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    Farmer Protest: दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन का रंग पड़ा फीका, जरूरी चीजों के लिए तरस गए हैं आंदोलनकारी

    By Naveen DalalEdited By:
    Updated: Wed, 22 Sep 2021 01:35 PM (IST)

    कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में पहले जो उबाल आया अब तस्वीर उसके उलट हो चुकी है। ऐसे में आंदोलन में एक-एक दिन अब पहाड़ सा हो रहा है। यहां पर दूध लस्सी फल सब्जी की बहार तो छोड़ो जरूरी मदद तक नहीं मिल रही है।

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    आंदोलन में सामान लेने के लिए लगी लाइन।

    बहादुरगढ़, जागरण संवाददाता। कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में 26 जनवरी से पहले जो उबाल आया, अब तस्वीर उसके उलट हो चुकी है। कहने काे तो यह आंदोलन चल रहा है लेकिन इस आंदोलन में दिल्ली की सीमाओं पर जो किसान डटे हैं, वै कैसे दिन बिता रहे हैं, इसे वे खुद ही जानते हैं। कहां तो आंदोलनकारी छह माह का राशन अपने साथ लाने की बात कह रहे थे और कहां अब वे जरूरी चीजों को भी तरस गए हैं।

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    मददगारों के दर्शन हुए दुर्लभ

    ऐसे में आंदोलन में एक-एक दिन अब पहाड़ सा हो रहा है। यहां पर दूध, लस्सी, फल, सब्जी की बहार तो छोड़ो जरूरी मदद तक नहीं मिल रही है। एक दूध की गाड़ी आती है ताे उसके लिए यहां पर घंंटों का इंतजार और उसके बाद लंबी लाइन यह साफ बयां कर देती हैं कि अब इस  आंदोलन काे जारी रखने के लिए किसानों द्वारा काफी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। अब फल और सब्जी लेकर आने वाले मददगारों के यहां दर्शन भी दुर्लभ हैं।

    फिका पड़ा आंदोलन का रंग

    पिछले दिनों एक मददगार द्वारा आंदोलन में कुछ सब्जी भेजी गई तो उसके बाद आंदोलनकारियों ने बाकायदा वीडियो जारी करके यह अपील की थी कि उनकी मदद के लिए यहां पर जरूरी चीजें भेजी जाएं। इस दौरान आंदोलनकारियों को यह साफ तौर पर कहते हुए सुना गया था कि अब यहां पर कोई भी मदद करने नहीं आ रहा है। यही वजह है कि आंदोलन स्थल पर डटे रहने वाले किसानों की संख्या अब गिनती भर की रह गई है। एक-एक तंबू में जहां पहले किसानों की संख्या अच्छी खासी संख्या होती थी वहीं अब अनेक तंबू तो खाली-खाली नजर आते हैं।

    संघर्ष को और लंबा चलाना हो रहा है मुश्किल 

    स्वाभाविक है कि जब आंदोलन में डटे रहने के लिए जरूरी चीजें ही नहीं तो यहां पर कोई कितने दिन ठहर सकता है। दिक्कत तो यही है कि अब यहां पर मदद करने वाले भी एक तरह से तौबा कर चुके हैं। आसपास के गांवों से मदद पहुंचाने वाले युवा अब आंदोलन की तरफ रख भी नहीं करते। ऐसे में इस संघर्ष को और लंबा चलाना मुश्किल हो रहा है। 

     

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