हवा बिगड़ती रही, बोर्ड सोया रहा; हरियाणा के छोटे शहर बन गए प्रदूषण के नए हॉटस्पॉट
हरियाणा में वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है। वायु गुणवत्ता सूचकांक कई शहरों में खतरनाक स्तर पर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण संबंधी शिकायतों का निस्तारण धीमी गति से हो रहा है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्रवाई पर भी सवाल उठ रहे हैं, छोटे शहरों में प्रदूषण के नए हॉटस्पॉट बनने का खतरा है।
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हरियाणा के छोटे शहर बन गए प्रदूषण के नए हॉटस्पॉट। फाइल फोटो
राहुल रापड़िया, हिसार। प्रदेश की हवा लगातार ज़हरीली होती जा रही है, लेकिन सरकारी मशीनरी अब भी सुस्त चाल में है। राज्य के कई शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) लगातार 250 से ऊपर दर्ज हो रहा है, जबकि कुछ औद्योगिक इलाकों में यह 350 तक पहुंचा है, जो बहुत खराब श्रेणी में आता है। ऐसे में प्रदूषण नियंत्रण पर कार्रवाई के सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से जारी दो रिपोर्ट, रेड्रेसल स्टेटस–1417 और रेड्रेसल हाटस्पाट स्टेटस–1404, बताती हैं कि शिकायतें तो बढ़ीं, लेकिन कार्रवाई की रफ्तार आधी रह गई। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार वर्षों (15 अक्टूबर 2021 से 20 अक्टूबर 2025) में प्रदेश में 2873 वायु प्रदूषण शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें से 2332 सुलझाई गईं, यानी केवल 81% मामलों का निस्तारण हुआ।
खास बात यह है कि जहां गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे बड़े शहरों की स्थानीय इकाइयों ने सक्रियता दिखाई, वहीं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निस्तारण दर मात्र 46% रही। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यही सुस्ती जारी रही, तो प्रदेश के छोटे शहर आने वाले कुछ समय में ही प्रदूषण के नए हाटस्पाट बन सकते हैं।
चार साल में 2873 शिकायतें, कार्रवाई का असर सीमित
सीपीसीबी की रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा में शिकायतों का बड़ा हिस्सा समीर ऐप के माध्यम से आया, जिसमें नागरिकों ने धूल उड़ने, औद्योगिक उत्सर्जन और कचरा जलाने जैसी समस्याओं की सूचना दी। हालांकि औसतन 7 से 10 दिन की तय समयसीमा के बावजूद कई शिकायतें लंबित रहीं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बड़े शहरों की स्थानीय एजेंसियां सक्रिय रहीं, लेकिन छोटे शहरों में शिकायतें दर्ज होने के बाद महीनों तक कोई जवाब नहीं मिला। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण से जुड़ी शिकायतों के निस्तारण में विलंब राज्य के कमजोर समन्वय तंत्र और जवाबदेही की अस्पष्टता इसकी सबसे बड़ी वजह हैं।
बड़े शहरों में मानिटरिंग मजबूत, छोटे जिलों में संसाधनों की कमी
गुरुग्राम, फरीदाबाद और बल्लभगढ़ में नगर निगम, ट्रैफिक पुलिस और स्थानीय प्रदूषण इकाइयों ने शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई की। गुरुग्राम ने 93 प्रतिशत, फरीदाबाद ने 86 प्रतिशत और बल्लभगढ़ ने 91 प्रतिशत निस्तारण दर दर्ज की।
इन शहरों में जीपीएस आधारित सफाई वाहनों, मोबाइल मानिटरिंग यूनिट्स और डिजिटल रिपोर्टिंग सिस्टम की वजह से कार्रवाई तेज़ रही। इसके उलट, हिसार, रोहतक और बहादुरगढ़ जैसे शहरों में निस्तारण दर 50 से 60 प्रतिशत के बीच रही, जबकि करनाल, पानीपत और यमुनानगर में यह 40 प्रतिशत से भी कम रही।
विशेषज्ञों के अनुसार, संसाधनों की कमी, प्रशिक्षित कर्मियों का अभाव और निगरानी उपकरणों (रियल-टाइम मानिटरिंग सेंसर और एयर क्वालिटी डैशबोर्ड) की सीमित संख्या छोटे जिलों की मुख्य समस्या है।
छोटे शहर बने प्रदूषण के नए हॉटस्पॉट
रेड्रेसल हॉटस्पॉट स्टेटस–1404 रिपोर्ट में कहा गया है कि हरियाणा के छोटे जिलों में प्रदूषण का स्तर पिछले दो वर्षों में लगातार बढ़ा है। हिसार, रोहतक, बहादुरगढ़, करनाल और यमुनानगर अब राज्य के नए प्रदूषण हाटस्पाट माने जा रहे हैं।
इन क्षेत्रों में निर्माण कार्य, ईंट भट्ठे, खुले में कचरा जलाना और बढ़ता ट्रैफिक प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इन जिलों से आई शिकायतों का औसत निस्तारण 55 प्रतिशत से कम रहा। स्थानीय स्तर पर एयर क्वालिटी मानिटरिंग स्टेशन की कमी और मैनपावर की अनुपलब्धता कार्रवाई की सबसे बड़ी बाधा बताई गई है।
राज्य प्रदूषण बोर्ड पर उठे सवाल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपीसीबी) का प्रदर्शन इन दोनों रिपोर्टों में सबसे कमजोर कड़ी के रूप में सामने आया है। बोर्ड को मिली शिकायतों में से केवल 46 प्रतिशत मामलों का निस्तारण किया गया। सीपीसीबी ने इस बारे में अपनी दोनों रिपोर्ट में गंभीर टिप्पणी की हैं।
टिप्पणियों में कहा है कि राज्य बोर्ड की कार्रवाई और फील्ड मॉनिटरिंग के बीच समन्वय का गंभीर अभाव है। वहीं पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि एचपीसीबी को जिला स्तर पर स्वतंत्र नियंत्रण इकाइयां और पारदर्शी रिपोर्टिंग सिस्टम लागू करना चाहिए। अभी ज्यादातर मामलों में रिपोर्टिंग केंद्रीकृत है, जिससे कार्रवाई देर से होती है और जिम्मेदारी तय नहीं हो पाती।

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