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सिरसा की पहचान बन चुकी है श्री बाबा तारा जी की कुटिया, बड़ा रोचक है इसका इतिहास

श्री बाबा तारा जी की कुटिया में बड़े से बड़े कथावाचक कुटिया में प्रवचन कर श्रद्धालुओं को निहाल कर चुके है। देश का हर नामचीन गायक यहां आयोजित भजन संध्या में प्रस्तुति दे चुका है। फिल्म अभिनेत्री एवं सांसद हेमा मालिनी तक शिव नाटिका प्रस्तुत कर चुकी है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Sun, 07 Mar 2021 05:26 PM (IST)Updated: Sun, 07 Mar 2021 05:26 PM (IST)
सिरसा की पहचान बन चुकी है श्री बाबा तारा जी की कुटिया, बड़ा रोचक है इसका इतिहास
श्री बाबा तारा की कुटिया में दस मार्च को अभिनेत्री एवं पूर्व सांसद जया प्रदा शिव विवाह नाटिका प्रस्तुत करेंगी

सिरसा, जेएनएन। किसी भी स्थल की श्रेष्ठता और पवित्रता वहां होने वाले धार्मिक और सामाजिक कार्यो पर आधारित होती है। धार्मिक और सामाजिक कार्यो से ही सिरसा की पहचान होती है। सिरसा को डेरों की भूमि कहा जा सकता है, संतों और महापुरूषों की चरणरज से भूमि पवित्र होती रही है और संतों का आशीर्वाद सदैव लोगों पर बना हुआ है। श्री बाबा तारा जी की कृपा सदैव लोगों पर बनी रहती है। सिरसा के विधायक गोपाल कांडा और उनके अनुज गोबिंद कांडा ने श्री बाबा तारा की तप और कर्मस्थली को भव्य रूप देते हुए वहां पर बाबा तारा कुटिया का निर्माण करवाया जिसे तारकेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।

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यह धाम  विख्यात हो चुका है। देश के बड़े से बड़े कथावाचक कुटिया में प्रवचन कर श्रद्धालुओं को निहाल कर चुके है। देश का हर नामचीन गायक यहां आयोजित भजन संध्या में प्रस्तुति दे चुका है। फिल्म अभिनेत्री एवं सांसद हेमा मालिनी तक शिव नाटिका प्रस्तुत कर चुकी है। अब दस मार्च को फिल्म अभिनेत्री एवं पूर्व सांसद जया प्रदा शिव विवाह नाटिका प्रस्तुत करेंगी। हवन यज्ञ होते रहते हैं। जूनापीठाधीश्वर आचार्य, महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी महाराज के सानिंध्य में कुटिया परिसर में अति महारूद्र महायज्ञ का आयोजन हो चुका है, ऐसा माना जाता है विश्व में यह महायज्ञ पहली बार हुआ।

श्री बाबा तारा का जीवनी

बाबा तारा जो भगवान शिव के स्वरूप माने जाते है का जन्म फ ाल्गुन की शिवरात्रि के दिन पाली गंाव जिला हिसार में श्रीचंद सैनी के घर में हुआ । जब बाबा जी दो वर्ष के थे तभी इनके ऊपर से माता-पिता का साया उठ गया। इनकी बुआ इनको अपने साथ ले आई और इनका पालन पोषण बुआ व फू फ ा ने किया। बाबा जी बचपन से ही भगवान शिव की भक्ति भाव एवं एकंात मे लीन रहते थे। जब बाबा जी की उम्र 15-16 वर्ष हुई तो इनके परिवार वाले इन पर शादी का दबाब डालने लगे परंतु बाबा जी इस सांसरिक मोह माया में नहीं पड़े । इस दौरान इनकी बुआ व फू फ ा का देहांत हो गया। इन्हीे दिनों के दौरान सिरसा में बाबा जी सिद्वबाबा बिहारी जी की सेवा में लग गए, और बाबा बिहारी के दर्शन मार्ग में घोर तपस्या की और बाबा बिहारी जी के आदेशनुसार सिद्वबाबा श्योराम जी से नाम दीक्षा ग्रहण की (सिद्व बाबा श्योराम बाबा बिहारी जी के शिष्य थे) और इसके पश्चात बाबा जी सिरसा छोड़ कर हिसार के पास बिहड़ जंगलों में चले गए और वहां इन्होंने घोर तपस्या की और इस दौरान गांव रामनगरिया सिरसा के निवासियों ने हिसार के बिहड़ में जाकर बाबा जी की तलाश की और सभी ने बाबा जी से पुन: सिरसा आने की प्रार्थना की। बाबा जी ने अपने सेवकों की प्रार्थना पर विवश होकर पुन सिरसा में आकर अलख जगाई और लगभग 60 वर्ष पूर्व रामनगरियां गांव के जंगलों में अपनी कुटिया बनाई और बाबा जी ने अपने तप इस भूमि को तपो भूमि बना दिया बाबा जी एक ब्रहमचारी संत के स्वरूप में विख्यात हुए। बाबा जी ने अपने तप इस भूमि को तपो भूमि बना दिया। बाबा जी दिन में एक बार रोटी व लाल मिर्च की चटनी लेते थे । बाबा जी ने इसी स्थान पर कठिन से कठिन तपस्या करते हुए 12 वर्ष तक भोजन ग्रहण नहीं किया । वर्षो तक मौन व्रत रखा । बाबा जी हर वर्ष फ ाल्गुन और श्रावण के मास में शिवरा़त्रि के समय शिवधाम नीलकंठ महादेव, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, नीलधारा, रामेश्वरम, अमरनाथ जी उज्जैन व भगवान शिव के पूज्यनीय स्थल व ज्योर्तिलिंगों की उपमा कुछ सेवकों को साथ लेकर भ्रमण किया करते थे। बाबा जी 20 जुलाई 2003 को अपने सेवकों को साथ लेकर हरिद्वार गये वहां स्नान करवाया और फि र नीलकंठ महादेव के दर्शन अपने सेवकों को करवाए । बाबा जी अपने सेवकों को साथ 26.जुलाई.03 को बद्रीनाथ से वापस हरिद्वार गंगाघाट पर परमानंद आश्रम पहुंचे और सभी को भोजन करवाया। इसी दौरान रात्री को जब शिव रात्रि की पावन बेला प्रारम्भ हुई बाबा जी कमरे से एक दम बाहर आये और गंगाघाट पर जंहा शिवालय भी स्थापित है वहां आकर अपने सेवकों के हाथों में स्वेच्छा से अपना मानव रूपी चोला छोड़ दिया। यह देखकर आश्रम के लोग व सेवक हैरान रह गए कि कैसे बाबा जी ने अपने आप को शिव में अंतरलीन होने को चुना । तत्पश्चात सेवक शिवरात्रि को बाबा जी का पवित्र शरीर बाबा जी की कुटिया पर लेकर आये तो बाबा जी के पवित्र शरीर के दर्शन को समूचा शहर उमड़ पड़ा। लाखों की तादाद में श्रद्वालुओं ने बाबा जी के पवित्र शरीर के अंतिम दर्शन करके श्रद्वा सुमन समर्पित किए। अब इस स्थान पर बाबा जी की पवित्र समाधि स्थापित है।

विश्व की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा है कुटिया में

कुटिया में जो श्रद्धालु पहली बार आता है वह बाद में बार बार आता है, यहां पर मुख्य आकर्षण का केंद्र शिव प्रतिमा, शिवालय, नंदीश्वर और गुफा हैं। शिवालय 71 फुट ऊंचा है, यहां पर स्थापित शिवलिंग महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन से लाया गया है। जिसका उदगम स्थल नंदेश्वर ओंकारेश्वर से नर्मदा नदी है। यह त्रिशूल युक्त शिवलिंग है। भगवान शिव की सवारी नंदी के लिए बड़ा प्लेटफार्म बना हुआ है जिस पर नंदी महाराज विराजमान है। इसके साथ ही भगवान शिव की 108 फुट ऊंची प्रतिमा विराजमान है। जिसे भगवान शिव की विश्व कर सबसे बड़ी खड़ी प्रतिमा माना जाता है। जिसका निर्माण पिलानी के प्रख्यात मूर्तिकार मातूराम द्वारा बनाया गया है। इस पर तांबा की पालिश है। मूर्ति के तिलक, नाभी, कुंडल, कड़े सोने के है। इसके साथ ही पांज हजार फुट लंबी गुफा बनी हुई है। जिसमें श्री बाबा तारा जी के जीवन से जुड़ी झांकियां है, बाबा अमरनाथ बर्फानी है तो साथ ही 12 ज्योर्तिलिंग है। बाहर समुंद्र मंथन का दृश्य है। गुफा के प्रवेश द्वार पर भगवान शिव और हनुमान जी की विशाल प्रतिमा है।

कुटिया में है विशाल नेत्रालय

कु टिया परिसर में श्री बाबा तारा जी चेरिटेबल अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर की ओर से विशाल नेत्रालय दस दिसंबर 2006 को स्थापित किया गया। जहां पर अब तक 50 हजार से अधिक मोतियाबिंद के आपरेशन हो चुके है। आयुवेर्दिक अस्पताल भी संचालित है। पहले यहां पर 274 जरूरतमंद कन्याओं का सामुहिक विवाह किया जा चुका है और अब नौ मार्च को 51 जरूरतमंद कन्याओं का सामुहिक विवाह समारोह आयोजित किया जाएगा।


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