Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शादी में लोगों को खाना फेंकते देखा तो रातभर नहीं सोया ये शख्‍स, शुरू की अनोखी पहल

    By manoj kumarEdited By:
    Updated: Sun, 02 Dec 2018 11:40 AM (IST)

    विवाह शादियों से बचा भोजन एकत्रित कर जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए तत्पर रहते हैं एडवोकेट भुवन भास्‍कर खेमका, वर्ष 2010 से जारी है काम, कार्यक्रमों में लगाते हैं जागरूकता स्लोगन

    शादी में लोगों को खाना फेंकते देखा तो रातभर नहीं सोया ये शख्‍स, शुरू की अनोखी पहल

    सिरसा [जागरण स्‍पेशल] भूख लगी हो तो हमें सामान्‍य खाना भी बेहद लजील लगता है, मगर जब बात किसी समारोह की हो तो व्‍यंजनों की अधिकता होने पर भोजन खाया कम और जाया ज्‍यादा होता है। मुंह का जायका जरा भी बिगड़ जाए तो बाकी बचे खाने को डस्‍टबिन में फेंकने में देर नहीं लगाते। मगर ऐसा करने से पहले एक बार भी यह नहीं सोचते की फेंका गया खाना आखिर किसी काम आएगा। मगर एक शख्‍स ने इस बारे में इतना सोचा की वह पूरी रात सो नहीं पाया और एक अनोखी पहल शुरू कर दी। शुरूआत में अकेले चले मगर अब उनके साथ पूरा कारवां जुड़ चुका है। खाने की अहमियत को समझने वाले वकील की पहल ऐसी रंग लाई की अब हरियाणा के सिरसा शहर में शायद ही कोई ऐसा हो जो धन नहीं होने की सूरत में भूखा सोता हो।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पहल की कहानी, उन्‍हीं की जुबानी
    सिरसा निवासी एडवोकेट भुवन भास्कर खेमका ने कहा कि मैं निजी पैलेस में आयोजित शादी समारोह में गया था। शादी में आए लोग प्लेट भरकर पकवान ले रहे थे। इसके बाद आधे पकवान प्लेट में बचे होने के बाद भी डस्टबिन में डाल रहे थे। शादी से लौटने के बाद ऐसे समारोहों में होने वाली भोजन की बर्बादी की घटना ने रातभर सोने नहीं दिया। इसके बाद लोगों को जागरूक करने का फैसला लिया। यह साल 2010 की बात है। खेमका ने वर्ष 2010 में श्रीराम भोजन बचाओ संस्था का गठन किया गया। इस संस्था में लोगोंं को सदस्य बनाया गया। सदस्यों से प्रतिमाह 5 रुपये एकत्रित किए गये। जिसे संस्था द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिए खर्च किया जाता रहा। फिर राशि बढ़ाकर सदस्यों से 50, 100, 200, 500 व 1000 रुपये प्रतिमाह एकत्रित करने लगे।
    खेमका कहते हैं कि मैरिज पैलेस में विवाह समारोह से फेंके गए खाने के अलावा बचा हुआ खाना एकत्रित करने के बाद अनाथ आश्रम, वृद्ध आश्रम और झुग्गी झोपडिय़ों में जाकर बांटा जाता है।

    चपाती नहीं मिलती तो ब्रेड खरीद बांटते हैं
    संस्था को अगर कहीं से सब्जी मिलती है और चपाती नहीं मिलती तो संस्था के पदाधिकारी अपने खर्च पर ब्रेड खरीद कर उसे बांटते हैं। संस्था के 250 मासिक सदस्य हैं जो हर महीने दान देते हैं। इसी से संस्था के सदस्य भोजन सामग्र्री खरीदते हैं। संस्था के सदस्य शहर से 25 किलोमीटर दूर तक भोजन एकत्रित करने पहुंच जाते हैं और लाकर बांटते हैं।खेमका कहते हैं कि लाखों रुपये का अन्न प्रतिदिन बर्बाद होता है। जिसको बचाकर हम कई घरों में चूल्हा जला सकते हैं। लाखों बच्चों को पढ़ा सकते हैं। गरीबों का इलाज करा सकते हैं। नेत्रों में ज्योति प्रदान कर सकते हैं।

    उतना ही लो थाली में, व्‍यर्थ न जाए थाली में
    वकील ने बताया कि अन्न की बर्बादी रोकने के लिए संस्था द्वारा अभियान चलाए जा रहे हैं, जिसके तहत सभी प्रमुख जगहों पर, घरों में, मंदिरों में स्टीकर लगाकर उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में लगाकर संदेश दिया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री भी अन्न की बचत के लिए जनता से अपील कर चुके हैं, जब भी हम कोई भी कार्यक्रम करते हैं, तो उतना ही समान बनवाना चाहिए कि व्यर्थ न जाए नाली में।