Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नीम के पौधे लगा पाएं रोजगार, करीब डेढ़ हजार की आमदनी देता है चार से पांच फीट लंबा पौधा

    By Manoj KumarEdited By:
    Updated: Wed, 04 Dec 2019 10:37 AM (IST)

    नीम में औषधीय गुण होता हैं इस कारण अब इसका प्रयोग औद्योगिक रूप से भी किया जा रहा है। उत्तर भारत में कई उद्योग हैं जहां नीम के बीजों की डिमांड है।

    नीम के पौधे लगा पाएं रोजगार, करीब डेढ़ हजार की आमदनी देता है चार से पांच फीट लंबा पौधा

    हिसार, जेएनएन। नीम में औषधीय गुण होता हैं, इस कारण अब इसका प्रयोग औद्योगिक रूप से भी किया जा रहा है। उत्तर भारत में कई उद्योग हैं जहां नीम के बीजों की डिमांड है। इसके लिए हरियाणा में दक्षिणी क्षेत्र काफी उपयुक्त है। यहां के किसान नीम के बीजों को बेचकर आय भी कर रहे हैं। अन्य किसान और खेतिहर मजदूर भी इस प्रणाली को अपना सकते हैं। एचएयू के वैज्ञानिक बताते हैं कि नीम का पौधा 120 से 150 सेंटीमीटर का होने पर लगभग 1600 रुपये की आमदनी देता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दरअसल नीम का वानस्पतिक नाम अजाडिरेक्टा इंडिका है, जो कि मिलिएसी परिवार से संबंध रखने वाला बहुत ही सख्त, सदाबहार व प्रकाश चाहने वाला पेड़ है। चरक, सुश्रुत एवं प्राचीन भारत के शल्य चिकित्सकों ने इसके औषधीय और आहार संबंधी गुणों पर बहुत जोर दिया है। प्रदेश में नीम हर जगह लगाया जा सकता है, अगर हर खेत में 3 से 4 नीम के वृक्ष हों तो फसलों में हानिकारक कीड़े और बीमारियों का प्रकोप कम होता है।

    नींम की अच्छी उपज के लिए यह उपाय अपनाएं

     भूमि: नीम हर प्रकार की मिट्टी जैसे सूखी, पथरीली, रेतीली और चिकनी मिट्टी में अच्छी तरह उग सकता है। लेकिन जलभराव वाले स्थानों पर या शुष्क मौसम में जब जल स्तर जमीन में 18 मीटर से नीचे हो तब यह पैदा नहीं हो सकता है। जिस भूमि का क्षारक 6.2 या इससे ऊपर है, नीम की खेती के लिए उपयुक्त रहती है।

    पौधशाला: नीम के बीजों को किसी भी प्रकार के उपचार की आवश्यकता नहीं होती और एकत्रित करने के एक सप्ताह के अंदर थोड़ा सुखाकर बो देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। यह जुलाई माह में कतारों में बोये जाते हैं। कतार से कतार की दूरी 20 सेंटीमीटर और बीज से बीज की दूरी 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इसके साथ ही बीज को 1.5 सेंटीमीटर की गहराई  में बोया जाना चाहिए। इससे 7 से 8 दिनों में नीम का अंकुरण प्रारंभ हो जाता है। लगभग तीन सप्ताह तक चलता रहता है। सितंबर में पौधों को क्यारियों से पॉलीथिन की थैलियों में बदल दिया जाता है। नीम के बीजों को सीधे पॉलीथिन की थैलियों में भी बो सकते हैं।

    पौधारोपण: एक या दो वर्ष पुराने पौधों को मिट्टी के साथ उठाकर पौधारोपण के लिए प्रयोग किया जाता है। दो वर्ष की अपेक्षा एक वर्ष पुरानी पौध अधिक अच्छी होती है। वृक्षारोपण अप्रैल से मई में 45 सेंटीमीटर बाई 45 सेंटीमीटर बाई 45 सेंटीमीटर आकार के गड्ढों में जुलाई से अगस्त में बरसात के मौसम में किया जाता है। शुष्क क्षेत्रों में नीम का पौधारापेण अक्टूबर महीने में करना चाहिए।

    ऐसे करें पौधों की देखभाल

    नीम प्रारंभिक अवस्था में अधिक पाला नहीं झेल सकता है। इसे पाले से बचाना चाहिए। छोटी अवस्था में पशुओं से बचाने के लिए बाड़ लगानी चाहिए, इसके साथ अधिक सूखा पड़े तो पानी भी दें। इसके साथ ही कृषि वानिकी के लिए पौधे 10 मीटर बाई 10 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं। हालांकि दक्षिण हरियाणा में पानी की कमी के कारण अन्य वृक्षों की बढ़वार कम हो जाती है, मगर नीम के पौधों को खेत की मेंढों पर 5 मीटर की दूरी पर लगाकर किसान इससे लाभ प्राप्त कर सकता है। नीम के साथ चारे वाली फसलें अधिक लाभदायक हैं। रबी में बरसीं व जई और खरीफ में ज्वार की फसल अच्छी पैदावार देती है। इसके साथ ही छाया पसंद करने वाली सब्जियां काफी कामयाब हैं। अनाज वाली फसलें व सरसों की पैदावार काफी कम होती है।  

    नीम का उपयोग

    नीम की लकड़ी लाल रंग व सख्त और टिकाऊ होती है। इसका प्रयोग मकान बनाने के लिए और फर्नीचर बनाने में किया जाता है। इससे जलाने वाली लकड़ी प्राप्त होती है। नीम के तेल और नीम से प्राप्त होने वाले  तत्वों से कई प्रकार के कीटनाशक व दवाएं बनाई जाती हैं। इसकी छोटी-छोटी टहनियों को दातून के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इसे चारे के लिए अच्छा वृक्ष माना गया है।

    पैदावार व बीज की बिक्री

    पौधा लगाने के 5 वर्ष बाद नीम में फल आने लगते हैं, 10-12 वर्ष पुराने एक वृक्ष से वर्ष में 30 से 55 किलोग्राम ताला ङ्क्षनवोली की पैदावार होती है। निवोलियों को एकत्रित करने के बाद बिना सुखाए व छिलका उतारे बेचा जा सकता है। लेकिन फैक्ट्रियों वाले छिलके के साथ सूखी हुई ङ्क्षनवोली को ही लेना पसंद करते हैं।