इस मौसम में चना की फसल पर बीमारियां फैलने का रहता है खतरा, ऐसे कर सकते हैं बचाव
इस मौसम में चना की फसल में कई बीमारी फैलने का खतरा रहता है। चना में अंगमारी या झुलसा के आक्रमण से किसान सचेत रहे। विशेषकर यदि नम व ठंडा रहे और वर्षा क ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, सिरसा। इस मौसम में किसान चना की फसल में विशेष ध्यान रखें। क्योंकि इस मौसम में चना की फसल में कई बीमारी फैलने का खतरा रहता है। चना में अंगमारी या झुलसा के आक्रमण से किसान सचेत रहे। विशेषकर यदि नम व ठंडा रहे और वर्षा के आसार दिखाई दें तो प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। सिरसा जिले में चना की दस हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बिजाई की गई है।
--- छेदक सुंडी का भी हो सकता है आक्रमण
चना पर फली छेदक सुंडी का आक्रमण भी इस मौसम में हो सकता है। इस कीट की सुंडी प्राय: हरे या पीले रंग की होती है। जो पत्तियों, कलियों व फलियों पर आक्रमण करती है। यह फलियों में बन रहे हरे बीज को खाकर नष्ट कर देती है। इससे बचने के लिए 200 मिली लीटर मोनोक्रोटोफास 36 एसएल या 400 मिली लीटर क्विनलफास 25 ईसी या 400 ग्राम कार्बेरिल को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त 80 मिली लीटर फेनवालरेट 20 ईसी या 50 मिली लीटर साइपरमेथ्रिन 25 ईसी या 150 मिली लीटर डेकामेथ्रिन पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसके बाद अगर जरूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव कर सकते हैं।
----जड़ गलन रोग
चना में जड़ गलन रोग दो प्रकार का होता है। गीला जड़ गलन रोग नमी वाली जमीन में पाया जाता है। शुष्क जड़ गलन रोग चना में फूल व फलियां बनते समय यह प्रमुख बीमारी होती है। इनका प्रकोप फसल की अंकुरण अवस्था में या फिर सिंचित क्षेत्रों में जब फसल बड़ी हो जाती है, तब होता है। भूमि की सतह के पास पौघे के तने पर गहरे भूरे धब्बे दिखाई पड़ता है। रोगी पौघे के तने व पत्ते हल्के पीले रंग के होते हैं। मुख्य जड़ से नीचे का भाग लग जाने के कारण जमीन में रह जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा. सुनील बैनीवाल ने बताया कि इस मौसम में किसान समय समय पर निरीक्षण करते रहे। अगर चना की फसल में बीमारी फैलती है। उसको तुरंत प्रभाव से नियंत्रण में करें।

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