अनोखा प्रयोग: चूहे खेलेंगे शतरंज और बढ़ेगी आपकी याददाश्त, जानें कैसे
हिसार के गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं तकनीकी विश्वविद्याल की एक शोधार्थी ने एक अभिनव प्रयोग किया है। इसके तहत चूहे शतरंज खेलेंगे अौर इससे इंसान की याददाश्त बढ़ाने की दवा बनेगी।
हिसार, [संदीप विश्नोई]। गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं तकनीकी विश्वविद्यालय की एक शोधार्थी ने एक अभिनव और अनोखा प्रयोग किया है। अब यहां चूहे शतरंज खेलेंगे अौर इससे फायदा आपको होगा। इससे आपकी याददाश्त बढ़ेगी। इस प्रयोग ने सदियों से असाध्य अल्जाइमर जैसे रोग से लड़ने की आसान राह दिखाई है। विश्वविद्यालय की इस शोधार्थी ने इंसान की याददाश्त बढ़ाने की दवाओं की जांच के लिए यह नया फार्मूला खोज निकाला है। इसके तहत चूहे शतरंज खेलेंगे और विज्ञानी उसके अनुसार दवाइयों की जांच करेंगे।
शोधार्थी ने बनाया नया मॉडल
नए मॉडल के माध्यम से अब विज्ञानी दवाओं की जांच के साथ-साथ चूहों के मानसिक स्तर का भी आकलन कर पाएंगे और उनकी याददाश्त बढ़ाने का प्रयास करेंगे। इसके लिए विशेष चेस बोर्ड तैयार किया है और चूहों को उस चेस बोर्ड पर छोड़ा जाता है।
पुराने फार्मूले पर लग चुका है प्रतिबंध
इस चेस बोर्ड पर काले रंग के स्कवायर को काटकर गड्ढे बनाए गए हैं। इन गड्ढों के नीचे एक काला बैग लगाया गया है ताकि चूहे गिरें तो उनको चोट न लगे पर उन्हें काले स्कवायर होने का भ्रम भी कायम रहे। इसके अलावा दूसरा साधारण चेस बोर्ड का भी प्रयोग किया गया। जांच में साबित हुआ कि याददाश्त बढ़ाने वाली दवाओं के प्रभाव के बाद चूहे काले स्कवायर से बचकर चलने लगते हैं और केवल सफेद बॉक्स में ही चलते हैं।
केंद्रीय विज्ञान व तकनीकी विभाग ने विश्वविद्यालय की शोधार्थी डॉ. सुशीला को यह प्रोजेक्ट सौंपा था। इसके तहत शोधार्थी को प्रत्येक महीने 30 हजार रुपये की स्कॉलरशिप भी दी गई। शोधार्थी एमफार्मा में भी गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी हैं। उन्होंने गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के प्रो. मिलिंद पारले के मार्गदर्शन में इस मॉडल को बनाने में कामयाबी हासिल की। इन चेस बोर्ड पर अलग-अलग चूहों के ग्रुप को तीन अलग-अलग स्टेप में प्रयोग किया गया। प्रत्येक ग्रुप में आठ चूहे लिए गए।
प्रयोग में मार्गदर्शक जीजेयू के प्रो. मिलिंद पारले और शोधार्थी डॉ. सुशीला।
क्यों चाहिए यह मॉडल
इंसानों की याददाश्त बढ़ाने के लिए दुनिया भर में शोध होते रहते हैं। कई दवाएं खोजी भी गईं पर प्राथमिक तौर पर उनका प्रयोग इंसानों पर नहीं किया जा सकता। इसीलिए चूहों पर उनके प्रभाव के आधार पर शोध किया जाता है। यही कारण रहा कि याददाश्त को बढ़ाने के लिए किसी प्रबल दवा की खोज नहीं की जा सकी। चूहों के व्यवहार को समझने के लिए पुराना मॉडल प्रतिबंधित हो चुका है। पहले करंट के झटकों के आधार पर उनके व्यवहार का अध्ययन किया जाता था। उसमें बहुत से चूहों की मौत हो जाती थी। जीव प्रेमी इस फार्मूले का विरोध करते रहे थे।
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यूं किया इस मॉडल का प्रयोग -
पहला कदम
साधारण शतरंज बोर्ड के केंद्र में सफेद स्कवायर पर एक चूहे को छोड़ा गया। वह उस पर सफेद और काले स्कवायर में घूमता रहा। कुछ दिन बाद उसे विशेष चेस बोर्ड (जिसमें सभी काले स्कवायर की जगह को काटकर गड्ढा बना था) पर रखा गया। इस प्रयोग की शुरुआत में चूहा काले गड्ढे में गिरता रहा। लेकिन पांच दिन बाद वह केवल सफेद स्कवायर पर चलने का अभ्यस्त हो गया।
साधारण चेस बोर्ड पर रखे जाने के बाद भी वह केवल सफेद स्कवायर पर ही चलता रहा। उसके बाद उसे याददाश्त भूलने की दवा दी गई और विशेष चेस बोर्ड (जिसमें सभी काले स्कवायर को काटा गया था) पर छोड़ा गया। वह फिर से काले गड्ढे में गिरने लगा। 48घंटे बाद जैसे ही असर खत्म हुआ, वो फिर से सफेद पर चलने लगा।
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दूसरा कदम
दूसरे स्टेप में बाजार में मिलने वाली याददाश्त खोने से रोकने या कुछ हद तक बढ़ाने वाली दवा चूहों को दी गई। इससे जो परिणाम पांच दिन में देखने को मिल रहा था, वह दो दिन में मिलने लगा। दूसरे ग्रुप के आठ चूहों पर यह प्रयोग अलग-अलग समय में किया गया। इसमें मिली सफलता के बाद शोधकर्ताओं को महसूस हुआ कि उनका यह मॉडल कामयाब हो रहा है। इसे विश्वसनीय बनाने के लिए उन्होंने तीसरे स्टेप पर भी काम किया।
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तीसरा कदम
तीसरे स्टेप में चूहों को पहले याददाश्त भूलाने वाली दवा दी गई और 15 मिनट बाद याददाश्त वापस आने वाली दवाई दी गई। पाया गया कि चूहे केवल सफेद खानों पर ही इधर-उधर जा रहे हैं। यानी चूहों पर दूसरी दवाई से याददाश्त भूलाने वाली दवाई का असर खत्म हो गया था। प्रोफेसर मिलिंद पारले ने बताया कि इस सफलता के बाद उन्हें यकीन हो गया कि उनका मॉडल लैब के लिए कामयाब है और याददाश्त बढ़ाने के लिए कोई भी नई दवा इस मॉडल के अनुसार टेस्ट की जा सकती है।
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यूं आया आइडिया
विश्वविद्यालय में अल्जाइमर रोग के प्रबंधन विषय पर एक कांफ्रेंस करवाई गई थी। इसमें बाहर से भी काफी विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस दौरान चर्चा में सामने आया कि याददाश्त खोने से रोकने की दवाइयां हैं, लेकिन याददाश्त बढ़ाने की नहीं। याददाश्त बढ़ाने की अधिक दवाएं इसलिए नहीं है, क्योंकि उनका टेस्ट करने के लिए कोई उपयुक्त मॉडल ही नहीं है।
शोधार्थी सुशीला ने बताया कि इसके बाद हमने इसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए मॉडल बनाने की योजना बनाई। डा. पारले स्वयं चेस में कई मेडल जीत चुके हैं। पता था कि चेस हमारे दिमाग को एक्टिव रखता है और इससे हमारे दिमाग का दायें व बायें हिस्से काम करने लगते हैं। जबकि आमतौर पर महिलाओं में बाईं और पुरूषों में दाईं ओर का दिमाग अधिक विकसित होता है। इसके बाद चेस मॉडल का आइडिया आया। शुरुआती दौर में कई बार फेल हुए, लेकिन अंतत सफलता मिल ही गई।
'' यह मॉडल मेडिकल जगत के लिए एक शानदार उपलब्धि साबित होगा। इससे पहले एक शॉक माडॅल होता था, जिसमें नीचे तारों पर करंट छोड़ा जाता था और बीच में एक लकड़ी पर चूहे को छोड़ा जाता था। चूहों की अधिक मौत होने के चलते इस मॉडल को बाद में प्रतिबंधित कर दिया गया। हमने अपने मॉडल का पेंटेंट करवा लिया है।
- डा. मिलिंद पारले, पूर्व प्रोफेसर, जीजेयू हिसार।
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