारी की दुकान, अब बड़ा कारोबार
रेलवे रोड पर लाला रामभज पंसारी ने 1949 से पहले छोटी दुकान शुरू की थी। अब तो बड़ा कारोबार का रूप ले चुका है। हींग और मेहंदी दूसरे जिलों से खरीदने लोग य ...और पढ़ें

रोहतक, जेएनएन। व्यापार विशुद्ध रूप से ईमानदारी और मेहनत पर टिका हुआ है। कुछ व्यापारी अपने पेशे से किसी भी सूरत में समझौता नहीं करते। खुद को स्थापित करने के लिए गुणवत्ता बेहतर से बेहतर रखते हैं। उनमें से कई ऐसे हैं, जोकि मुकाम पाकर ऊंचाईयां छू रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं लाल रामभज पंसारी एंड संस। 1949 से पहले रामभज ने रेलवे रोड पर किराने की छोटी दुकान खोली। सफल होने के सपने देखे। दिन-रात मेहनत की और मुकाम भी हासिल करने में कामयाब रहे।
लाला रामभज के सबसे छोटे बेटे सतीश पंसारी ने बताया है कि नौ भाई-बहनों का गुजारा एक दुकान के बल पर करना मुश्किल था। खिड़वाली गांव से आकर रेलवे रोड पर दुकान और मकान किराए पर लिए। यहीं से पिता रामभज गुप्ता ने कारोबार शुरू किया। लेकिन उनके पिता रामभज ने दिन-रात मेहनत की। हालांकि अपने पथ से कभी डिगे नहीं। गुणवत्ता इतनी बेहतर थी कि दूसरे किराने वाले देर रात में सामान खरीदकर अपने घरों में ले जाते थे। कई बार उन दुकानदारों को पूछा तो सीधे तौर से उन्होंने कहा कि हम मुनाफे वाला सामान रखते हैं, लेकिन आपकी गुणवत्ता बेहतर है। इसलिए हम यहां से सामान खरीदते हैं। यह बात स्वजनों व दूसरे भाईयों को सबसे बेहतर लगी। अब यही मंत्र नई पीढ़ी को देते हैं कि मुसीबत में मदद करें। जिस ईमानदारी और मेहनत के रास्ते पर उनके पिता चले, उस रास्ते को भूलना नहीं है। यही वजह है कि तीसरी पीढ़ी को भी सकारात्मक रहने की घुट्टी पिलाई जाती है।
हींग और मेहंदी दूसरे जिलों से खरीदने आते थे ग्राहक
सतीश पंसारी कहते हैं कि उन्हें वह दौर याद है, जब रेलवे रोड पर उनकी छोटी दुकान थी। गुणवत्ता तो सभी सामान की बेहतर थी। लेकिन दिल्ली से खरीदने हींग लाते थे। इसी तरह मेहंदी भी बिक्री करते। इनकी मेहंदी और हींग की गुणवत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दूसरे जिलों से भी ग्राहक आते थे। इनका कहना है कि दौर बदला। अब मेहंदी विभिन्न कंपनियों की आने लगी। इसी तरह हींग भी अलग-अलग कंपनियों की है। इनका कहना है कि आज तक गुणवत्ता पर ध्यान है।
पंसारी नाम के पीछे भी रोचक किस्सा
सतीश पंसारी अग्रवाल समाज से ताल्लुक रखते हैं। सबसे बड़े भाई शिवचरण दास उर्फ शिब्बू की रेलवे रोड पर आज भी दुकान है। पंसारी नाम को लेकर सतीश ने पूरी कहानी बताई। इन्होंने बताया कि 1991 में रोहतक नगर पालिका चुनाव में पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ा। कुल आठ प्रत्याशियों ने नामांकन किया। छह प्रत्याशियों को मना लिया गया। लेकिन मैदान में एक अन्य प्रत्याशी रह गए। उनका नाम भी सतीश था। ऐसे में वोट मांगने जब भी जाते तो लोग पूछते कि कौन से सतीश को वोट देने हैं। खुद को पहचान देने के लिए खुद का पेशा काम आया। दरअसल, किराने की दुकान पर पंसारी का सामान भी बेचा जाता था। इसलिए इन्होंने मतदाताओं के बीच पहुंचकर सतीश पंसारी को वोट देना है, यह प्रचार के दौरान कहना शुरू कर दिया। तभी से इनकी और परिवार की पंसारी नाम से पहचान हो गई।
पिता ने दिया था मंत्र, सफल होना है तो ईमानदार बनें
सतीश कहते हैं कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं है। अब तीसरी पीढ़ी भी उनका कारोबार संभाल रही है। इनका यह भी कहना है कि पिता ने जीवन में यही मंत्र दिया कि सफल होने के लिए सबसे जरूरी है कि आप ईमानदार बनें। रेलवे रोड के बाद इन्होंने डी-पार्क पर अपने प्रतिष्ठान का संचालन साल 2013 में शुरू किया। इन्होंने बताया है कि जो बेहतर व्यवहार का भी प्रतिफल है कि ग्राहक कभी नाराज नहीं हुए। वह आंख मूंदकर हमारे ऊपर विश्वास करते हैं। कोरोना संक्रमण का उदाहरण देते हुए कहा कि हमने अपने ग्राहकों को एक ही बात कही थी। आपको परेशान होने की जरूरत नहीं। प्रत्येक आर्थिक रूप से लोगों की मदद भी की।

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