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    Kargil Vijay Diwas 2022: रोटी से ज्‍यादा गोलियां मांगते थे एक हाथ और दोनों पांव गंवाने वाले हिसार के दीपचंद

    By Manoj KumarEdited By:
    Updated: Mon, 25 Jul 2022 11:12 AM (IST)

    पाकिस्तान के साथ 1999 में भारत के करगिल में हुए युद्ध में हिस्सा लेने वाले सैनिक नायक दीपचन्द ने अपने जिस्म के अहम हिस्से बेशक गंवा दिए लेकिन उनके भीतर का योद्धा अब भी न सिर्फ पूरे जोश के साथ जिंदा है।

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    हिसार के गांव के पाबड़ा निवासी लांस नायक दीपचंद को देखकर हर कोई सलाम करता है

    आनलाइन डेस्‍क, हिसार। कारगिल की लड़ाई को भले ही सालों बीत गए मगर इस युद्ध में अपनी जान की बाजी लगाकर जीतने वाले योद्धाओं की कहानी हर साल जुबान पर रहती है। बहुत से शहीद हुए तो बहुत से ऐसे हैं जो अपनी और शहीदों की वीरता की कहानी सुनाते हैं। हिसार के गांव के पाबड़ा निवासी लांस नायक दीपचंद भी उनके से ही एक हैं। दीपचंद वर्ष 1989 में सेना में भर्ती हुए और कश्मीर में सेना के कई जोखिम भरे आपरेशन में शामिल रहे थे। चीफ आफ आर्मी स्टाफ विपिन रावत ने कारगिल दिवस पर कारगिल में उनकी सराहना की थी।

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    रिटायर्ड लांस नायक दीपचंद  कहते हैं, हमारे लिए जो राशन का इंतजाम करता था तो हम उससे ज्यादा से ज्यादा गोल बारूद लाने के लिए कहते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि युद्ध में भूख नहीं लगती। सैनिकों के लिए, देश पहले आता है। कारगिल युद्ध लड़ने के बाद आपरेशन पराक्रम के दौरान गोला फटने की दुर्घटना में दीपचंद इस कदर जख्मी हुए थे कि उनके बचने की उम्मीद भी नहीं थी। ऐसे नाजुक हालात तो उनकी उस सर्जरी में भी बने रहे।

    17 यूनिट खून की चढ़ाने पर बच सकी थी जान

    दीपचंद बताते हैं कि उन्हें बचाने के लिए चिकित्सकों को उनकी दोनों टांगे और एक हाथ काटकर जिस्म से काट कर अलग करना पड़ा। उनका इतना खून बह गया था कि उन्हें बचाने के लिए 17 बोतल खून चढ़ाया गया। ये हादसा भी तब हुआ था जब दीपचंद और उनके साथी ऑपरेशन पराक्रम के दौरान वापसी के लिए सामान बांधने की तैयारी में थे। इस गोले के फटने से दो और सैनिक भी जख्मी हुए थे। इसके बावजूद दीपचंद ने हार नहीं मानी और आज सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणा बने हैं।  

    कारगिल युद्ध में 60 दिनों तक लड़ी भारतीय सेना

    पाकिस्तान के साथ 1999 में भारत के करगिल में हुए युद्ध में हिस्सा लेने वाले सैनिक नायक दीपचन्द ने अपने जिस्म के अहम हिस्से बेशक गंवा दिए लेकिन उनके भीतर का योद्धा अब भी न सिर्फ पूरे जोश के साथ जिंदा है। कारगिल युद्ध मे मिसाइल रेजीमेंट का हिस्सा रहे दीपचन्द ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध लड़ा गया था। करीब 60 दिनों तक भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़े थे। पाकिस्तान को हराकर ही हमारी सेना ने दम लिया था।

    नकली पैर के सहारे भी सीना तानकर चलते हैं दीपचंद

    इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय रहने वाले नायक दीपचंद घुटने तक की नकली टांगों पर पूरे तन कर खड़े होकर जब बिना हाथ वाले दाहिने बाजू से फौजी सैल्यूट करते हैं तो देखने वाले उन्हें लगातार देखने और सुने बगैर रह ही नहीं सकते। हमेशा उनकी वीडियो की शुरुआत ही यूं होती है, जय हिन्द, जय भारत। मैं नायक दीपचन्द 1889 मिसाइल रेजिमेंट करगिल और वीडियो का अंत भी जय हिन्द और जय भारत के वाक्य से ही होता है।

    दुश्‍मनों के छुड़ा दिए थे छक्के

    नायक दीपचंद अपने उन दिनों, जंग के माहौल को देखते हुए भावुक हो जाते हैं। दीपचंद ने करगिल की लड़ाई, जंग के वक्त कैसा माहौल होता है। उन्होंने जंग के वक्त का एक किस्सा बताते हुए कहा जब मेरी बटालियन को जब युद्ध के लिए मूव करने का आर्डर मिल था जब हम बहुत खुश हो गए थे। पहला राउंड गोला मेरी गन चार्ली 2 से निकला था तोलोलिंग पोस्ट पर और वही पहला ही गोला हिट हो गया था। हमने इस मूवमेंट में 8 जगह गन पोजीशन चेंज किया। हम अपने कंधों पर गन उठाकर लेकर जाते थे। हमारी बटालियन ने 10 हजार राउंड फायर किए। मेरी बटालियन को 12 गैलेंटरी अवार्ड मिला और हमें कारगिल जीतने का सौभाग्य मिला।

    खाना मिले न मिले गोला बारूद ज्यादा से ज्यादा मिले

    नायक दीपचंद ने एक उस समय का किस्सा बताते हुए कहा की उस वक्त हमारा एक ही मकसद होता था की हम सप्लाई वालों को कहते थे की खाना मिले न मिले गोला बारूद ज्यादा से ज्यादा मिले, उस समय इतनी ठड़ मे हमे ध्यान भी नहीं था की हम किस तरह के कपड़ों मे है , हमे यही ध्यान रहता था की दुश्मन ने हमारे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है उन्हे यहां से खदेड़ना है, मैं दुश्मनों के आमने सामने तो कभी नहीं हुआ लेकन हम अर्टलीरि फायरिंग सपोर्ट बहुत करते थे जिससे इंफेनटरी टीम एडवांस कर सकी , युद्ध के दौरान अर्टलीरि सपोर्ट का बहुत योगदान होता है, उस समय दुश्मनों के सामने आने पर माहौल ऐसा होता था जैसे नेवले व सांप का होता है।