Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Independence Day 2021: हरियाणा की 11 महिलाएं, जिनके नाम से थर-थर कांपती थी ब्रिटिश हुकूमत

    By Umesh KdhyaniEdited By:
    Updated: Sat, 14 Aug 2021 01:50 PM (IST)

    जंग-ए-आजादी में हरियाणा के पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधे मिलाकर अंग्रेजी हुकूमत से जंग लड़ी थी। 1857 से लेकर 1947 तक की कालावधि में हिसार ...और पढ़ें

    Hero Image
    देश के स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा का इतिहास वाकई लाजवाब रहा है।

    वैभव शर्मा, हिसार। हरियाणा को यूं ही वीरों की भूमि नहीं कहा जाता। इस मिट्टी ने अनेकों वीर और बलिदानी पुरुषों को जन्म दिया है। यहां की महिलाएं भी किसी मायने में कम नहीं रहीं। देश के स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा का इतिहास वाकई लाजवाब रहा है। हरियाणा की महिलाओं का योगदान भी इस संग्राम में किसी मायने में कम नहीं रहा है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    1857 से लेकर 1947 तक की कालावधि में हिसार, सिरसा, अंबाला, रोहतक, गुरुग्राम, उकलाना, टोहाना आदि क्षेत्रों से ऐसी महिलाओं की सूची काफी लंबी बनाई जा सकती है, जिन्होंने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। जंग-ए-आजादी हरियाणा की सुपुत्रियाें ने पूरी हिम्मत और वीरता के साथ अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। इनमें प्रमुख थी चांदबाई, तारावती, लक्ष्मीबाई आर्य, गायत्री देवी, कस्तूरी देवी, मोहिनी देवी, मन्नोदेवी, सोहाग रानी, सोमवती, शन्नो देवी, कस्तूरीबाई। आइए जानते हैं हरियाणा की इन वीरांगनाओं के बारे में, जिन्होंने अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी थी।

    1- चांदबाई और तारावती, हिसार 

    बाबू श्यामलाल की पत्नी चांदबाई जिनका जन्म 1892 में एक वैश्य परिवार में सिरसा में हुआ था। अपने पुत्र मदनगोपाल को साथ लेकर सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़ी जबकि उन दिनाें महिलाएं घर के बाहर पैर नहीं रखती थी। अपने पति के साथ 1923 के कोकानाड़ा, 1924 के बेलगांव व 1925 के कानपुर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुई। 1922-23 तक महात्मा गांधी के आश्रम साबरमती में भी रही। दबाई हिसार की पहली महिला थी जिन्हें असहयोग आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपनी बहू तारावती भी अपनी सास से प्रेरणा लेकर अपनी सास के साथ कांग्रेस तथा स्वदेशी प्रचार कार्याें के लिए हांसी, टोहाना, उकलाना, सिरसा आदि स्थानों पर जाकर जन सभाएं की तथा कई बार आंदोलनों में जेल भी गई। चांदबाई देश की आजादी में सक्रिय भूमिका निभाना चाहती थी, वह केवल प्रचार कार्य से संतुष्ट नहीं थी। कटला रामलीला मैंदान हिसार में युद्व विरोधी नारे लगाते हुए उन्हें गिरफ्तार किया गया तथा 22 फरवरी 1941 को 6 महीने की सजा दी गई तथा 24 फरवरी 1941 को महिला कारागार लाहौर भेज दिया गया। गर्भवती होने के कारण इनकी पुत्रवधू तारावती अपनी गिरफ्तारी नहीं दे पाईं।

    2- गायत्री देवी, सोनीपत

    1930 में नमक सत्याग्रह में गायत्री देवी गांव गड़कुण्डल, सेानीपत ने महिलाओं का नेतृत्व किया और जेल गई। बेरी, रोहतक की कस्तूरी देवी 1930 में कांग्रेस में शामिल हो गईं और महिलाओं का नेतृत्व करते हुए जिला रोहतक में जेल खाने के सामने धरना दिया। इस धरने में गांव सिंघल, झज्जर की मन्नो देवी भी थी। पुलिस की चेतावनी पर लोग तितर-बितर नहीं हुए तो पुलिस ने लाठी चार्ज किया। 12 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया। 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने और जेल की यात्रा करने वाली नारियों में सोमवती, मोहिनी देवी का नाम उल्लेखनीय हैं।

    3- सोहाग रानी

    सन् 1907 में लाहौर में जन्मी सोहाग रानी का सारा जीवन हरियाणा में ही बीता। 1930 के नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लिया। विदेशी कपड़े और शराब की दुकानों पर पिकेटिंग करना, जलसे करना तथा जुलूस निकालना इनकी दिनचर्या थी। शहीद भगत सिंह के फांसी के समय विरोध सभा में भाग लेने पर इन्हें नौ महीने की सजा हुई तथा उन्हें जेल में काफी यातनाएं दी गईं। 

    4- लक्ष्मी आर्या, रोहतक 

    गांव रोहण, रोहतक की लक्ष्मी आर्य छोटी उम्र में विधवा हो गई थीं। सन 1932 में महात्मा गांधी के पास साबरमती आश्रम में चली गई और वहां कपड़े की दुकान पर पिकेटिंग करती पकड़ी गईं और छह माह की सजा हुई। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के समाप्त होते ही अंग्रेजी सरकार ने राजनीतिक कैदियों की रिहाई कर दी। इस दौरान यहां की नारियों ने जिनमें लक्ष्मी देवी, लक्ष्मी बाई आर्य, रोहण, रोहतक, सोमवती, शन्नो देवी ने अन्य सदस्यों के साथ इन्कलाब जिंदाबाद और भारत छोड़ों के नारे लगाए और गिरफ्तार हो गईं।  कमला भार्गव, गुरुग्राम ने भी भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।

    भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लेने वाली गुरुग्राम की कमला भार्गव।

    5- लक्ष्मी देवी, पत्नी ओम प्रकाश 

    औम प्रकाश त्रिखा की पत्नी लक्ष्मी देवी ने सन् 1932 में अपने पति की गिरफ्तारी के बाद से कपड़े व शराब की दुकानों पर पिकेटिंग करना, जुलूस निकालना, नारे लगाना जारी रखा। ब्रिटिश सरकार ने इन पर मुकदमा चलाया और गिरफ्तार कर जेल में रखा। इस जेल में कोई राजनीतिक महिला नहीं थी। इसलिए पूरे शहर में विरोध हुआ और अंत में इन्हें लाहौर की महिला जेल में भेज दिया गया।

    हिसार की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें