Kargil Vijay Diwas 2022: कहानी उस तिरंगे की जिसमें लिपटा हुआ था शहीद निहाल सिंह का पार्थिव शरीर
Kargil Vijay Diwas हरियाणा के वीर सपूत निहाल सिंह ने सीमा की रक्षा करते हुए कारगिल में दिया था बलिदान। निहाल सिंह गोदारा 21वीं बटालियन बीएसएफ के जवान थे। 11 नवंबर 1999 को कश्मीर में देश की सीमा की रक्षा करते हुए आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गए थे।

सिरसा, जागरण संवाददाता। नवंबर 1999 में कारगिल में देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए जवानों में चौपटा क्षेत्र के गांव खेड़ी निवासी निहाल सिंह गोदारा भी शामिल रहे। जिस समय निहाल सिंह का बलिदान हुआ उनका बेटा मुकेश दो साल का था जबकि बेटी राजबाला आठ साल की थी।
अब 25 साल का युवा हो चुके मुकेश का कहना है कि उसे गर्व है कि वह बहादुर सैनिक की संतान है, जिसने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। मुकेश ने बताया कि जिस समय उसके पिता की शहादत हुई उसे याद नहीं हैं लेकिन उसकी बहन राजबाला उससे बड़ी थी। जब उसे पिता की शहादत का पता चला तो उसका रो रो कर बुरा हाल हो गया। मुकेश ने बताया कि जिस तिरंगे में उसके पिता का शव आया था वह आज भी पिता की अंतिम निशानी के रूप में संभाल कर रखा हुआ है।
चार आंतकवादियों को मार कर शहद हुए थे निहाल सिंह गोदारा
निहाल सिंह गोदारा 21वीं बटालियन बीएसएफ के जवान थे। 11 नवंबर 1999 को कश्मीर में देश की सीमा की रक्षा करते हुए आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गया था। लेकिन जाते जाते वह चार आतंकवादियों को धराशायी कर गए थे। शहीद का शव दो दिन बाद गांव खेड़ी पहुंचा था जहां 13 नवंबर 1999 को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
पत्नी ने लगाई थी शहीद निहाल सिंह की प्रतिमा
शहीद निहाल सिंह गोदारा की प्रतिमा उनकी पत्नी रेशमा गोदारा ने लगाई थी। जिसका अनावरण 2003 में बीएसएफ के असिस्टेंट कमांडेंट आफिसर राम अवतार सिंह ने किया था। शहीद की पुण्यतिथि पर हर वर्ष उनके स्वजन समाधि स्थल पर पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
कारगिल बलिदानियों का विवरण
1. नाम : शहीद कृष्ण कुमार बांदर
गांव : तरकांवाली
रैंक : सिपाही
जन्म तिथि : 5 मार्च 1975
सेना में भर्ती हुआ : 21 जुलाई 1997 में
शहीद हुआ 30 मई 1999
2. नाम : शहीद निहाल सिंह गोदारा
गांव : खेड़ी
रैंक : सिपाही
जन्म तिथि : 15 नवंबर 1970
सेना में भर्ती हुआ : 15 जुलाई 1990
शहीद हुआ 11 नवंबर 1999
3. नाम : शहीद राधेश्याम बेहरवाला
गांव : बेहरवाला
रैंक : सिपाही
जन्म तिथि : 3 अप्रैल 1975
सेना में भर्ती हुआ : 30 अगस्त 1995 को
शहीद हुआ : 17 दिसंबर 1999
बचपन में ही फौजी बनने का था सपना, आज पूरे गांव को गर्व
गांव तरक्कांवाली के कृष्ण कुमार बांदर का बचपन का सपना फौज में भर्ती होने का ही था। जब छोटा था तब वे खेलते समय फौजी का ही रोल करता था। उसका यह सपना सच हुआ। 21 जुलाई 1997 में सेना में भर्ती हुए। दो साल बाद ही कारगिल में युद्ध शुरू हो गया। उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन से लोहा लेते हुए देश के लिए कुर्बानी दी।
कृष्ण कुमार का जन्म 4 मई 1977 में हुआ, जिन्होंने प्रारंभिक शिक्षा निकटवर्ती गांव शाहपुरिया के स्कूल से हासिल की। इसके बाद उन्होंने सेकेंडरी की परीक्षा नाथूसरी चौपटा के सरकारी स्कूल में तथा सीनियर सेकेंडरी की परीक्षा आर्य सीनियर सैकेंडरी स्कूल, सिरसा से हासिल की।
बर्फ में ढक गया था शरीर, 42 दिन बाद गांव पहुंचा शव
कृष्ण कुमार ने कई आतंकवादियों को मार गिराया। 30 मई के दिन दुश्मनों से लोहा लेते समय उनकी छाती में गोली लगी। उस समय कारगिल की लड़ाई तेज हो रखी थी। कृष्ण कुमार का शव बर्फ से ढक गया। गांव में स्वजनों को कृष्ण कुमार के शहीद होने की सूचना तो मिली। इसके बाद उनका शव 42 दिन बाद गांव में पहुंचा।
24 साल की उम्र में राधेश्याम ने दे दिया था बलिदान
ऐलनाबाद क्षेत्र के गांव बेहरवाला के वीर सपूत राधेश्याम भाकर कारगिल युद्ध में शहीद हो गया। गांववासी बेगराज भाकर का बड़ा बेटा राधेश्याम भाकर महज 24 साल की उम्र में मातृभूमि के लिए शहीद हो गया। राधेश्याम 20 साल की उम्र में ही भर्ती हुए थे।
बचपन से ही था सेना के प्रति लगाव
3 अप्रैल 1975 को बेगराज भाकर के घर मां सरस्वती देवी की कोख से जन्मे राधेश्याम में बचपन से ही सेना के प्रति लगाव था। महज 20 साल की उम्र में ही वो 30 अगस्त 1995 को सेना की राजपुताना रायफल्स में भर्ती हो गए। शादी को आठ महीने ही बीते थे कि भारत और पाकिस्तान में कारगिल का युद्ध छिड़ गया। आपरेशन विजय के तहत राधेश्याम भाकर ने भी दुश्मनों से लौहा लिया। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में देश की रक्षा करते हुए आपरेशन विजय के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए।
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