पिता की प्रेरणा से 19 साल पहले राजनीति में आए थे रणबीर गंगवा, मुकाम पाते गए
पहली बार 2000 में जिला परिषद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन रहे सतवीर वर्मा को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं रणबीर गंगवा
हिसार, जेएनएन। सन 2000 में अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले रणबीर गंगवा डिप्टी स्पीकर बन गए हैं। 19 साल पहले अपने पिता स्व. राजाराम से प्रेरित होकर राजनीति में कदम रखा। 2000 में इनेलो ज्वाइन की और पहला चुनाव जिला परिषद का लड़ा और जीता। इसके बाद इन्होंने दोबारा जिला परिषद का चुनाव लड़ा और वाइस चेयरमैन बने। 55 वर्षीय रणबीर गंगवा पिछड़ा आयोग का चेयरमैन रहे सतबीर वर्मा को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। 2009 में नलवा विधानसभा बनने के बाद रणबीर गंगवा दो बार यहां से विधायक बने।
हालांकि रणबीर गंगवा अपना पहला विधानसभा चुनाव नलवा से हार गए थे। मगर 2014 के विधानसभा चुनाव में नलवा चुनाव में उपमुख्यमंत्री रहे चंद्र मोहन बिश्नोई और प्रो. संपत ङ्क्षसह जैसे दिग्गजों को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचे। रणबीर गंगवा को इनेलो ने पहला विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद राज्यसभा भेजा। इसके बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और हिसार ही नहीं प्रदेश की राजनीति में अपनी खास पहचान बनाई। आज रणबीर गंगवा को पिछड़ा वर्ग का बड़ा नेता माना जाता है।
साधारण रहन-सहन है पसंद
रणबीर गंगवा के पिता किसान थे। शुरु से ही वह साधारण परिवार में पले बढ़े। रणबीर गंगवा को साधारण रहना और साधारण खान-पान पसंद हैं। उनके घर में उनकी पत्नी केसर देवी, उनके दो बेटे संजीव और सुरेंद्र हैं। दोनों बेटों को शादी हो चुकी हैं।
रणबीर गंगवा का राजनीतिक सफर
- 2000-2005 तक जिला परिषद के मेंबर रहे।
- 2005-2010 तक जिला परिषद के वाइस चेयरमैन रहे।
- 2009 में रणबीर गंगवा ने नलवा हलके से चुनाव लड़ा। उनके सामने स्व. भजनलाल की पत्नी जसमा देवी और प्रोफेसर संपत ङ्क्षसह मैदान में थे। रणबीर गंगवा को इन चुनावों को 22500 वोट मिले थे, मगर वह ये चुनाव हार गए थे।
- 2010-2014 तक राज्यसभा सदस्य
- 2014-2019- नलवा से विधानसभा का चुनाव लड़ा और उपमुख्यमंत्री रहे चंद्रमोहन और प्रोफेसर संपत ङ्क्षसह को हराया।
- 2019 में भाजपा की टिकट पर नलवा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
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