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    28 रुपये का उधार चुकाने अमेरिका से हिसार पहुंचे नौसेना कोमोडोर बीएस उप्पल, जानिए क्या है पूरा मामला

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Sun, 05 Dec 2021 03:50 PM (IST)

    उधार चुकाने के लिए कोई सात समंदर पार से आए ऐसा शायद ही आपने पहले कभी सुना होगा। लेकिन नौसेना के कोमोडोर बीएस उप्पल 68 वर्ष पुराना उधार चुकाने अमेरिका से हिसार पहुंचे। पूरा मामला जानने के लिए ये रिपोर्ट पढ़ें...

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    हिसार में उधार के पैसे चुकाते नौसेना कोमोडोर बीएस उप्पल।

    जागरण संवाददाता, हिसार। आपने उधारी चुकाने के कई मामले देखे होंगे मगर यह मामला सबसे अलग है। हरियाणा में प्रथम नौसेना बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले नौसेना सेवानिवृत्त कामोडोर बीएस उप्पल 85 वर्ष की उम्र में हरियाणा के हिसार आए हैं। इनके हिसार आने का कारण जानकर आप हैरान रह जाएंगे। दरअसल यह बीएस उप्पल 68 वर्ष पुराने अपने 28 रुपये के उधार को चुकता करने के लिए हिसार तक पहुंचे हैं। रिटायमेंट के बाद वह अपने बेटे के पास अमेरिका रहते थे। वह हिसार के मोती बाजार स्थित दिल्ली वाला हलवाई के पास पहुंचे और दुकान के स्वामी विनय बंसल को बताया कि तुम्हारे दादा शम्भू दयाल बंसल को मैंने 1954 में 28 रूपए देने थे, परंतु मुझे अचानक शहर से बाहर जाना पड़ गया और नौसेना में भर्ती हो गया। आपकी दुकान पर मैं दही की लस्सी में पेड़े डालकर पीता था जिसके 28 रूपए मैंने देने थे।

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    हिसार की दो बातें हमेशा याद रहती है

    फौजी सेवा के दौरान हिसार आने का मौका नहीं मिला और रिटायर होने के बाद मैं अमेरिका अपने पुत्र के पास चला गया। वहां मुझे हिसार की दो बातें हमेशा याद रहती थीं। एक तो आपके दादा के 28 रूपए देने थे और दूसरा मैं हरजीराम हिन्दु हाई स्कूल में दसवीं पास करने के बाद नहीं जा सका था। आप की राशि का उधार चुकाने और अपनी शिक्षण संस्था को देखने के लिए मैं शुक्रवार को विशेष रूप से हिसार में आया हूं। उप्पल ने विनय बंसल के हाथ में दस हजार की राशि रखी तो उन्होंने लेने से इंकार कर दिया। तब उप्पल ने आग्रह किया कि मेरे सिर पर आपकी दुकान का ऋण बकाया है, इसे ऋण करने के लिए कृपया यह राशि स्वीकार कर लो। 

    सिर्फ इसी कार्य के लिए अमेरिका से आए

    मैं अमेरिका से विशेष रूप से इस कार्य के लिए आया हूं। मेरी आयु 85 वर्ष है कृपया इस राशि को स्वीकार कर लो। तब विनय बंसल ने मुश्किल से उस राशि को स्वीकार किया तो उप्पल ने राहत की सांस ली। उसके बाद अपने स्कूल में गए और बंद स्कूल को देखकर निराश लौट आए। स्मरण रहे कि उप्पल उस पनडुब्बी के कमांडर थे जिसने भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के जहाज को डुबो दिया था और अपनी पनडुब्बी तथा नौसैनिकों को सुरक्षित ले आए थे। इस बहादुरी के लिए भारतीय सेना ने उन्हें बहादुरी के नौसेना पुरस्कार से सम्मानित किया था।