Updated: Sun, 20 Jul 2025 09:37 PM (IST)
शिक्षा का अधिकार नियम में निजी स्कूलों की मनमानी से गरीब बच्चों के दाखिले अटके। 10700 स्कूलों में से 2664 ने 8070 आवेदन खारिज किए जिसमें किलोमीटर और आय प्रमाण पत्र की कमियां बताई गईं। निदेशालय ने रिपोर्ट तलब की है पर निजी स्कूलों की उदासीनता बरकरार है। 70% विद्यार्थियों को अभी तक दाखिला नहीं मिला और निदेशालय ने भी इस साल आरटीई में विशेष रूचि नहीं दिखाई।
जागरण संवाददाता, हिसार। आरटीई अर्थात शिक्षा का अधिकार नियम पर निजी स्कूलों की मनमानी एक बार फिर गरीब वर्ग के बच्चों पर भारी पड़ रही है। प्रदेश के 10,700 निजी स्कूलों में गरीब परिवारों के 11,803 विद्यार्थियों को दाखिला मिलना था।
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लेकिन 2,664 निजी स्कूलों ने गरीब वर्ग के बच्चों के 8,070 दस्तावेजों में कमियां बताते हुए उन्हें रिजेक्ट कर दिया। जिसमें 70 प्रतिशत से अधिक विद्यार्थी उपरोक्त योजना के तहत निजी स्कूलों में दाखिला लेने से वंचित रह गए।
असिस्टेंट डायरेक्टर ने समस्त निजी स्कूलों से आरटीई के तहत प्रवेश कक्षाओं में दाखिले की रिपोर्ट तलब कर ली है। इसमें कितने दाखिले हुए, कितने रिजेक्ट हुए, किस आधार पर दाखिले को रिजेक्ट किया गया सहित कारणों को भी स्पष्ट करना होगा।
जिसके बाद मौलिक शिक्षा निदेशक की टेबल पर रिपोर्ट को पेश किया जाएगा। उसी आधार पर फैसला लिया जाएगा। किलोमीटर-रिहायशी व वार्षिक आय प्रमाण पत्र में निकाली खामियां निजी स्कूल प्रबंधनों ने सर्वाधिक किलोमीटर मानक पर खामियां निकाली है।
निदेशालय ने घर से तीन किलोमीटर दायरे में आने वाले निजी स्कूलों में दाखिले के लिए विद्यार्थियों को छूट दी है। जबकि 60 प्रतिशत निजी स्कूल प्रबंधकों ने इस नियम का पालन करने से इंकार कर दिया है।
उनका तर्क है कि विद्यार्थी के घर से एक किलोमीटर के दायरे में आने वाले निजी स्कूलों में ही दाखिला मिल सकता है। इस कारण आवेदनों को रिजेक्ट किए गए। इसके अलावा रिहायशी व वार्षिक आय प्रमाण पत्र न होने का हवाला देकर दाखिला नहीं दिया है।
शिक्षा निदेशालय को ही नहीं पता कितने विद्यार्थियों को मिला दाखिला
12 जुलाई तक निजी स्कूलों को आरटीई के तहत दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या मुख्यालय को अपडेट करनी थी। शिक्षा निदेशालय ने रिपोर्ट मांगने के लिए पत्र भी लिखा। लेकिन उसके बावजूद निजी स्कूल प्रबंधकों की उदासीनता बरकरार रही।
निदेशालय ने 16 जुलाई तक फिर से निजी स्कूलों को रिपोर्ट भेजने का मौका दिया गया। लेकिन उसके बावजूद निजी स्कूलों ने रिपोर्ट मुख्यालय को भेजनी उचित नहीं समझी।
ये नियम टूटे
जनवरी में आरटीई के तहत प्रक्रिया शुरू करनी थी। जबकि मार्च तक विद्यार्थियों को संबंधित योजना के तहत निजी स्कूलों में दाखिला मिल जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मार्च के अंत में पत्राचार कर आरटीई के तहत प्रक्रिया शुरू की गई।
आलम यह है कि इस साल का पहला क्वार्टर बीत चुका है। जबकि दूसरा क्वार्टर का पहला माह बीतने को है। लेकिन 70 प्रतिशत विद्यार्थियों को आरटीई के तहत दाखिला नहीं मिल पाया है।
अभी तक गरीब वर्ग के 70 प्रतिशत बच्चे निजी व सरकारी स्कूलों में दाखिला ले चुके हैं। शिक्षा निदेशालय ने भी इस साल आरटीई पर कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई है। इसका प्रभाव यह दिखा कि अभिभावकों को पता ही नहीं लगा कि कब आरटीई के तहत आवेदन करना था और कब काउंसिलिंग हुई।
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