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ग्वार की खड़ी फसल में जडग़लन (उखेड़ा) रोग आने पर उसका उपाय कैसे करें

डॉ. यादव ने बताया उखेड़ा (जडग़लन) बीमारी के जीवाणु जमीन में पनपते हैं व ग्वार के उगते पौधों की जड़ें प्रभावित होकर काली हो जाती है। जिससे पौधे जमीन से नमी व खुराक लेना बंद कर देते हैं। उखेड़ा बीमारी के शुरूआती लक्षण पत्ते पीले होना शुरू हो जाते हैं

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 23 Jul 2021 04:14 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jul 2021 04:14 PM (IST)
हिसार में ग्‍वार की फसल को बीमारी से बचाने के लिए विशेषज्ञों ने जानकारी दी

जागरण संवाददाता, हिसार। एचएयू से सेवानिवृत वरिष्ठ शस्य वैज्ञानिक डॉ. आरएस ढुकिया के तत्वावधान में ग्वार विशेषज्ञ डॉ. बीडी यादव के सहयोग से ग्वार की पैदावार बढ़ाने पर हिसार जिले के गांव चौधरीवास में शिविर का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में किसानों को डॉ. ढुकिया ने खरीफ  फसलों में खाद का प्रयोग, खरपतवार नियंत्रण तथा विशेषकर मूंग फसल की पिछेती बिजाई के बारे में पूरी जानकारी दी। उन्होंने किसानों को मूंग की एमएच 421 जो रोग रहित किस्म है, उसकी बिजाई करने के लिए प्रोत्साहन किया। इस प्रोग्राम को आगे बढ़ाते हुए ग्वार विशेेषज्ञ डॉ. बीडी यादव ने किसानों को बताया कि ग्वार की कम पैदावार होने में जडग़लन व झुलसा रोग ही मुख्य कारण है, जिससे ग्वार फसल की पैदावार बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाती है।

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जडग़लन रोग पर बोलते हुए ग्वार विशेषज्ञ ने इस गोष्ठी में किसानों को ग्वार फसल की बिजाई के समय जो किसान किसी कारण उखेड़ा रोग की रोकथाम के लिए बीज उपचार नहीं कर पाये, उसके लिए डॉ. बीडी यादव ने किसानों को खड़ी फसल में उखेड़ा बीमारी आने पर उसके रोकथाम के बारे मे पूरी जानकारी दी। शिविर में किसानों से रूबरू होने पर पता चला कि ग्वार की उखेड़ा व अन्य बीमारियों के रोकथाम के बारें में ज्यादातर किसानों को कोई जानकारी नहीं है। इसलिए इस तरह की गोष्ठी का आयोजन करना किसानों के लिए और भी जरूरी हो जाता है। 

जडग़लन (उखेड़ा) रोग के लक्षण

डॉ. यादव ने बताया कि उखेड़ा (जडग़लन) बीमारी के जीवाणु जमीन में पनपते हैं व ग्वार के उगते हुए पौधों की जड़ें प्रभावित होकर काली हो जाती है। जिससे पौधें जमीन से नमी व खुराक लेना बंद कर देते हैं। उखेड़ा बीमारी के शुरूआती लक्षण पत्ते पीले होना शुरू हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे पौधें मुरझाकर सुख जाते हैं। ऐसे पौधों का जब उखाड़ कर देखते हैं तो उनकी जड़े काली मिलती हैं। उखेड़ा बीमारी से 20 से 45 प्रतिषत ग्वार की फसल खराब हो जाती है।

ग्वार की खड़ी फसल में जडग़लन रोग का उपचार कैसे करें

ग्वार विशेषज्ञ डॉ. यादव ने किसानों को बताया कि जो किसान बिजाई के समय बीज उपचार नहीं कर पाये, उनके लिए उन्होंने किसानों को सलाह दी कि ग्वार की खड़ी में यह बीमारी आती है तो उसकी रोकथाम के लिए करीबन 20 किलो सूखी भूरभूरी मिट्टी में 500 ग्राम कार्बान्डाजिम 50 प्रतिशत (बेविस्टीन) मिला कर खड़ी फसल में छिटा मार कर नहरी/टयूबैल का अच्छी किस्म वाला पानी लगाएं या बारिश के तुरन्त बाद खड़ी फसल में छिटा लगाएं जिससे यह दवाई पौधों की जड़ों में जा कर असर करेगी।

ऐसा करने से इस रोग पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। खड़ी फसल में इस बीमारी के रोकथाम के लिए यही एक मात्र समाधान है। उन्होंने किसानों को यह भी बताया कि अगले सीजन में ग्वार की किसान जब बिजाई करें बीज उपचार करना कदापि न भूलें, क्योंकि बीज उपचार करने से उखेड़ा बीमारी पर 80-95 प्रतिशत तक काबू पाया जा सकता है।

इस बीमारी के रोकथाम में बीज उपचार ही एक मात्र समाधान, जो सस्ता व सरल उपाय है। इस अवसर पर 30 किसानों ने भाग लिया तथा मौजूद सभी किसान को एक जोड़ी दस्ताने कम्पनी की तरफ से मुफ्त दिये गए। इसके अलावा कोरोना की बीमारी को ध्यान में रखते हुए सभी किसानों को मास्क वितरित किये गये तथा हाथों को सैनिटाईज किया तथा उचित दूरी बनाये रखी गई। इस प्रोग्राम को आयोजित करने में प्रगतिषील किसान मास्टर नसीब सिंह का अहम योगदान रहा। इस अवसर पर राम मूर्ति, सुभाष चन्द्र, गुरचरन सिंह, अमर सिंह, सुरजीत सिंह, मनोज कुमार, राजबीर ंिसंह आदि मौजूद थे।


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