कीटनाशक दवाओं पर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रहे मच्छर, इंसानों के लिए नई चुनौती
मच्छर इंसानों के लिए नई चुनौती बनते जा रहे हैं। कारण ये है कि मच्छर बाजार में आ रही कीटनाशक दवाओं के प्रति अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते जा रहे हैं। अगर कोई व्यक्ति या जानवर किसी जूनोटिक बीमारी से ग्रसित है और अगर उसे मच्छर काट लेता है तो।

हिसार, जागरण संवाददाता। एक मच्छर इंसान को क्या-क्या बना सकता है यह डायलाग हिंदी सिनेमा फिल्म में आपने सुना होगा। मगर अब यह डायलाग चरित्रार्थ होता दिखाई दे रहा है क्योंकि मच्छर इंसनों के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं। इन पर कीटनाशक दवाओं का भी असर कम हो रहा है। वेटेनेरियल और मेडिकल चिकित्सक इस बात को लेकर काफी गंभीर हैं। क्योंकि मच्छर जूनोटिक रोगों के प्रसार में प्रमुख रोल अदा कर सकता है।
सिविल अस्पताल में चिकित्सक डा. अरुण कुमार नंदा बताते हैं कि मच्छर बाजार में आ रही कीटनाशक दवाओं के प्रति अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते जा रहे हैं। यही कारण है कि मच्छरों को मारने के लिए प्रयोग किया जाने वाला डीडीटी केमिकल अब अपने विभिन्न रूपों में बाजार में आ चुके हैं। रोहतक पीजीआइएमएस से हाल ही में एमडी पासआउट चिकित्सक अरुण बताते हैं कि कम्युनिटी मेडिसिन की पर पढ़ाई के दौरान उन्होंने मच्छरों पर दवाओं के असर को लेकर काम किया।
इस दौरान उन्होंने देखा कि मच्छर किस प्रकार से साल दर साल प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने जा रहे हैं। यह स्थिति लोगों के लिए काफी चुनौती बन सकती है। मच्छरों के द्वारा प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की प्रक्रिया इतनी तेज है कि विशेषज्ञों को जल्द से जल्द नया केमिकल तैयार रखना होता है।
मच्छर क्यों बन सकते हैं इंसानों के लिए चुनौती
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ विज्ञानी और राष्ट्रीय एकल स्वास्थ्य कार्यक्रम के रीजनल कोआर्डिनेटर डा बीआर गुलाटी बनाते हैं कि महामारी विज्ञान में वेक्टर वह एजेंट होता है जो संक्रामक रोगजनक को दूसरे जीव में ले जाता है। इसमें मच्छर, जू, घोंघा, मक्खी आदि शामिल हैं। यह वेक्टर संक्रामक बीमारियों के वाहक के रूप में कार्य करते हैं। अगर कोई व्यक्ति या जानवर किसी जूनोटिक बीमारी से ग्रसित है और अगर उसे मच्छर काट लेता है तो मच्छर भी संक्रमित हो जाएगा। आगे मच्छर जिसे-जिसे काटेगा उसे उस बीमारी से संक्रमित बनाएगा। ऐसे में मच्छर किसी संक्रामक रोक का तेजी से प्रसार कर सकते हैं।
क्या होती हैं जूनोटिक बीमारियां
वह रोग जो पशुओं के माध्यम से मनुष्यों में और मनुष्यों से फिर पशुओं में फैलते है उन्हें जूनोसिस या जूनोटिक रोग कहा जाता है। यह रोग 2300 ईसा पूर्व से चली आ रही है। जूनोटिक संक्रमण प्रकृति या मनुष्यों में जानवरों के अलावा बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी के माध्यम से फैलता है। जूनोटिक रोगों में मलेरिया, एचआइवी एडस, इबोला, कोरोना वायरस रोग, रेबीज आदि शामिल हैं। इन बीमारियों में खास यह है कि यह समय के हिसाब से खुद को म्यूटेट करते रहते हैं। ऐसे में एक वायरस पर प्रभावी वैक्सीन आ भी जाए तो वह जरूरी नहीं कि दूसरे पर भी असर करेगी।
लारवा स्टेज में ही मार रहे
डा अरुण कुमार बताते हैं कि जब मच्छर कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ले रहे हैं तो हमारा प्रयास है कि हम इन्हें लारवा की स्टेज में ही खत्म कर दें। इसी लिए अधिक से अधिक सरकारी तंत्र में लारवा खाने वाली मछलियों का प्रयोग किया जाता है। यह चुनौतीपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि हम पता नहीं कर सकते हैं कि किसी संक्रामक रोग को इंसानों तक किसने पहुंचाया। इसलिए विशेषज्ञों को वेक्टरों को लेकर भी अभी शोध कार्य करने होंगे।
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