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    हड़प्पाकालीन तिगड़ाना में अब मिला पांच हजार साल पुराना मटका और मकान का ढांचा

    By Manoj KumarEdited By:
    Updated: Thu, 27 Feb 2020 12:46 PM (IST)

    खोदाई के दौरान मिले मटके का इस्तेमाल दूध डालने के लिए किया जाता था या फिर पानी यह जांच के बाद ही पता चलेगा। अब भिवानी के तिगड़ाना में मकान के ढांचे की ...और पढ़ें

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    हड़प्पाकालीन तिगड़ाना में अब मिला पांच हजार साल पुराना मटका और मकान का ढांचा

    भिवानी [बलवान शर्मा] पुरातत्व विभाग को तिगड़ाना में खोदाई के दौरान एक और बड़ी सफलता हाथ लगी है। बुधवार को पांच हजार साल पुराना मटका मिला है, वहीं हड़प्पाकालीन मकान का ढांचा भी मिल गया है। इससे हड़प्पाकालीन सभ्यता को समझने में पुरातत्वविदों को बड़ी आसानी रहेगी।

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    खोदाई के दौरान मिले मटके का इस्तेमाल दूध डालने के लिए किया जाता था या फिर पानी, यह जांच के बाद ही पता चलेगा। इसी के साथ मकान के ढांचे की खोदाई भी आगे बढ़ा दी गई है। खोदाई में पता किया जाएगा कि हड़प्पा काल में लोग गोल आकार के मकानों में रहते थे या फिर चौकोर। हालांकि अभी इस पर भी शोध किया जाएगा। मिट्टी की चुडिय़ां व खिलौने तो हजारों की संख्या में खोदाई के दौरान मिल चुके हैं।

    बता दें कि पुरातत्व विभाग की टीम हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय जाट पाली के पुरातत्व विभाग अध्यक्ष एवं पुरातात्विक शोध परियोजना तिगड़ाना के निदेशक डा. नरेंद्र परमार की अगुआई में 25 जनवरी को गांव तिगड़ाना पहुंची थी। टीम अप्रैल माह के अंत तक यहां पर खोदाई करेगी। निदेशक डा. नरेन्द्र परमार ने कहा कि मटका और मकान का ढांचा मिलना अब तक की सबसे बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि रिसर्च टीम जांच करेगी कि मटके का इस्तेमाल किस कार्य के लिए किया जाता रहा होगा।

    बता दें कि इससे पहले हिसार के राखी गढ़ी में हड़प्‍पाकालीन सभ्‍यता के प्रमाण मिल चुके हैं। यहां मिले हजारों साल पुराने कंकालों पर भी बड़ी जानकारी सामने आ चुकी है। वहीं हाल में क्रेंदीय बजट में भी राखीगढ़ी को राष्‍ट्रीय पर्यटन बनाने को लेकर स्‍पेशल बजट जारी करने की घोषणा की गई है। यहां पर एक भव्‍य म्‍यूजियम बनाने की तैयारी है। हरियाणा सरकार भी इसके लिए विशेष तैयारी कर रही है। राखीगढ़ी में हड़प्‍पाकालीन बर्तन, चूडि़या, मनके और अन्‍य चीजें मिली थी। ऐसे में माना यह जा रहा है कि सरस्‍वती नदी के साथ लगते छोटे बड़े शहर यहां बसे थे, जो खेती भी करते थे और उनका रहन सहन एक विशेष तरह की थी। भिवानी में भी खोदाई के दौरान विशेष जानकारी सामने आ सकती है।