अपने पशु के रक्तदान से बचाएं हजारों बेजुबानों की जिंदगी, डोनर नहीं मिलने से पशुपालकों की बढ़ी चिंता
हिसार से मिली जानकारी के अनुसार पशुओं के लिए रक्तदान मनुष्यों की तरह ही महत्वपूर्ण है पर पशुपालकों में जागरूकता की कमी के कारण रक्त की उपलब्धता कम है। लाला लाजपतराय पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में ब्लड बैंक होते हुए भी पशुपालक डोनर लाने में हिचकिचाते हैं। हर साल लगभग 30-40 पशुओं को रक्त चढ़ाया जाता है और वैज्ञानिकों के अनुसार रक्तदान के बाद पशुओं की जांच जरूरी है।
अमित धवन, हिसार। रक्तदान से मानव जिंदगी को नवजीवन मिलता है तो पशुओं के रक्त भी बेजुबान पशुओं के लिए मददगार होते हैं। विज्ञान ने यह साबित किया है। लेकिन विडंबना है कि पशुओं के लिए रक्त उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। कारण, पशुपालकों में जागरूकता की कमी है।
हालात ये कि भैंस-गाय सहित कुत्ते-बिल्ली में रक्त देने वाले पशु ही नहीं मिलते। अपने पशुओं को बचाने के लिए पशुपालक खुद दूसरा डोनर पशु लेकर पहुंचते हैं तो रक्त चढ़ता है। ऐसा तब है जबकि लाला लाजपतराय पशु विज्ञान एवं पशु विश्वविद्यालय (लुवास) में ब्लड बैंक से लेकर रक्त निकालने तक सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस सच से विज्ञानी और अपने पशु के लिए रक्त की आवश्यकता वाले पशुपालक भी परेशान हैं।
बता दें कि लुवास के क्लीनिक में हर साल 30 से 40 पशुओं को रक्त चढ़ाया जाता है। लुवास में बने क्लीनिक में पशुपालक अपने पशुओं को ब्लड चढ़वाने के लिए आते हैं। हालात यह हैं कि पशु पालक दूसरे पशु के लिए ब्लड डोनेट करते हुए डरता है। लुवास विज्ञानियों की मानें तो चार से पांच घंटे में एक पशु को उसकी बीमारी और वजन के हिसाब से रक्त चढ़ाया जाता है।
लुवास पशुपालकों को पशुओं के लिए रक्तदान के बाद छह माह में उन पशुओं की पूरी बाडी का चैकअप की बात कहता है। यदि कोई पशु का रक्तदान करवाता है तो पशु के शरीर में रक्त बनने में सात दिन का समय लगता है। इसके लिए बेहतर डाइट दी जाती है।
पशुपालकों के रक्तदान करने से दिक्कत नहीं होती है। लुवास के क्लीनिक में विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से इन्टेंसिव केयर एंड ब्लड बैंक बनाया गया है। वेटनरी विभाग की तरफ से बनाए गए इस ब्लड बैंक में कुत्तों के अलावा बाकी पशुओं का रक्तदान करने के लिए पशुपालकों से अपील की जाती है
इनसान से ज्यादा पशुओं में ब्लड ग्रुप पशु विज्ञानियों की मानें तो इन्सान से ज्यादा ब्लड ग्रुप पशुओं में होते हैं। पशुओं के हिसाब से इनकी संख्या कम ज्यादा हो सकती है। पशुओं के ब्लड ग्रुप को अलग-अलग डिफाइन किया गया है। पशु विज्ञानियों के अनुसार हर पशु में 12 से 16 ग्राम तक हीमोग्लोबिन होता है। भैंस, गाय में चिचड़ की बीमारी के चलते पशुओं में तेजी से खून की कमी होती है।
इसके अलावा फास्फोरस की कमी के चलते पेशाब से खून निकलता है। इससे खून की कमी होती है। काफी बार खून की कमी से पशु की मौत भी होती है। पशुओं में ब्लड ग्रुप
गाय : गायों में 11 मुख्य रक्त समूह होते हैं। इसमें ए, बी, सी, एफ, जे, एल, एम, आर, एस, टी और जेड-बी ब्लड ग्रुप है।
भैंस : इस पशु में मेजर और माइनर मैच किया जाता है। रक्त की क्रास मैचिंग कर पशु के हिसाब से चढ़ाया जाता है।
बिल्ली : बिल्लियों में तीन ब्लड ग्रुप होते हैं। इसमें मुख्य रूप से ए, बी और एबी शामिल हैं।
कुत्ते : कुत्तों में 12 से 13 से ब्लड ग्रुप होते हैं। इसमें मुख्य रूप से डीईए (डाग एरिथ्रोसाइट एंटीजन) प्रकारों में से डीईए चार और डीईए छह शामिल हैं। इसके अलावा डीईए-1 और केएएल के ब्लड ग्रुप भी शामिल हैं।
पशुपालकों में अभी पशुओं के रक्तदान को लेकर जागरूकता की कमी है। पशुओं का ब्लड स्टोर करने के लिए ब्लड बैंक बनाया गया है। साल में 30 से 40 पशुओं को रक्त चढ़ाया जाता है। अभी पशु पालक खुद ही डोनर लेकर पहुुंचते हैं।
- डा. तरुण, असिस्टेंट प्रोफेसर, लुवास
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