गधी का दूध बढ़ाएगा सौंदर्य, साबुन व लिप बाम जैसे उत्पाद किए तैयार, जल्द मिलेंगे बाजार में
कहा जाता है कि मिस्न की रानियां अपनी सुंदरता को कायम रखने के लिए गधी के दूध से नहाया करती थीं। मगर अब भारत में गधी के दूध से बने उत्पादों से सौंदर्य को बढ़ाया जा सकेगा।
हिसार, जेएनएन। कहा जाता है कि मिस्न की रानियां अपनी सुंदरता को कायम रखने के लिए गधी के दूध से नहाया करती थीं। मगर भारत में इस बात पर यकीन कर पाना थोड़ा भ्रम भरा हो सकता है। मगर अब कुछ ऐसा ही दोबारा होने जा रहा है। लेकिन इस बार गधी के दूध से नहीं बल्कि दूध से बने सौंदर्य पदार्थों का प्रयोग सौंदर्य उत्पादों के रूप में किया जा सकेगा।
ऐसा संभव हुआ है राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र एंव केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा गधी के दूध को लेकर किए गए रिसर्च से। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के उपमहानिदेशक एवं पूर्व निदेशक डा. बीएन त्रिपाठी के मार्गदर्शन एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. अनुराधा भारद्वाज के नेतृत्व में गधी के दूध पर शोध करके सौंदर्य उत्पाद तैयार किए हैं। इस महत्वपूर्ण शोध में वर्तमान निदेशक डा. यशपाल के साथ केंद्रीय भैंस अनुसंधान एनआरसीई संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. वारिज नयन एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. हेमा त्रिपाठी और बीकानेर से डा. आरए लेघा ने भी योगदान दिया है।
साबुन, लिप बाम जैसे उत्पाद किए तैयार
वैज्ञानिकों की टीम ने गधी के दूध से निर्मित सौंदर्य उत्पादों जैसे कि साबुन, लिप बाम तैयार किए हैं। इन उत्पादों को बाजार में उतारने के लिए बुधवार को केरल की डॉल्फिन आइबीए के साथ अनुबंध किया गया। अनुबंध के द्वारा गधी के दूध से बने उत्पादों को यह कंपनी व्यवसायीकरण करेगी। आपको ये उत्पाद जल्द ही बाजार में उपलब्ध हो सकेंगे। अनुबंध पर राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. यशपाल और डाल्फिन आइबीए के संस्थापक निदेशक एबी बेबी के द्वारा हस्ताक्षर किए गए। अनुबंध करवाने में संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक एंव आइटीएमयू प्रबंधक डा. राजेंद्र गोयल की अहम भूमिका रही। इस अवसर पर डा. अनुराधा भारद्वाज, डा. यशपाल, डा. वारिज नयन, डा. राजेंद्र कुमार गोयल, डा. संजय कुमार, डा. बीसी बेरा एवं एबी बेबी उपस्थित रहे।