मोटा धान की बिजाई-रोपाई पर हरियाणा सरकार का जोर, होती है पानी की 40 प्रतिशत तक बचत
धान की बिजाई-रोपाई की तैयारियां जोर पकड़ती है। 15 जून तक तो धान की रोपाई पर रोक रहती है। मगर उसके बाद जुलाई के आखिर तक खूब रोपाई होती है। किसानों की ओ ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : मानसून की आहट के समय धान की बिजाई-रोपाई की तैयारियां जोर पकड़ती है। 15 जून तक तो धान की रोपाई पर रोक रहती है। मगर उसके बाद जुलाई के आखिर तक खूब रोपाई होती है। किसानों की ओर से धान की अलग-अलग किस्मों को तवज्जो दी जाती है। दिल्ली से सटे प्रदेश के इलाकों में बासमती किस्मों की बिजाई-रोपाई ज्यादा होती है।
इधर, सरकार का जोर है कि किसान मोटा धान की रोपाई पर जोर दें। इसकी सरकारी खरीद भी होती है जबकि बासमती किस्मों को तो किसान खुले बाजार में बेचते हैं। इनके दाम में अंतर है। धान की जिस किस्म की सरकार खरीद करती है उसके दाम दो हजार रुपये प्रति क्विंटल से अभी नीचे हैं, जबकि बहादुरगढ़ और आसपास के इलाकों में किसान जिन बासमती किस्मों की बिजाई-रोपाई करते हैं, उसके दाम खुले बाजार में घटते-बढ़ते रहते हैं।
इनके दाम तीन से चार हजार रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहते हैं। हालांकि दोनों के उत्पादन में भी फर्क है। मोटा धान का उत्पादन ज्यादा होता है। बासमती किस्म के मुकाबले यह जल्दी पककर तैयार होने वाली किस्म है। आम तौर पर धान की बासमती किस्मों की फसल 140 से 150 दिनों में तैयार हाेती है जबकि मोटा धान की फसल लगभग 100 दिनों में तैयार हो जाती है।
अब सरकार का जोर है कि किसान यदि कम अवधि वाली धान की किस्म को तवज्जो देते हैं तो उससे पानी की बचत हो सकती है। जाहिर सी बात है कि जो फसल ज्यादा अवधि में पककर तैयार होगी, उसे ज्यादा पानी चाहिए। मौजूदा समय में बहादुरगढ़ में स्थित हरियाणा बीज विकास निगम के बिक्री केंद्र पर मोटा धान के बीज की ही सप्लाई दी जा रही है ताकि किसान इस किस्म की बिजाई-रोपाई ज्यादा करें।

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