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    किसानों की चांदी, एचएयू ने इजाद की गेहूं की नई किस्म 1270, प्रति हेक्टेयर 75 क्विंटल पैदावार

    By Manoj KumarEdited By:
    Updated: Thu, 25 Feb 2021 12:49 PM (IST)

    एचएयू के विज्ञानियों द्वारा विकसित की गई गेहूं की किस्म डब्ल्यूएच-1270 नया रिकार्ड बनाती दिख रही है। इस किस्म की औसत पैदावार भी इतनी है कि करनाल के भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान भी इसे काफी अच्छा मान रहे हैं।

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    गेहूं की नई वैरायटी की 75.85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आंकी गई है जो अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है

    हिसार, जेएनएन। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों द्वारा विकसित की गई गेहूं की किस्म डब्ल्यूएच-1270 नया रिकार्ड बनाती दिख रही है। इस किस्म की औसत पैदावार भी इतनी है कि करनाल के भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान भी इसे काफी अच्छा मान रहे हैं। इस किस्म की औसतन पैदावार 75.85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आंकी गई है जो अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। ऐसे में अब अधिक से अधिक किसानों तक यह पहुंचाने की तैयारी विश्वविद्यालय कर रहा है। हाल ही में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. जीपी सिंह एचएयू में आए तो उन्होंने भी विज्ञानियों से अपील की कि वह इस किस्म का अधिक से अधिक बीज तैयार करें और इसका प्रचार व प्रसार करते हुए किसानों को उपलब्ध करवाएं ताकि किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके।

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    आमदनी बढ़ाने वाली पद्धति पर दिया जाएगा जोर

    निदेशक डा. जीपी सिंह ने बताया कि कृषि वैज्ञानिक समय पर बिजाई की जाने वाली व अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्मों को विकसित करने पर अधिक शोध कार्य करें ताकि किसानों की आमदनी में इजाफा हो सके और वे खुशहाल हो सकें। उन्होंने विश्वविद्यालय में कृषि महाविद्यालय के गेहूं व जौ अनुभाग के अनुसंधान क्षेत्र का दौरा करने के उपरांत विज्ञानियों से रूबरू हुए।

    कई राज्यों में उगाई जा रही है यह किस्म

    गेहूं की यह उन्नत किस्म हरियाणा सहित कुछ अन्य राज्यों में भी उगाई जा रही है। इसकी जानकारी किसान विज्ञानियों से ले सकते हैं। वहीं कुलपति प्रो. समर सिंह ने कहा कि वे ऐसी तकनीकों एवं विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों को विकसित करने पर जोर दें जिससे किसानों को कम खर्च में अधिक लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि यहां से विकसित विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों व तकनीकों को कृषि विज्ञान केंद्रों व अन्य माध्यमों से ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाने की कोशिश करें। किसानों को भी अपने स्तर पर विश्वविद्यालय के विज्ञानियों से मिलकर अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहिए। किसान अपनी फसलों पर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिश किए गए कीटनाशकों का ही उनकी सलाहनुसार प्रयोग करें ताकि समय रहते फसलों पर आने वाली बिमारियों की रोकथाम की जा सके और फसलों से अधिकतम पैदावार हासिल की जा सके।