Lumpy Skin Disease Vaccine: दो रुपये में पशुओं को मिलेगा सुरक्षा कवच, लांच हुई पहली स्वदेशी वैक्सीन
Lumpy Skin Disease Vaccine वर्तमान में लंपी स्किन डिजीज रोग पूरे देश में भयंकर महामारी का रूप ले चुका है। गायों की अकाल मृत्यु का मुख्य कारण बन रहा है। ऐसे में स्वदेशी सजातीय वैक्सीन लंपी प्रो वैक को लांच किया गया है।

हिसार, जागरण संवाददाता। लंपी स्किन डिजीज की स्वदेशी सजातीय वैक्सीन लंपी प्रो वैक का बुधवार को नई दिल्ली स्थित कृषि भवन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लांच किया। इस वैक्सीन को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के तहत राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीइ) हिसार एवं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद इज्जतनगर के विज्ञानियों ने संयुक्त प्रयास से इस वैक्सीन को विकसित किया है।
एलएसडी विषाणु कैप्रीपाक्स परिवार का सदस्य है और भेड़-बकरी पाक्स से आनुवंशिक रूप से काफी मिलता जुलता है। वर्तमान में देश में एलएसडी का कोई सजातीय टीका उपलब्ध न होने के कारण भारत सरकार ने गायों को एलएसडी रोग से बचाव के लिए भेड़-बकरी पाक्स के टीके (विषमजातीय) के उपयोग को अधिकृत किया है। मगर अब यह टीका गायों में एलएसडी के खिलाफ केवल आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है । विज्ञानियों का दावा है कि यह वैक्सीन पशुओं को शत प्रतिशत सुरक्षा देने में सक्षम है।
वैक्सीन की खास बात
खास बात है कि इस वैक्सीन की एक डोज में एक से दो रुपये प्रति डोज तक का ही खर्चा होगा। ऐसे में यह पशुपालकों के लिए काफी सस्ती भी होगी। वैक्सीन के विमोचन के दौरान केंद्रीय पशु पालन मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला, कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी के साथ साथ आइसीएआर के महानिदेशक डा हिमांशु पाठक, उप महानिदेशक डा बीएन त्रिपाठी, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली से निदेशक डा त्रिवेणी दत्त, एनआरसीई के निदेशक डा यशपाल व वरिष्ठ विज्ञानी डा नवीन कुमार सहित अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।
हमारे लिए स्वदेशी वैक्सीन क्यों जरूरी थी
वर्तमान में यह रोग पूरे देश में भयंकर महामारी का रूप ले चुका है और गायों की अकाल मृत्यु का मुख्य कारण बन रहा है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि गायों के अलावा अन्य जानवरों में भी इसका प्रकोप हो सकता है। यह बीमारी पशुपालकों के आर्थिक नुकसान का प्रमुख कारण है। इस बीमारी से सभी आयु की गायें प्रभावित होती हैं। यह बीमारी प्रमुखतया मच्छरों, और खून चूसने वाले चीचड़ों व मक्खियों के काटने से एक से दूसरे जानवर में फैलती है। अब जब यह बीमारी पूरे देश में फैल चुकी है तो पशुओं काे बचाने के लिए हमें वैक्सीन की जरूरत होती और ऐसी परिस्थिति में प्राइवेट कंपनियाें से महंगे दामों में वैक्सीन लेनी पड़ती। मगर इस वैक्सीन के आने से कई समस्याएं दूर होंगी।
वैक्सीन के लिए यह प्रक्रिया अपनाई गई
हिसार स्थित एनआरसीई के निदेशक डा यशपाल बताते हैं कि लंपी प्रो वैक को विकसित करने के लिए विषाणु को अश्व अनुसंधान केंद्र स्थित प्रयोगशाला में वर्ष 2019 में अलग किया गया था। इसके लिए सैंपल को झारखंड के रांची में फैली एलएसडी महामारी के दौरान पशु से लिया गया था। इसके बाद विषाणु को वीरो कोशिकाओं में लगातार 50 बार प्रयोग किया। परिणाम स्वरूप जो विषाणु मिला उसकी रोगजनक क्षमता खत्म हो चुकी थी। इसलिए इसे वैक्सीन बनाने में प्रयोग किया गया। यह होमोलागस एलएसडी वैक्सीन पशुओं को एक वर्ष से अधिक समय तक इस बीमारी से प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है।
वैक्सीन की खुराक व टीकाकरण का तरीका
एनआरसीई के वरिष्ठ विज्ञानी डा नवीन कुमार बताते हैं कि यह वैक्सीन की एक डोज में लाइव एटेन्यूटेड एलएसडी विषाणु की एक निश्चित मात्रा होती है। टीके की प्रत्येक शीशी में 50 डोज फ्रीज ड्राइड रूप में होती है। डाइलुएंट की 50 मिलीलीटर की बोतलों में अलग आपूर्ति की जाती है। उपयोग से ठीक पहले फ्रीज ड्राइड को डाइलुएंट में एक निश्चित मात्रा में मिलाया जाता है। इसके बाद प्रति पशु एक मिलीलीटर डोज त्वचा के नीचे दी जाती है। इस वैक्सीन को चार डिग्री सेल्सियस तापमान में रखना चाहिए। एक बार मिश्रण बना लिया तो कुछ ही घंटों में प्रयोग करना होगा।
प्रतिक्रिया
आइसीएआर के विज्ञानी पिछले कुछ वर्षों से इस बीमारी पर गहन शोध कर रहे थे। इस दौरान वैक्सीन बनाने का कार्य भी किया गया। इस समय एक स्वदेशी वैक्सीन की काफी जरूरत है। ऐसे में यह वैक्सीन पशुओं की जान बचाने में कारगर साबित होगी। विज्ञानियों की मेहनत के लिए उन्हें बधाई।

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