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    Haryana New District: हांसी को 193 साल बाद फिर मिला जिले का दर्जा, मैप भी आया सामने; अब क्या होंगे बदलाव?

    Updated: Wed, 17 Dec 2025 09:23 AM (IST)

    हरियाणा में हांसी को 222 साल पहले जिला बनाया गया था, लेकिन 193 वर्ष बाद अब इसे फिर से जिला घोषित किया गया है। इस फैसले से हांसी क्षेत्र में कई प्रशासन ...और पढ़ें

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    हांसी 193 साल बाद बना जिला (जागरण ग्राफिक्स)

    जागरण संवाददाता, हिसार। Hansi New District: हरियाणा के प्रशासनिक इतिहास में 16 दिसंबर 2025 एक ऐसे दिन के रूप में दर्ज हो गया है, जब 193 साल बाद हांसी को दोबारा जिला का दर्जा मिला। जिस हांसी से 1832 में जिला का तमगा छिन गया था, वही हांसी अब एक बार फिर स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में उभरकर सामने आई है।

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    यह केवल एक जिला बनने की घोषणा नहीं, बल्कि इतिहास, संघर्ष और सांस्कृतिक पुनर्स्थापना का क्षण है। राज्य सरकार की घोषणा के साथ ही हांसी (Haryana New District) में वर्षों से पल रहा सपना साकार हुआ। यह सपना अकेले सत्ता गलियारों में नहीं, बल्कि सड़कों, धरनों, अनशनों और जनआंदोलनों में गढ़ा गया। हांसी जिला बनने की यह यात्रा वर्तमान से शुरू होकर अतीत की गहराइयों तक जाती है, जहां से इसका ऐतिहासिक महत्व और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है।

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    कैप्शन : हांसी जिले का जारी किया गया मैप। - सोर्स।  

     193 साल का इंतजार, 13 साल का संघर्ष

    हांसी को जिला बनाने की अलख 13 वर्ष पहले जगी थी। रिटायर्ड फौजी रामनिवास फौजी ने जगाई। वर्ष 2013 में शहीद भगत सिंह पार्क से शुरू हुआ धरना 94 दिन तक चला। इसके बाद साइकिल यात्रा, पैदल यात्राएं, हस्ताक्षर अभियान और आमरण अनशन—हर लोकतांत्रिक रास्ते से यह मांग उठाई जाती रही।

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    50 हजार से अधिक हस्ताक्षरों का ज्ञापन तत्कालीन मुख्यमंत्री (Haryana New District News) को सौंपा गया। वर्ष 2018-19 में लघु सचिवालय के समीप आमरण अनशन और 103 दिन का लगातार धरना इस आंदोलन की पराकाष्ठा रहा। यह संघर्ष केवल एक प्रशासनिक मांग नहीं, बल्कि हांसी की ऐतिहासिक पहचान को पुनः स्थापित करने का जनसंकल्प था।

    आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत हांसी

    हांसी कभी कपास उद्योग का बड़ा केंद्र रहा। एक समय 50 से अधिक खल-बिनौला फैक्ट्रियां सक्रिय थीं। आज भी यहां का जूती उद्योग देशभर में प्रसिद्ध है। राइस मिलों से विदेशों तक चावल की आपूर्ति होती है। जिला बनने से व्यापार, निवेश और रोजगार को नया आयाम मिलेगा।

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    पृथ्वीराज चौहान का किला -‘हिंदुस्तान की दहलीज’

    हांसी (Hansi District) का किला 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान (शासनकाल: लगभग 1178–1192 ई.) के समय सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। इसे ‘हिंदुस्तान की दहलीज’ कहा गया, क्योंकि उत्तर-पश्चिम से आने वाले आक्रमणों को रोकने का यह पहला मजबूत दुर्ग था। उस दौर में हांसी तलवार निर्माण और सैन्य प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र था। किले के पांच प्रवेश द्वार बनाए गए थे, जिनमें से बड़सी गेट आज भी ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विद्यमान है।

    चार कुतुब दरगाह- सूफी परंपरा का केन्द्र (13वीं–14वीं शताब्दी)

    हांसी की चार कुतुब दरगाह सूफी परंपरा की अमूल्य विरासत है, जिसकी शुरुआत 13वीं शताब्दी में हुई। पहले कुतुब शेख कुतुब जलालुद्दीन (मृत्यु: 1236 ई.) थे। इसके बाद हजरत कुतुब बुरहानुद्दीन, ख्वाजा कुतुबुद्दीन मुनव्वर और चौथे कुतुब हजरत कुतुब नूरुद्दीन (1325–1397 ई.) इस परंपरा के प्रमुख स्तंभ रहे। मुगल बादशाह हुमायूं ने 16वीं शताब्दी में दरगाह को 5210 बीघा भूमि दान दी। यह स्थल सांप्रदायिक सौहार्द और सांस्कृतिक समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

    राखीगढ़ी- सिंधु घाटी सभ्यता का विराट नगर (2600–1900 ईसा पूर्व)

    राखीगढ़ी, हांसी क्षेत्र का विश्वस्तरीय पुरातात्विक स्थल है, जो सिंधु घाटी सभ्यता (2600–1900 ईसा पूर्व) का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यह स्थल सरस्वती और दृषद्वती नदी तंत्र के क्षेत्र में स्थित रहा। 1963 में प्रारंभिक उत्खनन हुआ, जबकि 1997–1999 के दौरान अमरेन्द्र नाथ के नेतृत्व में व्यापक खुदाई की गई। धोलावीरा के बाद इसे भारतीय उपमहाद्वीप का दूसरा सबसे बड़ा हड़प्पा नगर माना जाता है। यहां संग्रहालय स्थापना की प्रक्रिया इस विरासत को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में अहम कदम है।

    लाल सड़क- 1857 की क्रांति की साक्षी

    हांसी की लाल सड़क 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अमिट स्मृति है। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह में शामिल क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने सार्वजनिक रूप से इसी मार्ग पर कठोर दमन का शिकार बनाया। विद्रोहियों को सड़क पर लिटाकर रोड रोलर चलाए जाने की घटनाओं ने इस मार्ग को ‘लाल सड़क’ की पहचान दी। जो अत्याचार की गवाही देता है।

    आमटी तालाब- आत्मसम्मान व बलिदान की कथा

    इतिहासकारों के अनुसार, 1038 ई. में हांसी पर राजा श्रीपाल का शासन था। तुर्क आक्रमण के दौरान राजा की पुत्री अमृति ने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए तालाब में कूदकर प्राण त्याग दिए। उनकी स्मृति में ‘अमृति तालाब’ कहा गया, जो कालांतर में ‘आमटी तालाब’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह मध्यकालीन भारत में स्त्री बलिदान की गाथा को दर्शाता है। हांसी की लोकस्मृति में विशेष स्थान रखता है।

    अब क्या बदलेगा हांसी में

    जिला बनने के साथ ही हांसी के विकास की रफ्तार नए स्तर पर पहुंचेगी। अब अलग जिला बजट, उपायुक्त कार्यालय, जिला एवं सत्र न्यायालय, जिला पुलिस प्रशासन और अन्य विभागीय ढांचे हांसी में ही स्थापित होंगे। लोगों को प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों के लिए हिसार नहीं जाना पड़ेगा। इससे समय, संसाधन और आर्थिक बोझ—तीनों की बचत होगी।

    हांसी जिला बनने के बाद संभावित बदलाव प्रशासनिक काम अब स्थानीय स्तर पर होंगे।

    • जिला कोर्ट और न्यायिक ढांचा
    • नई विकास योजनाएं और रोजगार
    • बुनियादी ढांचे में तेजी
    • निवेश और उद्योग को बढ़ावा