सिरसा में शीतला माता मंदिर में धोक पूजा शुरू, बासोड़ा से होता है पूजन, जानें क्या है महत्व
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जागरण संवाददाता, सिरसा : चैत्र माह और शीतला माता एक दूसरे के प्रयाय है। देसी वर्ष की शुरूआत चैत्र मास से होती है। इसी चैत्र मास के शुरूआत में ही शीतला माता जिसे सेढ़ल माता भी कहते है। इसकी पूजा पूरा हिन्दू समाज किसी न किसी रूप में करता है। शीतला माता के मन्दिर की बजाए थान शब्द का इस्तेमाल होता है। होली के पश्चात शीतला माता का पूजन होता है। सिरसा में मुहल्ला जंडवाला में बाबा रामदेव मंदिर के समीप शीतला माता का थान है जहां सुबह सवेरे ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगनी शुरू हो जाता है। पहले शीतला माता के थान पर धोंक मारने के लिए पहले पूरा परिवार ही जाता था। अब परिवार की महिला अपने बच्चों को लेकर जाती है। महिलाएं शीतला माता को गुड के बने मीठे चावल, मीठी रोटी, दही इत्यादि का भोग लगाती है।
पहले बासोड़ा में बनती थी मीठी रोटियां, चावल
सर्वप्रथम घर में पहले दिन बासोड़ा बनता है। इस बासोड़ा में रसोई में पकवान बनते हैं। जिसमें मिठ्ठी रोटी (गुड़ की), मीठे चावल, राबड़ी व दही सभी घरों में बनते है। अनेक सामर्थ घरों में कई प्रकार के पकवान भी बनते है। अगले दिन सवेरे मिठ्ठी रोटी, चावल, राबड़ी तथा दही थाल में सजा कर शीतला माता के थान पर जाकर भोग लगवाया जाता है। सभी स्त्री और बच्चे यहां धोक मारते है, फिर घर जाकर यह भोग लगा प्रसाद बांटा जाता है। पहले तो इस दिन घरों में चूल्हा भी नही जलता था परन्तु अब वो बात नहीं है।
---मान्यता है कि शीतला माता के थान पर प्रसाद चढ़ाकर धोक मारने से बच्चों में किसी प्रकार की मौसमी बीमारी नहीं होती। पहले तो देखने में आता था कि कोई बीमार बच्चे को माता के थान पर धोक लगाने से ठीक हो जाता था एेसी मान्यता थी। अब बच्चों की बीमारियाें के लिए कई प्रकार के टीके लगने लगे है, इसलिए बीमार कम ही होते है।

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