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    Emergency 1975: 'खाने में कीड़े, पेशाब वाले घड़े में मिलता था पीने का पानी', हिसार जेल में बंद रहे कैदी से सुनिए इमरजेंसी की कहानी

    आज से 49 साल पहले 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लागू (Emergency In India) हुआ था। आपातकाल के दौरान जेल में बंद कैदियों से जो ज्यादती हुई उसके घाव उनके दिलों आज तक हरे हैं। हिसार सेंट्रल जेल (Hisar Central Jail) में बंद रहे हांसी के लाल सड़क निवासी रामस्वरूप पोपली ने इमरजेंसी का दर्द साझा किया है।

    By Amit Dhawan Edited By: Rajiv Mishra Updated: Tue, 25 Jun 2024 10:11 AM (IST)
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    हिसार जेल में बंद रहे कैदी ने बताए इमरजेंसी की कहानी (फाइल फोटो)

    जागरण संवाददाता, हिसार। देश में 49 साल पहले लगी आपातकाल का दर्द अभी तक किसी के दिल से नहीं गया है। आपातकाल लगने के बाद जिले में पुलिस ने 45 से ज्यादा लोगों को पकड़ा।

    पुलिस से बचने के लिए उस समय संघ के सदस्य बचते रहे। हालात यह थे कि पकड़े जाने पर थाने में पेशाब वाले मटके में पानी दिया गया। जेल में बंद किया तो खाने में कीड़े मिले। हालात सही नहीं थे भूख हड़ताल तक रही।

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    एक बैरक में रखे जाते थे बीस लोग

    हिसार सेंट्रल जेल एक ऐसी थी जिसमें उस समय हिसार के अलावा सिरसा, फतेहाबाद, भिवानी आदि जगह के बंदियों को बंद रखा था। एक बैरक में करीब 20 लोगों को रखते थे। जिले की जेल में सैकड़ों बंदियों को बंद कर रखा था। आपातकाल के दौरान जिले में अनेक लोगों को पकड़ा गया था।

    साथ ही हिसार सेंट्रल जेल में देश के कई बड़े चेहरों को बंद रखा गया था। जेल में बंद रहते हुए नेताओं ने चुनाव लड़े और जीते भी थे। आपातकाल की यादों को आज भी उस समय पकड़े गए जिलेवासी ताजा करते हैं। जिले में आपातकाल में पकड़े लोगों को सरकार की तरफ से ताम्र पत्र दिया गया। उनको सरकार की तरफ से पेंशन भी दी जा रही है।

    रामस्वरूप पोपली की जुबानी सुनिए इमरजेंसी की कहानी

    मैं उस समय 24 साल का था। हांसी के बजरिया चौक अब प्रताप चौक पर पिताजी के साथ कपड़े की दुकान पर बैठता था। शाखा का मुख्य शिक्षक होने नाते मुझ पर नजर थी। 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा हुई तो मेरे साथ के लोगों को पुलिस ने पकड़ लिया। मैं उनसे बचता रहा।

    पकड़ने के लिए दुकान पर पुलिस आती तो मैं छिप जाता था। उसी दौरान एक साथी के बुजुर्ग पिता को पुलिस ने पकड़ लिया तो मुझे भी परिवार का ख्याल आया। मैं बाद में भागा नहीं। 8 जुलाई को मुझे पुलिस ने पकड़ लिया और चार दिन तक थाने में बंद रखा।

    मुझे व मेरे साथियों को पेशाब वाले मटके में पीने का पानी देते थे। गर्मी थी तो पीना पड़ता। उसके बाद मुझे व साथियों को सेंट्रल जेल एक में भेज दिया। एक बैरक में 20 बंदी तक रखते थे। खाने में सब्जी मिली तो उसमें कीड़े थे। मैंने और बाकी साथियों ने विरोध किया और दो से तीन दिन तक भूख हड़ताल।

    उनकी सुनवाई हुई और सभी मिलकर एक व्यक्ति खाना बनाना वाला मिल गया। जो सभी को 100 ग्राम तेल मिलता तो उसको बिकवा कर घी मंगवाते थे। सभी को कुछ समय के लिए बैरक से निकाला जाता था। तीन महीने बाद उनकी जमानत हुई। आज भी मुझे वो पल याद है। उस समय जो साथी जो उसमें कुछ नहीं रहे।

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