23 साल पुराने हत्या के मामले में छह दोषी बरी, हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास का फैसला पलटा
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 2002 के एक हत्या मामले में छह दोषियों को बरी कर दिया। अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले को अविश्वसनीय और विरोधाभासों से भरा हुआ पाया। नारनौल की एक सत्र अदालत ने पहले इन दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी जिसे हाई कोर्ट ने पलट दिया। अदालत ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में विरोधाभासों को उजागर किया।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 23 वर्ष पुराने हत्या के एक मामले में अभियोजन पक्ष की बातों को अविश्वसनीय और विरोधाभासों से भरा बताते हुए छह दोषियों को बरी कर दिया। यह फैसला जस्टिस मंजरी नेहरू कौल और जस्टिस एचएस ग्रेवाल की खंडपीठ ने सुनाया है। इसके साथ ही नारनौल की एक सत्र अदालत के 19 जुलाई 2004 के फैसले को पलट दिया।
निचली अदालत ने बिरावास गाव में शादी राम की हत्या के लिए मदन लाल, जगमाल सिंह, लाल चंद, सुनील कुमार, संजीव कुमार और मुन्नी देवी को हत्या और साजिश के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता सुरेन्द्र सिंह ने 11 सितंबर 2002 की सुबह खेतों की ओर जाते समय मदन लाल के घर के पास अपने पिता शादी राम पर हमला होते देखा। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि सुनील कुमार ने शादी राम के सिर पर कुल्हाड़ी के पिछले हिस्से से वार किया और लाल चंद ने लोहे की राड से।
अभियोजन पक्ष के बयान को स्वीकार करते हुए निचली अदालत ने सभी छह लोगों को दोषी ठहराया। अपनी अपील में अभियुक्तों ने तर्क दिया कि मामला मनगढ़ंत था और जाच में गंभीर खामियों और बयानों में विसंगतियों की ओर इशारा किया।
दो गंभीर चोटों का स्पष्टीकरण नहीं दिया
मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अभियुक्त को कई चोटें आई थीं, जिनमें से दो गंभीर थीं और उनका अभियोजन पक्ष ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। पीठ ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में मौजूद विरोधाभासों को भी उजागर किया।
शिकायतकर्ता ने घटना स्थल बदल दिया
शिकायतकर्ता ने पहले कहा था कि हमला मदन लाल के घर के सामने हुआ था, लेकिन बाद में घटना स्थल पंचायत घर के पास बता दिया। महत्वपूर्ण बात यह है कि शादी राम के एक अन्य पुत्र वीरेंद्र सिंह से कभी पूछताछ नहीं की गई, जबकि उसने हमला होते देखा और अपने पिता को अस्पताल ले गया था।
कहीं असली वजह को दबाया तो नहीं गया
अदालत ने कहा कि वीरेंद्र सिंह से पूछताछ न होना यह दर्शाता है कि घटना की असली वजह को दबाया गया। अपनी अंतिम टिप्पणी में अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष की कहानी विश्वसनीय नहीं है। इसलिए, अपील स्वीकार की जाती है और 19 जुलाई 2004 का दोषसिद्धि और सजा का आदेश रद किया जाता है।
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