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    सेरोटेनिन हार्मोन के असंतुलित होने से एक ही काम को बार-बार करने की बन जाती है आदत, इलाज संभव

    By Manoj KumarEdited By:
    Updated: Tue, 11 Jan 2022 04:53 PM (IST)

    हाथों में धूल-मिट्टी या कुछ ऐसा लग गया कि साफ करने की जरूरत है। आप अच्‍छे से हाथों को धोते हैं। अभी महज कुछ सेकेंड ही बीतें है कि आप दोबारा हाथों को धोने लगते हैं। ऐसे ही कई और काम हम लगातार करते हैं यह रोग है।

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    आब्सेसिव कम्पलसिव डिसआर्डर (ओसीडी) से ग्रस्त व्यक्ति का अपना ही विश्‍वास प्रक्रिया बन जाती है

    केएस मोबिन, रोहतक : आपने कोई कार्य किया। हाथों में धूल-मिट्टी या कुछ ऐसा लग गया कि साफ करने की जरूरत है। आप पानी से अच्छी तरह से हाथों को धोते हैं। अभी महज कुछ सेकेंड ही बीतें है कि आप दोबारा हाथों को धोने लगते हैं। आप गाड़ी का शीशा ऊपर चढ़ाते या नीचे उतारते हैं। ऐसा बार-बार करते हैं। आपको हर बार यही लगता है कि ऐसा किया जाना चाहिए। इसी तरह की कोई अन्य गतिविधि यदि आप बार-बार करने की आदत है तो यह सामान्य नहीं है। यदि कुछ ही मिनटों के अंतराल में बार-बार एक ही कार्य को दोहराने की आदत बन चुकी है तो आप आब्सेसिव कम्पलसिव डिसआर्डर (ओसीडी) का शिकार हो चुके हैं। ब्रेन (दिमाग) में सेरोटेनिन हार्माेन के अनबैलेंस (अनियंत्रित) होने से यह परेशानी होती है।

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    रोहतक बेस्ड साइकोलाजिस्ट (मनोविज्ञानी) राज आलमपुर बताते हैं कि सेरोटेनिन हार्माेन व्यक्ति के मूड (मनोदशा) को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है। ओसीडी बायोलाजिकल बेस्ड मेंटल हेल्थ डिसआर्डर है। इस स्थिति में व्यक्ति का दिमाग एक तरह का बिलीफ सिस्टम तैयार कर लेता है। ओसीडी से ग्रस्त व्यक्ति को कई तरह की शारीरिक परेशानी महसूस होती है जोकि अक्सर होती नहीं है। जैसे, हर रोज एक तय वक्त पर ही शरीर में किसी खास जगह पर दर्द महसूस करना। जरूरी नहीं कि दर्द हो रहा है, लेकिन बिलीफ सिस्टम इसे मानने काे मजबूर करता है।

    कई व्यक्ति अक्सर कहते सुने होंगे कि हरे पत्ते की गोली खाए बिना नींद नहीं आती, उन्हें प्रतिदिन एक तय वक्त पर उस गोली को खाने का मन होता है। जबकि, असल में यह मनोविज्ञानी समस्या। यदि कोई व्यक्ति इस तरह की परेशानियों से ग्रस्त है तो कग्निटिव बिहेवियर थैरेपी (सीबीटी) से इसे ठीक किया जा सकता है। यह थैरेपी मनोविज्ञान से संबंधित है। ओसीडी के साथ ही यह एंग्जाइटी, अवसाद, पेनिक, एगोराफोबिया, सोशल फोबिया, बुलिमिया आदि में भी कारगर है। हालांकि, एडवांस स्टेज पर मनोचिकित्सा की भी साथ में जरूरत होती है।

    व्यक्ति को सिखाई जाती है सेल्फ कंट्रोलिंग

    ओसीडी के लिए मनोविज्ञानी रोगी के व्यवहार को रोगी के विचारों, भावना, व्यवहार में बदलने के लिए प्रयास करत है। जैसे, किसी चीज के लिए सबसे ज्यादा ओसीडी होती है। जैसे, कम से कम 10 बार हाथ धोने की आदत है, आठ बार कमरे के दरवाजे को खोलने-बंद करने की आदत है। छह से सात बार कहीं जाते हुए पीछे मुड़ने की आदत है या और अन्य आदतें। मनोविज्ञानी इन आदतों पर सेल्फ कंट्रोल करने के लिए नियम बताता है। जैसे, किसी भी एक आदत पर प्रतिदिन पहले की बजाए कम बार करने के लिए सेल्फ कंट्रोल। धीरे-धीरे आदतों को सुधारा जाता है, जोकि एक वक्त सामान्य स्थिति में पहुंच जाता है। जैसे- मनोविज्ञानी यह कह सकता है कि अपनी सभी आदतों (ओसीडी) की लिस्ट बनाएं और उसपर लिख लें कि कि फलां को इतनी बार से ज्यादा तो बिल्कुल नहीं करूंगा।

    विचारों, भावनाएं होती हैं प्रभावित

    कोई मुश्किल, घटना या कठिन परिस्थिति में उपजे, विचार, भावना, शारीरिक लक्षण, व्यवहार व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। इससे लोग धीरे-धीरे आपसे दूर भागने लगते हैं। सीबीटी परेशानियों को विभिन्न को हिस्सों में रखकर उन्हे समझने में मदद की जाती है। इससे यह समझ पाना आसान हो जाता है कि परेशानियों में आपस में क्या संबंध है और वह व्यक्ति को किस तरह प्रभावित करते हैं।

    -----ओसीडी में सेल्फ कंट्रोल बहुत जरूरी हो जाता है। लेकिन, समस्या यह है कि जो व्यक्ति इससे ग्रसित है वह सेल्फ कंट्रोल के अभाव में ही इस तरह की आदत का शिकार है। मनोविज्ञानी उक्त व्यक्ति के सेल्फ कंट्रोलिंग पर कार्य करता है। जागरूकता के अभाव में लोग इसे पागलपन का प्रारंभिक रूप मान लेते हैं। एक तरह से सोशल स्टिग्मा (सामाजिक कलंक) मान लिया जाता है। सालों-साल व्यक्ति इससे जूझता रहता है। व्यक्ति के स्वजन भी परेशान रहते हैं। यह रिश्तों में दरार का कारण तक बन जाता है।

    राज आलमपुर, मनोविज्ञानी, रोहतक।