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    इलाहाबाद गए न बिहार, अमान्य डिग्री पर मरीजों को दे रहे बीमारियों का उपहार

    By Kamlesh BhattEdited By:
    Updated: Wed, 22 Nov 2017 09:15 AM (IST)

    आबादी का एक बड़ा हिस्सा इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टरों पर आश्रित है। इन झोलाछाप डॉक्टरों ने कभी कोई डिग्री नहीं ली, लेकिन दवाखाने खोलकर खूब चांदी कूट रहे हैं।

    इलाहाबाद गए न बिहार, अमान्य डिग्री पर मरीजों को दे रहे बीमारियों का उपहार

    हिसार [भूपेश मथूरिया]। सरकार के पास शहर के अस्पतालों में ही पर्याप्त डॉक्टर नहीं हैं। प्राथमिक स्वास्थ केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में कहां से होंगे? सो, ग्रामीणों को विकल्प के रूप में झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ता है। यही वजह है कि ये झोलाछाप जो न कभी इलाहाबाद गए न बिहार पर हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (इलाहाबाद)) की डिग्री पर बिहार आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सा परिषद से अपना रजिस्ट्रेशन करा दवाखाना खोलकर चांदी काट रहे हैं। हैवी डोज एंटी बायोटिक्स (विषाणु नाशक), एनालजेसिक (दर्दनाशक) और साथ में स्टेरायड (ऊर्जा वर्धक) देकर वे मरीजों को तुरंत तो राहत का एहसास दिला देते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में वे इन दवाओं के दुष्प्रभाव से गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं।

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    दवाओं के साइड इफेक्ट पता न बैड रिएक्शन

    इन डॉक्टरों को न तो एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट पता होते हैं और न ही बैड रिएक्शन, इसलिए मरीजों को एलोपैथिक दवाओं को देने में उन्हें न तो हिचक होती है और न ही झिझक। इनका नेटवर्क भी तगड़ा होता है। इनमें से कुछ तो बड़े अस्पतालों के संपर्क में रहते हैं। यदि कोई गंभीर मरीज आता है तो संबंधित अस्पताल में भेज देते हैं। अपना भी कोई मरीज गंभीर हो जाता है तो उसे लेकर उसी अस्पताल में जाते हैं। अभी कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री के उड़नदस्ते ने इन डॉक्टरों को पकड़ने के लिए एक दिन पहले अभियान चलाया था तो सौ से अधिक झोलाछाप डॉक्टरों पर केस दर्ज हुए थे।

    ये झोलाछाप डॉक्टर अपने बोर्ड पर आरएमपी लिखते हैं। यह रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर की शार्ट फार्म है। संबंधित प्रदेश के मेडिसिन बोर्ड में तो हर डॉक्टर को रजिस्ट्रेशन कराना होता है, चाहे एमडी हो या एमएस। लेकिन उनके पास वैध डिग्री होती है और वे नाम के सामने अपनी डिग्री लिखते हैं। झोला छाप के पास कोई डिग्री नहीं होती, इसलिए वे आरएमपी लिखते हैं।

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    झोलाछाप डॉक्टर हिंदी साहित्य सम्मेलन से डिग्री लेकर और बिहार से रजिस्ट्रेशन कराकर हरियाणा में प्रैक्टिस करते हैं। हालांकि हरियाणा में बिहार के रजिस्ट्रेशन पर प्रैक्टिस गैर कानूनी भी है। वैसे गैरकानूनी तो आयुर्वेदिक डिग्री के आधार पर एलोपैथी की प्रैक्टिस भी है, लेकिन झोलाछाप डॉक्टर धड़ल्ले से एलोपैथिक दवाएं देते हैं।

    पता बिहार का डिस्पेंसरी हिसार में

    भारतीय चिकित्सा परिषद ने 1967 तक हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की परीक्षाओं वैद्य विशारद और आयुर्वेद रत्न को मान्यता दे रखी थी। इन परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने वाले आयुर्वेदिक चिकित्सा कर सकते थे। इसी तरह यदि किसी एमबीबीएस डॉक्टर के पास कोई पांच साल तक कंपाउंडर के रूप में काम कर लेता था तो उसे भी प्रैक्टिस की इजाजत मिल जाती थी और संबंधित प्रदेशों के मेडिसिन बोर्ड में इनका रजिस्ट्रेशन हो जाता था।

    सन् 1967 में इंडियन मेडिसिन बोर्ड ने वैद्य विशारद और आयुर्वेद रत्न की मान्यता यह कहकर खत्म कर दी थी कि मेडिकल की शिक्षा के लिए अस्पताल होना आश्वयक है, जबकि हिंदी साहित्य सम्मेलन के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी, लेकिन कई प्रदेशों ने इन परीक्षाओं की मान्यता बरकरार रखी।

    हरियाणा सहित कई ने बाद में समाप्त कर दी, पर बिहार का आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सा बोर्ड अब भी इन्हें मान्यता देता है। इसलिए झोलाछाप डॉक्टर भले ही कभी बिहार और इलाहाबाद न गए हों पर वहां से रजिस्ट्रेशन कराकर हरियाणा के हिसार सहित सभी बाइस जिलों में आपको डिस्पेंसरी खोले मिल जाएंगे।

    घर बैठे डिग्री और रजिस्ट्रेशन

    हिंदी साहित्य सम्मेलन की आयुर्वेद रत्न और वैद्य विशारद की परीक्षाएं अमान्य तो हैं, लेकिन अवैध नहीं, क्योंकि कोई भी किसी विषय की शिक्षा दे सकता है और उसे अपनी डिग्री दे सकता है। यह बात अलग है कि सरकार अथवा अन्य संस्थाएं उस डिग्री को मान्यता देती हैं या नहीं। इसलिए हिंदी साहित्य सम्मेलन इनकी परीक्षा लेता है और पूरे देश में इसके लिए सेंटर बनाता है। ये सेंटर वाले खुद ही सबकुछ देखते हैं। नकल कराना तो दूर कापी तक खुद लिखते हैं और अच्छी खासी रकम लेकर परीक्षार्थी को डिग्री दिलवा देते हैं।

    हिंदी साहित्य सम्मेलन को भी सिर्फ अपनी फीस से मतलब होता है। इन परीक्षाओं के लिए पूरे देश में उसके एजेंट सक्रिय रहते हैं। अब तक जिन्होंने भी ये परीक्षाएं दी हैं, कोई भी फेल नहीं हुआ है। उसके बाद दलालों के माध्यम से बिहार के आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सा परिषद में रजिस्ट्रेशन हो जाता है। कहीं जाने की जरूरत नहीं होती।

    दलाल को हिदी साहित्य सम्मेलन की डिग्री की फोटो कापी और तय रकम फार्म भरकर भेज दी जाती है। फार्म में पते का कालम खाली छोड़ा जाता है। दलाल बिहार के किसी गांव का पता और वहीं का क्लीनिक का पता लिखकर रजिस्ट्रेशन करा देते हैं। ये एक पूरा नेटवर्क है जो डिग्री से लेकर रजिस्ट्रेशन तक कराता है।

    अन रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर को प्रैक्टिस का अधिकार नहीं

    हिसार के ड्रग कंट्रोलर डॉ. सुरेश चौधरी का कहना है कि करीब पांच दशक पहले तक कुछ अनुभवी लोगों का मेडिकल काउंसिल रजिस्ट्रेशन करती थी। इनकी संख्या चुनिंदा थी। इन्हें रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर कहते हैं। वर्तमान में जो हैं वे अन रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं, जिन्हें प्रैक्टिस का अधिकार नहीं है।

    हरियाणा में हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की डिग्री अमान्य है, इसलिए इनके विरुद्ध इंडियन मेडिकल एक्ट 1956 में सेक्शन 15 (2), 15 (3) के तहत केस दर्ज होता है। इस एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। एलोपैथी की अलग काउंसिल है और आयुर्वेद एंव यूनानी की अलग, डेंटल सर्जन, होम्योपैथी की अपनी काउंसिल है। डिग्री होल्डर को उस राज्य की काउंसिल में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा, जहां वह प्रैक्टिस करना होता है।

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