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वर्ल्‍ड रेसलिंग चै‍ंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे दीपक को अपने हिस्‍से का दूध भी पिला देते थे पिता

20 वर्षीय दीपक विश्व कुश्ती प्रतियोगिता के खिताबी मुकाबले में पहुंच चुका है। फाइनल में प्रवेश के साथ ही उसने 2020 में होने वाले ओलंपिक के लिए भी क्वालीफाई कर लिया।

By Manoj KumarEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 11:57 AM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 12:54 PM (IST)
वर्ल्‍ड रेसलिंग चै‍ंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे दीपक को अपने हिस्‍से का दूध भी पिला देते थे पिता
वर्ल्‍ड रेसलिंग चै‍ंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे दीपक को अपने हिस्‍से का दूध भी पिला देते थे पिता

बहादुरगढ़ (झज्जर) [प्रदीप भारद्वाज] एशियन चैंपियन पहलवान बजरंग पूनिया के बाद झज्जर की माटी (छारा गांव) से निकला एक और लाल दीपक पूनिया कुश्ती के क्षितिज पर सूरज बनकर चमका है। पांच साल की उम्र से कुश्ती का शौक और गांव के अखाड़े से शुरू हुआ कामयाबी का सफर आज पूरी दुनिया देख रही है। 20 वर्षीय दीपक विश्व कुश्ती प्रतियोगिता के खिताबी मुकाबले में पहुंच चुका है। फाइनल में प्रवेश के साथ ही उसने 2020 में होने वाले ओलंपिक के लिए भी क्वालीफाई कर लिया। बेटे की इस उपलब्धि पर सुभाष और कृष्णा फूले नहीं समा रहे।

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शून्य से शिखर तक

दीपक के पिता सुभाष खेतीबाड़ी और पशुपालन करते हैं। मां कृष्णा गृहिणी है। दीपक की दो बड़ी बहनें मनीषा और पिंकी शादीशुदा हैं। परिवार के पास महज डेढ़ एकड़ जमीन है लेकिन इस सबके बावजूद अभावों को मात दे दीपक कुंदन सा खरा निकला। वल्र्ड चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचा। न केवल हरियाणा बल्कि भारत का नाम विश्व पटल पर रोशन किया। फिलहाल दीपक सेना में कार्यरत हैं। उसके नाम और भी कई उपलब्धियां हैं।

पिता बोले- दूध कम हुआ तो खुद नहीं पिया, बेटे को ही दिया

पांच साल की उम्र थी दीपक की। जब मैं खेत में जाता तो पास में ही अखाड़े को वह निहारता था। वहीं से दीपक को प्रेरित किया। उसने भी जैसे यही सोच रखा था। गांव के लाला दीवानचंद अखाड़े में अभ्यास शुरू किया। दीपक को हम एक ही बात कहते थे कि हमारी मेहनत को गवां न देना। हमारे पास करीब डेढ़ एकड़ जमीन है। घर में एक भैंस व गाय हैं। खेत से तो परिवार के गुजर-बसर का अनाज ही मिल पाता था। बाकी दूध बिक्री करके परिवार का पालन-पोषण किया। किसी दिन दूध कम हुआ तो हमने नहीं पिया, बस दीपक को ही दिया। आधी रात को आंख खुलती तो मैं चुपके से अखाड़े में यह देखने पहुंच जाता कि दीपक क्या कर रहा है। आज गर्व होता है कि जैसा सोचा, वैसा ही दीपक बन गया। मां कृष्णा भी बेहद खुश हैं और दीपक की जीत की दुआ कर रही हैं।

दीपक का लक्ष्य अर्जुन जैसा : कोच

दीपक को बचपन से कुश्ती के दांव-पेच सिखाने वाले लाला दीवानचंद अखाड़े के संचालक वीरेंद्र पहलवान बताते हैं कि दीपक ने सिर्फ और सिर्फ अभ्यास पर ही ध्यान दिया। उसकी सफलता इसी का नतीजा है। उसका लक्ष्य बिल्कुल अर्जुन जैसा है।


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