सेफ्टी आफिसर की बात मानी होती तो नहीं होता ब्लास्ट, बच जाती दो कर्मियों की जान
रोहतक के आइएमटी स्थित आटोमोबाइल कंपनी की फर्नेस मशीन में सोमवार सुबह ब्लास्ट हो गया था। जिसमें तीन मजदूर गंभीर रूप से झुलस गए थे। उपचार के दौरान राजेश और विजेंद्र की मौत हो गई थी जबकि सच्चिदानंद का उपचार चल रहा है।

रोहतक, जागरण संवाददाता। रोहतक में आइएमटी स्थित आटोमोबाइल कंपनी में ब्लास्ट में झुलसा श्रमिक सच्चिदानंद पीजीआइएमएस में जिंदगी-मौत के बीच जूझ रहा है। इस दौरान उसने पुलिस को जो बयान दिया है उसने कंपनी के अधिकारियों को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। पुलिस को दिए गए बयान में गोरखपुर जिले के पीपरी गांव के रहने वाले सच्चिदानंद ने बताया कि वह करीब चार साल से यहां पर नौकरी करता है। सोमवार सुबह की शिफ्ट में वह अपने साथी विजेंद्र और रमेश के साथ कंपनी के हीट ट्रीटमेंट डिपार्टमेंट में फर्नेस मशीन के पास पाटर्स की पैकिंग कर रहा था।
सेफ्टी आफिसर और एचआर है जिम्मेदार
इसी दौरान मशीन में ब्लास्ट हुआ और तीनों झुलस गए। सच्चिदानंद ने आरोप लगाया है कि कंपनी में मशीनों की देखरेख की जिम्मेदारी सेफ्टी आफिसर कमल शर्मा की है। कंपनी में काम करने वाले श्रमिक बार-बार कमल शर्मा को कह रहे थे कि इन मशीनों को चेक करा दो। इसके अलावा सेफ्टी उपकरण भी उपलब्ध करा दो, लेकिन सेफ्टी आफिसर ने उनकी एक नहीं सुनी, जिस कारण यह हादसा हो गया।
इस हादसे के लिए कंपनी का एचआर अनिल भी जिम्मेदार है। यदि यह दोनों अधिकारी श्रमिकों की बातों को अनसुना ना करते तो हादसा होने से बच सकता था। साथ ही उसके साथी विजेंद्र और रमेश को भी जान नहीं गंवानी पड़ती। सच्चिदानंद के बयाप पर आइएमटी थाना पुलिस ने दोनों अधिकारियों पर केस दर्ज कर लिया है।
शवों का पोस्टमार्टम
हादसे में जान गंवाने वाला राजेश और विजेंद्र यूपी के प्रयागराज व सोनभद्र जिले के रहने वाले हैं। हादसे के बाद उनके स्वजनों को सूचना दे दी गई थी, मंगलवार सुबह तक रोहतक नहीं पहुंचे थे। पुलिस भी उनके आने का इंतजार कर रही है। दोनों के परिवारों के आने के बाद भी शवों का पोस्टमार्टम कराया जाएगा।
यह था मामला
आइएमटी स्थित आटोमोबाइल कंपनी की फर्नेस मशीन में सोमवार सुबह ब्लास्ट हो गया था। जिसमें तीन मजदूर गंभीर रूप से झुलस गए थे। उपचार के दौरान राजेश और विजेंद्र की मौत हो गई थी, जबकि सच्चिदानंद का उपचार चल रहा है। इस हादसे के बाद कंपनी के सभी श्रमिकों ने करीब नौ घंटे तक गेट के बाहर धरना देकर विरोध जताया। कंपनी के अधिकारियों की तरफ से सुरक्षा बंदोबस्त और मृतकों के परिवारों को आर्थिक मदद का आश्वासन मिलने के बाद शाम पांच बजे काम पर लौटे थे।
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