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    वाह भाई वाह, लाखों के पैकेज की नौकरी छोड़ गायों की दुर्दशा देख गोपालक बन गए एमबीए पास सच्चिदानंद

    By Manoj KumarEdited By:
    Updated: Fri, 21 Jan 2022 01:47 PM (IST)

    गांव खाराखेड़ी की गोशाला में युवा संत कार्य कर रहे है। गो सेवा में पिछले 6 सालों से लगे युवा संत सच्चिदानंद अब नस्ल सुधार के लिए कार्य कर रहे है। इसका ...और पढ़ें

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    एमबीए पास सच्चिदानंद फतेहाबाद के गांव खाराखेड़ी की गोशाला में पिछले कई साल से सेवा कर रहे हैं

    राजेश भादू, फतेहाबाद : अक्सर लोग गोवंश की दयनीय हालत पर चिंता व्यक्त करते हैं। हालात सुधारने के नाम पर प्रयास बहुत कम लोग ही करते है। उनमें से एक गाय को माता मानते हुए उसे फिर से उसे कामधेनु का दर्जा दिलवाने के लिए गांव खाराखेड़ी की गोशाला में युवा संत कार्य कर रहे है। गो सेवा में पिछले 6 सालों से लगे युवा संत सच्चिदानंद अब नस्ल सुधार के लिए कार्य कर रहे है। इसका गांव की गोशाला को ही नहीं क्षेत्र के गोपालकों को खूब लाभ हुआ हैं। जिसका ग्रामीण अक्सर बखान करते हैं। उनका कहना है कि उनका अभियान का व्यापक असर आगामी पांच साल में देखने को मिलेगा।

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    सच्चिदानंद ने बंगलुरू के जाने माने संस्थान आईआईबीएम यानी भारतीय प्रबंधन संस्थान बंगलुरू से एमबीए करने के उपरांत गुरुग्राम में डीएलएफ में कार्य किया। जहां पर उनकी करीब 5 लाख रुपये सालाना पैकेज के साथ कैंपस प्लेसमेंट हुई थी। इसके बाद अन्य कंपनियों में काम किया। हालांकि बाद में गोवंश की दुर्दशा को देखने से मन विचलित हुआ। इसी दौरान राजीव दीक्षित के बारे में पढ़ा। इसके बाद उनके आडियों भी सुने तो गोसेवा शुरू कर दी।

    पहले व्यवसायिक फिर निशुल्क शुरू की सेवा

    संचिदानंद ने बताया कि वे बरवाला के निकटवर्ती गांव ढाणी गारण के निवासी हैं। कागजों में उनका नाम दर्शन कुमार है। गो सेवा के लिए 2015 में नौकरी छोड़ दी। फिर गायों की हालत सुधार के लिए दो दिन गोशाला में अपना प्लान लेकर गए। लेकिन किसी भी गोशाला संचालकों को उनके प्लान अनुसार कार्य करने के लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद डबवाली में व्यवसायी गो पालन शुरू किया। करीब तीन सालों में 350 के करीब गोवंश हो गया। इन गायों में कई गाय, बछड़ियों व सांड ने नेशनल स्तर पर इनाम जीतकर पहला स्थान प्राप्त किया। गोवंश का सालाना काम करोड़ों में पहुंच गया।

    अब चार नस्ल पर कर रहे कार्य

    सच्चिदानंद ने बताया कि गोवंश पालन का व्यवसाय तेजी से बढ़ा। इसके बाद उनकी नारनौल के गांव में महंत बिटठल गिरी के प्रेरणा मिली। उनके बताया अध्यात्म के मार्ग से इतने प्रभावित हुए और उनसे संन्यास की दीक्षा ले ली। इसके बाद कुछ समय तक उनके साथ गोसेवा के लिए कार्य किया। बाद में गांव खाराखेड़ी में गोशाला में आ गए। अब गांव खाराखेड़ी की गोशाला मे राठी, साहिवाल, थारपारकर व हरियाणा नस्ल के सुधार पर कार्य शुरू किया। अब इन चारों नस्ल के 20 के करीब सांड हैं। आसपास के क्षेत्र के गोपालकों के लिए निशुल्क कृत्रिम गर्भदान करवाते है। वहीं गोशाला में गायों के नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाया हुआ है। जिसमें करीब 200 गायों पर काम चल रहा हैं।

    गोशाला से बने बना रहे पंच-गव्वय उत्पाद

    सच्चिदानंद महाराज ने बताया कि गोशाला से गांव में आर्थिक उन्नति का कारण हो। इसके लिए अनेक प्रकार के पंच-गव्वय उत्पाद तैयार कर रहे है। जिसमें धूप, शैंपू, घी, हवन सामग्री, साबून, कपड़े व बर्तन धोने का फाउंडर, फिनाइल सहित कई उत्पाद है। इससे अब गोशाला में आय होने लगी है। उनका कहना है कि उनका लक्ष्य गोशालाओं का साधन संपन्न बनाने का है। नस्ल सुधार होने के साथ उत्पाद बनाने से काफी हद तक सुधार हो रहा है।