बदलते ट्रेंड और आधुनिकता में सिमटी कोथली के सुहाली और गुलगुलों की खुशबू
रक्षा बंधन तो भाई-बहन के बीच के प्यार को गाढ़ा करने वाला त्योहार है ही, वहीं सावन की कोथली इसमें और ज्यादा चासनी घोलने का काम करती है। सावन के महीने अ ...और पढ़ें

जेएनएन, हिसार : रक्षा बंधन तो भाई-बहन के बीच के प्यार को गाढ़ा करने वाला त्योहार है ही, वहीं सावन की कोथली इसमें और ज्यादा चासनी घोलने का काम करती है। सावन के महीने अलग-अलग तरह के सामान लेकर भाई अपनी बहन के घर जाता है और भाई को देख बहन की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। सालों से ये परंपरा हरियाणा में चली आ रही है। मगर आधुनिकता के दौर में अब इस परंपरा में बदलाव देखने को मिल रहा है और सुहाली और गुलगुलों की खुशबू अब बंद डिब्बे की मिठाई में सिमटती जा रही है। समय का अभाव भी इसका एक कारण माना जा रहा है। वहीं सुहाली गुलगुलों के साथ घेवर और बिस्कुट और मठ्ठी भी कोथली का अहम हिस्सा है। यही कारण है कि सावन महीना शुरू होते ही दुकानों पर इन सभी जीचों को सजा दिया जाता है और लेने वालों की भीड़ लगी रहती है। --घेवर और फिरनी का ज्यादा चलन
सुहाली गुलगुलों का क्रेज अब कम हो रहा है तो वहीं घेवर और फिरनी का चलन कोथली में ज्यादा हो रहा है। बाजार में तीन तरह के घेवर देखने को मिलते हैं। इसमें सफेद रंग का घेवर कम दाम में मिलता है तो वहीं भूरे और क्रीम वाला घेवर ज्यादा महंगा होता है। पहले की तुलना में अब बताशे लेकर जाने की परंपरा भी कम हो रही है। इसकी जगह भी अब मिठाई लेकर जाना ही लोग ज्यादा पसंद करते हैं। ---ससुराल में कोथली बांटने का प्रचलन, प्यार बढ़ाने का प्रतीक
भाई कोथली में जो भी सामान लेकर जाता है। उसे बहन अपनी ससुराल में परिवार में बांटती है। साथ ही आस-पास के लोग भी कोथली का सामान खाने के लिए घर भी आते हैं। इससे आपसी प्रेम भी बढ़ता है तो साथ ही कोथली भाई और बहन के बीच के प्यार को भी दर्शाती है। भाई कोथली में बेहतर से बेहतर सामान लेकर जाते हैं ताकि देखने और खाने वाले वाहवाही करें। खाने के सामान के अलावा बहन और ससुरालजनों के लिए भाई तील यानि सूट भी लेकर जाता है। --मिट्ठी तो करदे मां मेरी कोथली
सावन के गीतों में कोथली को लेकर लोकगीत भी हैं। इसमें मिट्ठी तो कर दे मां मेरी कोथली, जाऊंगा बेबे के पास, सावन में बोल्या रै पपीहा आदि सुनने को मिलते हैं। शादी के बाद बाकी सावन के महीने में तो भाई बहन के पास आता है। मगर शादी के बाद पहले सावन महीने में ससुराल पक्ष के लोग लड़की के मायके खाने पीने का सामान लेकर जाते हैं। इसे सुंधारा कहा जाता है। मान्यता है कि शादी के बाद पहले सावन में सास और बहू को एक साथ नहीं रहना चाहिए, इससे दोनों में किसी एक का स्वास्थ्य बिगड़ने की संभावना रहती है। ऐसे में शादी के बाद पहले सावन में लड़की एक महीना अपने मायके ही रहती है। हालांकि वर्तमान में इस परंपरा में भी बदलाव हो गया हैशादी के बाद पहले सावन में बहन के पास भाई जो सामान लेकर जाता है तो वहीं कोथली लेकर आता है तो वहीं शादी के बाद जब पहले सावन लड़की अपने मायके जाती है। तो ससुराल पक्ष के लोग शगुन के तौर पर सामान लेकर जाते हैं। इसे सिंदारा कहा जाता है।

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