रोहित सरदाना का हरियाणा के हिसार से रहा गहरा नाता, जीजेयू से हासिल की थी पत्रकारिता की मास्टर डिग्री
रोहित सरदाना का हिसार से गहरा नाता रहा। उन्होंने गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय में ही पत्रकारिता की मास्टर डिग्री हासिल की थी। रोहित दो साल तक हिसार ...और पढ़ें

हिसार, जेएनएन। आज तक चैनल के एक्जीक्यूटिव एडिटर रोहित सरदाना का कोरोना से निधन हो गया है। कोरोना संक्रमित होने के बाद वे अस्पताल में भर्ती हुए थे, जहां आज सुबह हार्ट अटैक आने से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु की सूचना मिलते ही सबसे पहले जी न्यूज चैनल के एडिटर सुधीर चौधरी ने ट्वीट कर जानकारी साझा की। इसके बाद देश के मौजिज लोगों ने भी ट्वीट कर जानकारी साझा की और श्रद्धांजलि दी। रोहित सरदाना ने कई साल जी न्यूज चैनल में काम किया था और इसी दौरान प्रिंस नाम के बच्चे के बोरवेल में गिरने की स्टोरी कवर के दौरान वे चर्चा में आए थे।
रोहित सरदाना का हिसार से गहरा नाता रहा। उन्होंने गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय में ही पत्रकारिता की मास्टर डिग्री हासिल की थी। रोहित दो साल तक हिसार में रहे और उसके बाद भी विशेष मौकों पर हिसार आते रहते थे। वो हमेशा कहते थे कि उनका हिसार से एक अलग सा जुड़ाव है। 2014 में जीजेयू में आयाेजित एक सेमीनार में भी वे शिरकत करने के लिए पहुंचे थे। रोहित सरदाना मुख्य रूप से हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के रहने वाले थे।
उनके पिता रतन चंद सरदाना कुरुक्षेत्र में गीता स्कूल के प्रिंसिपल रहे हैं। वहीं उनके बड़े भाई की आर्य मार्केट में कंप्यूटर की दुकान है। एक छोटी से जगह से उठकर रोहित सरदाना ने बड़ी बुलंदियों को छूआ। आज तक पर आने वाले दंगल कार्यक्रम में उन्हें खासी पहचान मिली। उनकी मृत्यु पर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ और देश के गृह मंत्री अंमित शाह ने भी ट्वीट कर शोक जताया है। उनके निधन से देश में मीडिया जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
2014 में जीजेयू में सेमीनार में संबोधन के दौरान रोहित सरदाना ने कहा था कि छोटे शहरों से उठकर तरक्की करने वाले लोगों की बात ही कुछ और हाेती है। वो दूसरों के लिए उदाहरण बन जाते हैं। मैनें भी हिसार में पत्रकारिता में मास्टर डिग्री हासिल की और ठान लिया कि मुझे भी किसी बड़े न्यूज चैनल के कैमरे पर आना है। शुरू में झिझक भी हुई, मगर जब मौका मिला तो इसे अवसर में बदल दिया। पीत पत्रकारिता विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि हमें ये नहीं देखना कि बाकी क्या कर रहे हैं। हमें ये देखना है कि हम क्या कर सकते हैं। चैनल भी आपकी निष्ठा को देखते हुए बहुूत सी जीचाें में पॉलिसी से उलट जाकर कार्य करने की अनुमति देता है। इसलिए हमें हमेशा समाज की भलाई के लिए ही पत्रकारिता करने की ठान लेना चाहिए।
अपने शिक्षिकों से रखते थे बेहद लगाव
रोहित सरदाना अपने शिक्षिकों से बेहद लगाव रखते थे। वे जब भी जीजेयू आते तो विद्यार्थियों को पत्रकारिता में सफलता हासिल करने के मूल मंत्र जरूर बताते। रह रह कर अपने शिक्षिकों का सम्मान करने की बात भी कहते। 2014 में एक सेमीनार में पहुंचे तो अपने शिक्षक जनसंचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर प्रमोद कुमार जैना के प्रति उन्होंने विशेष सम्मान होने की बात कही। वहीं साथ ही प्रोफेसर मिहिर रंजन पात्र, प्रोफेसर विक्रम कौशिक व अन्य प्रोफेसरों से जुड़े किस्सों के बारे में भी बताते रहे।
खुद उठाते थे पढ़ाई का खर्च
रोहित सरदाना ने अनुभव शेयर करने के दौरान बताया था कि जब वो हिसार में पीजी डिग्री कर रहे थे तो साथ साथ पार्ट टाइम जॉब भी करते थे। वो अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकालते थे। साथ अन्य खर्च का भी जुगाड़ बन जाता था। रेडियो पर बोलने के अलावा हिसार में सिटी केबल पर भी न्यूज बुलेटिन करता था। जिससे जान पहचान भी अच्छी खासी बन गई थी। पीजी डिग्री के दौरान जब दिल्ली में एक निजी चैनल में ट्रेनिंग के लिए गया तो वहीं जॉब भी ऑफर हो गई।
कैमरे पर आने के लिए पत्रकारिता काे चुना, बाद में बन गया पैशन
रोहित सरदाना ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि वो शुरुआत में अभिनेता बनना चाहते थे, इसके लिए ड्रामा भी करना शुरू किया। थियेटर करते करते नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिए ऑडिशन भी दिए। मगर जब इसके बारे में घर बताया तो ज्यादा सहमति नहीं बनी। फिर मैनें सोचा कि शायद मुझे मीडिया लाइन में जाना चाहिए। ग्रेजुएशन के बाद मैं कुरुक्षेत्र से हिसार मास्टर डिग्री करने के लिए निकला। यहां काम करने के दौरान लोग मुझे जानने लगे। मगर मेरा बड़ा सपना था जो बड़े शहर में ही पूरा हो सकता था। मैंने फिर बड़े शहर का रुख किया। कैमरे पर आने के लिए मीडिया को चुना, मगर बाद में यही फील्ड पैशन बन गया।
भाषा पर काम करने के बाद मिले बड़े अवसर
रोहित सरदाना ने सेमीनार में बोलते हुए बताया कि बाहरी राज्य में हरियाणवी लहजा भाषा में ज्यादा न आए। इसके लिए मैनें हिंदी पर बहुत ज्यादा काम किया। शुरुआती दौर में कुछ चैनलों में हरियाणवी लहजा होने की बात कर काम भी नहीं दिया जाता। मगर मैनें हार नहीं मानी, हिंदी के साथ इंग्लिश पर भी काम करना शुरू कर दिया। फिर एक के बाद एक अवसर मिलते गए।

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