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    झज्जर के मां भीमेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास महाभारत की छिपी घटना, पढ़ें ये दिलचस्प किस्सा

    By Naveen DalalEdited By:
    Updated: Sat, 02 Apr 2022 10:39 AM (IST)

    मां भीमेश्वरी देवी का मंदिर हरियाणा के झज्जर जिले के अंतर्गत बेरी में स्थित है। मंदिर के निर्माण और देवी की स्थापना से एक दिलचस्प पौराणिक किस्सा जुड़ा हुआ है। दरअसल जिस वक्त कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा जा रहा था।

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    मां भीमेश्वरी देवी की स्थापना से जुड़ा एक दिलचस्प पौराणिक किस्सा।

    झज्जर, जागरण संवाददाता। झज्जर के भीमेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास महाभारत की एक छुपी हुई घटना से है। छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध बेरी में स्थित मां भीमेश्वरी देवी मंदिर का निर्माण धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने करवाया था। माता भीमेश्वरी देवी के इस भव्य मंदिर में साल (नवरात्रि के दौरान) में दो दफा नौ दिवसीय मेलों का आयोजन होता है। जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। पुजारी कुलदीप शर्मा के अनुसार यह मंदिर माता भीमेश्वरी देवी का सबसे प्राचीन मंदिर है।

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    भीम हिंगलाज पहाड़ पर गए

    मंदिर के निर्माण और देवी की स्थापना से एक दिलचस्प पौराणिक किस्सा जुड़ा हुआ है। माना जाता है जिस वक्त कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा जा रहा था, तो इसी बीच बलशाली भीम अपनी जीत के लिए कुलदेवी को लाने के लिए आज के पाकिस्तान में स्थित हिंगलाज पहाड़ पर गए थे। देवी चलने के लिए तो राजी हो गईं, पर उन्होंने भीम के समक्ष एक शर्त रखी थी कि अगर भीम देवी को अपने कंधे पर बैठाकर रणभूमि तक ले जाएंगे तभी वे उनके साथ जाएंगी। इस बीच भीम ने देवी को कंधे से उतारा तो वे वहीं विराजमान हो जाएंगी। भीम को अपनी शक्ति पर गर्व था, उन्होंने देवी का यह प्रस्ताव मान लिया।

    देवी इसी स्थान पर विराजमान हो गई

    भीम देवी को अपने कंधे पर बैठाकर आगे बढ़ते जा रहे थे, लेकिन तभी उन्हें लघुशंका का आभास हुआ। उन्होंने देवी को एक पेड़ के नीचे उतार दिया और लघुशंका के लिए चले गए। लेकिन, जैसे ही वापस आकर देवी को दोबारा से उठाने की कोशिश की, तभी देवी ने भीम को अपनी शर्त स्मरण करवाई, और वे उसी जगह विराजमान हो गईं। भीम का अब ताकत लगाना व्यर्थ था। लघुशंका के कारण वो अपना दिया हुआ वचन भूल गए थे। उस घटना के बाद देवी हमेशा के लिए इसी स्थान पर विराजमान हो गईं। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन की माता गांधारी ने यहां देवी के मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर की स्थापना के बाद से ही यहां साल में यहां दो बार मेले लगते हैं, जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। नवरात्रि के दौरान जन्में बच्चों का मुंडन कराने, नए जोड़ों की जात देने की परंपरा है। सच्चे मन से भीमेश्वरी देवी से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है।

    मां की मूर्ति एक, मंदिर दो

    सदियों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को बाहर वाले मंदिर में सुबह लाया जाता है। दोपहर के समय में मां की मूर्ति को पुजारी अपनी गोद में उठाकर शहर के अंदर वाले मंदिर में लेकर जाते हैं। मां रात भर अंदर वाले मंदिर में आराम करती हैं। मान्यता है कि मां का मंदिर पुराने समय में जंगलों में था। तब ऋषि दुर्वासा ने मां से विनती की थी कि वे उनके आश्रम में आकर भी रहे। तब से ही दो मंदिरों की परंपरा चल रही है। आज भी यहां पर बड़े भाव से ऋषि दुर्वासा द्वारा रचित आरती से पूजा अर्चना की जाती है। मेले के दौरान विशेष तौर पर चांदी के सिंहासन पर मां कोलकत्ता से आने वाली विशेष पोशाक में श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देती है।

    मंदिर आने का रूट

    भीमेश्वरी देवी का मंदिर हरियाणा के झज्जर जिले के अंतर्गत बेरी में स्थित है। जहां आप दिल्ली के रास्ते आसानी से पहुंच सकते हैं। दिल्ली से हर घंटे हरियाणा के लिए बस सेवा उपलब्ध है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन बहादुरगढ़ और झज्जर है। नजदीकी एयरपोर्ट दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है। दिल्ली से बेरी तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे अच्छा चुनाव है। इसके अतिरिक्त रोहतक, गुरुग्राम, रेवाड़ी, भिवानी आदि स्थानों से सीधी बस बेरी के लिए उपलब्ध है। मेले के दिनों में प्रशासनिक स्तर पर अतिरिक्त व्यवस्था भी की जाती है।

    मंदिर पुजारी के अनुसार

    मां भीमेश्वरी देवी में आस्था रखने वाले भक्तों की मां हर मुराद पूरी करती है। परंपरा के अनुसार बाहर एवं भीतर वाले मंदिर में सुबह और शाम मां की मंगला आरती होती है।

    ----पं. कुलदीप शर्मा, पुजारी, मां भीमेश्वरी देवी मंदिर, बेरी।

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