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    हिसार में पशु वैज्ञानिकों ने दी विदेशी मुर्गियों के नस्लों की जानकारी, अब देशी मुर्गियां भी दे सकेंगी ज्यादा अंडे

    By Naveen DalalEdited By:
    Updated: Fri, 11 Mar 2022 08:18 AM (IST)

    लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) में पशु शरीर संरचना विषय पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन आयोजित हो रहा है। जिसमें राजस्थान हरियाणा उत्तर प्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र मध्य प्रदेश केरल सहित कई राज्यों से पशु रचना विषय के महारथी विज्ञानी शामिल हुए हैं।

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    पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के शरीर रचना विभाग की शोधार्थी ने किया है शोध।

    हिसार, वैभव शर्मा। देसी और विदेशी मुर्गियों की नस्लों में काफी अंतर पाया जाता है। विदेशी नस्ल की मुर्गियां अधिक अंडे देती हैं तो उसमें पोष्टिकता देसी के मुकाबले कम होती है। जबकि देसी नस्ल की मुर्गियां काफी कम अंडे देती हैं तो उनमें पोष्टिकता की भरमार होती है। इन अंतरों को जल्द ही पशु चिकित्सा विज्ञानी दूर कर सकेंगे। इस तरफ पशु शरीर रचना  (एनाटामी) विज्ञानियों ने काम करना शुरू कर दिया है। राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (राजुवास) के शरीर रचना विभाग की शोधार्थी तन्वी महाजन ने व्हाइट लैगहार्न नस्ल की विदेशी मुर्गी और देसी नस्ल कड़कनाथ मुर्गी के शरीर की रचना पर तुलनात्मक शोध किया।

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    लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में देशभर के पशु विज्ञानियों के सामने रखे तथ्य

    व्हाइट लैगहार्न नस्ल काे मीट तो देसी नस्ल कड़कनाथ काे अंडे के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें भी मुर्गियों के जननतंत्र में प्रजनन मार्ग का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि देसी नस्ल की मुर्गियों में अंडे कम आने का कारण यह है कि उसका प्रजनन मार्ग काफी छोटा होता है इसलिए वर्ष में काफी कम अंडे मिलते हैं। जबकि व्हाइट लैगहार्न नस्ल मुर्गियों के अंडे बाजार में आपको आम दुकानों पर आसानी से मिल जाते हैं। क्योंकि यह मुर्गियां हर दिन अंडा देती हैं। इन मुर्गियों के जनन तंत्र देसी की अपेक्षा बड़े होते हैं इस कारण से यह अधिक अंडे देती हैं। यही कारण है व्हाइट लैगहार्न नस्ल की मुर्गी एक साल में 300 से 330 अंडे देती है तो कड़कनाथ नस्ल की मुर्गी 200 अंडे ही दे पाती है।    

    इन सिस्टम के तहत किया गया शोध

    शोधार्थी तन्वी ने दोनों नस्लों की मुर्गियों के जननतंत्र में रीप्रोडक्टिक टेक्ट (प्रजनन मार्ग) का ग्राेस मार्फोलाजी, हिस्ट्राेलाजी, इलैक्ट्रान माइक्रोस्कोपी और इम्युनो हिस्ट्राकैमिस्ट्री की मदद से परीक्षण किया। इन परीक्षणों के माध्यम से देखा गया कि मुर्गियों के प्रजनन अंग में क्या अलग है जाे उन्हें अलग बनाता है। इसमें इन अंगों की बनावट देखी गई ताकि पता लगाया जा सके कि एक ब्रीड अधिक अंडे क्यों देती है तो दूसरी कम अंडे क्यों देती है। यह शोध ढाई वर्ष में पूरा हुआ। ग्राेस मार्फोलाजी में सामान्य नजरों से अंग का परीक्षण किया जाता है। इसके बाद हिस्ट्राेलाजी में माइक्रोस्कोप की मदद से अंग में मौजूद सेल का परीक्षण और उनके कार्य करने के तरीके को पहचाना जाता है इसके बाद इलैक्ट्रान माइक्रोस्कोप के माध्यम से कोशिकाओं और उनकी संरचना को और गहराई से देखा जाता है। इन तीन विधियों से आंकलन करने के बाद शोधार्थी ने यह तुलनात्मक अध्ययन पेश किया।

    लुवास में अंतरराष्ट्रीय स्तरीय कन्वेंशन में पेश किया शोध

    लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) में पशु शरीर संरचना विषय पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन आयोजित हो रहा है। जिसमें राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल सहित कई राज्यों से पशु रचना विषय के महारथी विज्ञानी शामिल हुए हैं। उन्हें के समक्ष राजवासु की शोधार्थी ने अपना शोध प्रस्तुत किया।

    इस शोध का क्या होगा फायदा

    राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में इ-गवर्नेंस सेल के प्रभारी डा. अशोक डांगी ने बताया कि एनाटामी यानि शरीर रचना विषय के जरिए विज्ञानी पशु पक्षियों की शरीर की रचना की स्टडी करते हैं। इस शोध में भी दोनो प्रकार की मुर्गियों पर शोध किया गया। अब इस शोध में मिले तथ्यों के आधार पर विज्ञानी देसी नस्ल की मुर्गी की खासियतों को विदेशी नस्ल की मुर्गियों में भेजकर अच्छी गुणवत्ता वाला नस्ल तैयार कर सकेंगे। यही कार्य देसी पर भी हो सकेगा।