पशुधन ऋण योजना में उलझ रहे किसान, आवेदन से लोन पास होने तक छह महीने का लगता है समय
प्राइवेट बीमा कंपनी अधिक दर के साथ पशुओं का कराती है बीमा। लोन लेने के एक महीने बाद ही शुरू होती है किस्त।
वैभव शर्मा, हिसार : पशुधन योजना के जरिए सरकार किसानों को उद्यमी बनाने का सपना सजा रही है। मगर योजनाएं इतनी उलझाने और शोषण करने वाली हैं कि किसानों को पता ही नहीं चलता कि जिस लोन को वह बैंक से लेने जा रहे हैं, उसपर किस्त चुकाना आगे चलकर उन्हें कितना भारी पड़ेगा। दरअसल पशुधन योजना में 5, 10 और 20 दुधारू पशुओं की यूनिट लगाने के लिए किसानों को ऋण दिया जाता है। पशुपालन विभाग का दावा है कि ऋण लेने की प्रक्रिया आसान है, मगर हकीकत यह है कि एक छोटे ऋण के लिए लोगों को छह-छह माह तक का समय लग जाता है। सिर्फ यही नहीं बल्कि जमीन गिरवी रखने के बावजूद योजना में इतने कागज लिए जाते हैं कि किसान उलझता ही दिखाई देता है। अगर लोन पास हो भी जाए तो भी उसे चुकाने में किसानों के पसीने छूट रहे हैं। यह सब कमी इस योजना के जटिल प्रक्रिया के कारण है।
20 प्रकार की जटिल कागजी प्रक्रियाएं, जिनसे होकर किसानों को लोन लेने के लिए गुजरना पड़ता है
1- पशुधन योजना में ऑनलाइन आवेदन से पहले नजदीकी बैंक से आवेदक को एनओसी लेनी होती है। जिसमें लिखा होता है कि बैंक किसान को लोन दे सकती है।
2- बैंक से एनओसी मिलने के बाद सरल पोर्टल पर किसान ऑनलाइन आवेदन करता है, जिसमें कई प्रकार के दस्तावेज देता है।
3- यहां से आवेदन पशुपालन विभाग के एसडीओ के पास जाता है।
4- पशुपालन विभाग के एसडीओ से पशुपालन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर कार्यालय में फाइल जाती है।
5- यहां गौर करने वाली बात है कि हर कार्यालय में फाइल के पीछे-पीछे आपको लगना होगा।
6- डिप्टी डायरेक्टर कार्यालय से लोन की फाइल पर योजना की स्वीकृति मिल जाती है, अब यहां से किसान के बैंक में चक्कर शुरू होते हैं।
7- स्वीकृति लेकर किसान बैंक में पहुंचता है, जहां बैंक अपने फील्ड अफसर को जहां पशुओं की यूनिट लगेगी, उस जगह का मुआयना करने की जिम्मेदारी देता है। किसान बताते हैं कि फील्ड अफसर सप्ताह में एक दिन आते हैं।
8- बैंक का फील्ड अफसर निरीक्षण में यह पाता है कि यूनिट के लिए जगह कम है तो किसान को पहले शेड या जगह की व्यवस्था करनी होगी।
9- फील्ड अफसर की रिपोर्ट के बाद जमीन की अधिवक्ता से रिपोर्ट ढ़ाई हजार रुपये में किसान बनवाता है।
10- इसके बाद किसान वेटरनरी सर्जन से मिलता है। पूछता है कि आप एक दिन तय करें जिस दिन पशुओं की खरीद की जा सके। क्योंकि योजना में नियमानुसार वेटरनरी सर्जन, बैंक प्रतिनिधि, एसडीओ व इंश्योरेंस कंपनी के प्रतिनिधि की कमेटी ही पशु खरीद कराती है।
11- किसान जहां से पशु खरीद रहा है, वह स्थान 100 किलोमीटर दूर है तो लोन लेने वाले पशुपालक को उन पशुओं को गाड़ी में लादकर पशु चिकित्सालय में लाना होगा।
12- अब यहां से नए नियम शुरू होते हैं, अगर आप 10 भैंस खरीदने के लिए लोन ले रहे हैं तो 5 भैंस ही पहली बार में खरीद सकते हैं।
13- किसानों का कहना है कि अच्छी नस्ल की एक भैंस करीब 1 लाख में आती है, मगर लोन 70 हजार रुपये की कीमत पर ही होगा। यानि यहां भी किसान को 30 हजार रुपये का सीधा नुकसान होगा।
14- यहां तक पहुंचने के बाद भी लोन की राशि नहीं देते बल्कि पशुओं का बीमा करते हैं। (अगर 10 पशु का लोन है तो नियमानुसार पांच पशु का सरकारी रेट 2.25 फीसद पर बीमा तो बाकी पांच का प्राइवेट बीमा कंपनी 4.5 फीसद व जीएसटी चुकाना पड़ता है)
15- पशु खरीद समिति अपनी रिपोर्ट बैंक में भेज देती है। फिर बैंक दो हजार रुपये का स्टांप पेपर बनवाने को कहता है।
16- यहां बैंक कहता है कि आप जिस पशु पालक से पशु खरीद रहे हो, उसका आइडी प्रूफ, बैंक अकाउंट लेकर आओ।
17- यह दस्तावेज देने के बाद बैंक कहता है कि कुल लोन का 25 प्रतिशत भाग किसान को बैंक को देना होगा।
18- बैंक कहता है प्रोसेसिंग फीस के 15 हजार रुपये हो गए। यहां किसान को समझ नहीं आता कि किस प्रकार की फीस यहां तक पहुंचने के बाद वह चुका रहे हैं।
19- यहां तक पहुंचते-पहुंचते किसान को लगभग छह माह बीत चुके होते हैं, सब्सिडी के साथ लोन पास हो जाता है।
20- लोन स्वीकृत होने के एक महीने बाद ही किसान को लोन की पहली किस्त चुकानी पड़ती है।
नोट- 20 प्रक्रियाओं में छह माह का समय और न जाने कितनी बार बैंक व सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने के बाद ऋण स्वीकृत होता है। अगर किसान का ऋण 9.60 लाख रुपये है तो सब खर्चे काट कर किसान के हाथ में 7 लाख रुपये आते हैं, मगर उसे लोन की किस्त 9.60 लाख रुपये पर ही चुकानी पड़ती है।
ऊर्जा मंत्री के पास पहुंचा मामला
भाजपा नेता अनिल गोदारा ने कष्ट निवारण समिति की बैठक में बताया कि उन्होंने पशुधन योजना में 20 पशुओं की यूनिट के लिए आवेदन किया था। मगर 12 की स्वीकृति मिली। एक लाख रुपये से शेड भी बनवाना पड़ा। छह महीने तक ऋण की फाइल पास कराने को सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटे। ऋण पास हुआ तो बीमा कंपनी ने 4.5 फीसद की दर से बीमा व जीएसटी लिया। शिकायत कर उन्होंने बताया कि बीमा का सरकारी रेट 2.25 फीसद है, तो बैंक ने अपनी गलती मानते हुए ली गई अतिरिक्त धनराशि वापस करने की बात कही। मगर ऐसे न जाने कितने किसान होंगे जो इस योजना में ऋणी होते जा रहे हैं। इसका न तो विभाग के पास कोई रिकार्ड है न ही लोन देने वाले बैंक को परवाह है।
जिला प्रशासन पशुधन योजना की समीक्षा कर सरकार को लिखे, ताकि लोन की प्रक्रिया को आसान किया जा सके। इसको लेकर अगर सरकार के स्तर पर कोई परिवर्तन भी कराना है तो कष्ट निवारण समिति की बैठक का हवाला देकर लिखा जा सकता है।
-रणजीत सिंह, बिजली मंत्री, हरियाणा सरकार।