दादरी अनाज मंडी में कपास की आवक शुरू, किसानों को मिल रहे अच्छे दाम, पैदावार में आई गिरावट
दादरी की नई अनाज मंडी में अपनी कपास को लेकर आए किसानों ने कहा कि एक किले के प्रति एकड़ में 10 से 12 प्रति क्विंटल की पैदावार होती थी। परंतु अब बारिश के चलते अधिकतर फसलें बर्बाद हो चुकी है।
चरखी-दादरी, जागरण संवाददाता। दादरी की नई अनाज मंडी में कपास की आवक शुरु हो गई है। मंडी में किसानों को उनकी फसलों के पिछले साल की अपेक्षा अच्छे भाव मिल रहे हैं। किसानों की मानें तो इस बार अनाज मंडी में कपास के भाव 8500 से 9000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। जबकि न्यूनतम सरकारी भाव 6250 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। अबकी बार कपास के मूल्य में पिछले साल की अपेक्षा बढ़ोतरी हुई है। कपास की पैदावार कम होने का कारण बारिश से नष्ट हुई फसलों को बताया जा रहा है।
नमी के दिनों में खरीद कम
किसान जगबीर, सतेंद्र, चंद्र सिंह, रणबीर फौजी, रामोतार, सुखबीर, यादवेंद्र इत्यादि ने बताया कि नमी वाले मौसम में कपास की खरीद कम हो रही है। जिसको लेकर किसान चिंतित है। कपास बेचने वाले तो है परंतु खरीदने वाले कम है। नमी वाली कपास को आढ़ती 7500 से 8500 रुपये प्रति क्विंटल खरीद रहे है। पिछले सीजन की तुलना में अब की बार कपास की गुणवत्ता अच्छी है।
इस बार पैदावार कम हुई है। क्योंकि बारिश के चलते कपास, बाजरा, जवार और गवार की फसलें प्रभावित हुई है। पिछले सीजन की बात करें तो कपास की पैदावार अच्छी थी। किंतु इस बार बारिश की वजह से कपास के साथ-साथ अन्य फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। बता दें कि बारिश के चलते जो खिली हुई कपास थी वह टूट कर नीचे गिर गई। खेत में जो खड़ा हुआ बाजरा था व काटा हुआ था वह भी दोबारा अंकुरित हो गया। जिसके चलते बाजरे में किसानों को नुकसान हैं। बाजरे की फसल ऐसी है कि उसे नमी मिलते ही वह जम जाती है।
फसलों का खर्चा भी नहीं हो रहा पूरा
दादरी की नई अनाज मंडी में अपनी कपास को लेकर आए किसानों ने कहा कि एक किले के प्रति एकड़ में 10 से 12 प्रति क्विंटल की पैदावार होती थी। परंतु अब बारिश के चलते अधिकतर फसलें बर्बाद हो चुकी है। जिसमें से अब एक किले के प्रति एकड़ में तीन से चार प्रति क्विंटल ही फसलें निकल रही है। बरसात के चलते किसानों को भारी नुकसान हुआ है।
किसानों का कहना है कि कपास को बेचकर प्राप्त हुए मूल्य से उनकी फसलों की लागत भी नहीं निकल रही है। अब बस सरकार से यही अपील है कि सरकार किसानों की बर्बाद हुई फसलों का आकलन कर प्रभावित हुई फसलों का मुआवजा दे। आढ़तियों का कहना है कि वह किसान से फसल लेकर केवल दो से तीन प्रतिशत मुनाफे मूल्य में ही मिलर्स को बेच देते है। जिसमें लेबर, तुलाई इत्यादि शामिल है।
मिलर्स मिलकर लगाते है बोली
किसानों का कहना है कि मंडी में आने के बाद फसलों की मिलर्स बोली लगाते है। बोली लगाने से पहले मिलर्स आपस में बातचीत कर फसलों का एक निश्चित मूल्य तय कर लेते है। जिस बाद फसलों के मूल्यों में कोई खास बढ़ोतरी देखने को नही मिलती।
किसानों की मांग
किसानों का कहना है कि मंडी में आने के बाद फसलों पर आढ़ती जो खर्चा लगाते हैं उसे तुरंत बंद करे। मुद्दत, कटौती, तुलाई इत्यादि विक्रेता से नहीं बल्कि खरीददार से वसूली जाए।