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    कलियुग में भगवान को पाने का उपाय है भजन, ध्यान और जप : सुरेश चंद्र शास्त्री

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 03 May 2022 08:23 PM (IST)

    कलियुग में भगवान को पाने का सबसे सहज और सरल उपाय है परमात्मा की गुण भजन ध्यान करना जप करना।

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    कलियुग में भगवान को पाने का उपाय है भजन, ध्यान और जप : सुरेश चंद्र शास्त्री

    जागरण संवाददाता, हिसार : कलियुग में भगवान को पाने का सबसे सहज और सरल उपाय है परमात्मा की गुण, भजन, ध्यान करना, जप करना। कलियुग में यज्ञ करना कठिन काम तुलसीदास ने बताया है कि कलियुग में यज्ञ करना कठिन काम है। कोई नास्तिक है, कुपंथी है। कोई कहेगा हम संत नहीं मानते हैं, हम धर्म नहीं मानते हैं। कोई कहेगा इतना पैसा जला दिया। कई तरह के लोग कई प्रकार की बातें कहते हैं। वहीं शराब पीने में अन्य बुरे काम करने में धन के अपव्यय में तनिक भी देरी नहीं की जाती परंतु नास्तिक लोग उसको नहीं मानेगा और यज्ञ होगा तो उपदेश देना शुरू कर देता है। इसीलिए तुलसीदास ने सोचा कि कलियुग में अधर्मी लोग भी हो जाएंगे। इसीलिए कलियुग भगवान के नामों को जपने से ही तीर्थ यात्रा, यज्ञ और समाधि का फल मिल जाता है। उक्त उद्गार श्री धाम वृंदावन से पधारे सुरेश चंद्र शास्त्री ने सेक्टर 9-11 के जय श्री बालाजी जय मां जगदंबे मंदिर परिसर में श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन व्यक्त किया। आज की कथा में गोभक्त एवं समाज सेवी राम निवास मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। वहीं अति वशिष्ठ अतिथि के रूप में ब्रह्मानंद प्रधान श्री कृष्ण गोशाला नंदी शाला भट्टू व उपप्रधान श्री वैष्णव अग्रसेन गोशाला, अग्रोहा उपस्थित हुए। कथा में कथा में ध्रुव चरित्र, जड़ भरत चरित्र एवं प्रहलाद चरित्र, बलि वामन प्रसंग आदि का वर्णन हुआ।

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    व्यास पीठ पर विराजमान सुरेश चन्द्र शास्त्री ने कहा कि राजा परीक्षित ने गंगा के तट पर श्री शुकदेवजी से पूछा कि जो व्यक्ति मरने की तैयारी नहीं किया हो ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए। तो शुकदेवजी ने बताया कि यह पूरे संसार का प्रश्न है। कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में जीने के लिए नहीं आया है मरने के लिए आया है। जिस दिन से हम जन्म लेते हैं, उसी दिन से हमारी मृत्यु शुरू हो जाती है। शास्त्र में बताया गया है कि मनुष्य सतयुग में एक लाख वर्ष जीते थे। त्रेतायुग में दस हजार वर्ष जीते थे। यज्ञ यज्ञादि द्वारा अपना कल्याण करते थे। द्वापर में एक हजार वर्ष की आयु बताई गई है। उस समय मंदिर पूजा द्वारा अपना कल्याण करते थे। कलियुग में 100 वर्ष की आयु बतायी गई थी लेकिन अब वह भी अधर्म, प्रकृति से छेड़छाड़ एवं मानवीय हस्तक्षेप से घटती जा रही है। कलयुग में केवल प्रभु नाम का आसरा है और उसी से जीव का कल्याण हो सकता है।